अमेरिका ने कहा है कि वो श्रीलंका में किसी तरह का मिलिट्री बेस बनाने नहीं जा रहा है। श्रीलंका में अमेरिकी एम्बेसेडर जूली जे चुंग के मुताबिक श्रीलंका हिंद-प्रशांत महासागर का एक बेहद अहम देश है, लेकिन अभी हम यहां कोई आर्मी बेस बनाने के बारे में नहीं सोच रहे हैं।
खास बात यह है कि चुंग ने इशारों-इशारों में ये भी कह दिया कि श्रीलंका के हालात पर अमेरिका की पैनी नजर है और अमेरिकी अफसर यहां के दौरे करते रहेंगे। कई महीने से अमेरिका के टॉप आर्मी अफसर लगातार श्रीलंका के दौरे करते रहे हैं। इनमें से कुछ को तो बेहद सीक्रेट रखा गया था।
एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका भले ही खुलकर कुछ न बता रहा हो, लेकिन इतना तय है कि हिंद-प्रशांत में वो चीन की हरकतों पर लगाम कसने के लिए भारत के साथ किसी सीक्रेट मिशन पर काम कर रहा है।
श्रीलंकाई अखबार ‘द मिरर’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक हाल के कुछ महीनों में अमेरिकी सेना ने यहां लगातार फोकस किया है। हाल ही में अमेरिकी एयरफोर्स के दो स्पेशल एयरक्राफ्ट सीक्रेट तौर पर श्रीलंकाई एयरफोर्स के बेस पर उतरे थे। इन एयरक्राफ्ट्स में कौन था और इस विजिट का मकसद क्या था? अब तक यह साफ नहीं हो सका है। ये दोनों ही स्पेशल प्लेन दो दिन कोलंबो में रुके थे। लिहाजा, कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
अब सवाल यह है कि अगर श्रीलंका और अमेरिका के बीच बैकडोर डिप्लोमैसी के तहत इतना कुछ चल रहा है तो फिर अमेरिकी एम्बेसेडर मिलिट्री बेस बनाने की बात को खारिज क्यों कर रही हैं? इसकी एक वजह ये हो सकती है कि अमेरिका फिलहाल, इस मामले में अपने पत्ते नहीं खोलना चाहता।
दो महीने से जारी है बैकडोर डिप्लोमैसी
रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी से अब तक अमेरिकी अफसरों ने श्रीलंका के कई दौरे किए हैं। इसके बावजूद दोनों देशों की सरकारें इस बारे में खुलकर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। विदेशी मीडिया में लगातार रिपोर्ट्स आ रही हैं कि चीन को जवाब देने के लिए अमेरिका बहुत जल्द श्रीलंका में मिलिट्री बेस बनाने जा रहा है।
इस बारे में चुंग ने कहा- यहां कोई मिलिट्री बेस बनाने का प्लान नहीं है। कई दूसरे तरीके ऐसे हैं, जिनके जरिए अमेरिका और श्रीलंका लगातार बातचीत कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि श्रीलंका ने हाल ही में जो परेशानियां झेली हैं, उनसे वो बहुत जल्द बाहर आए। उसने काफी प्रोग्रेस की भी है
कुछ दिनों पहले अमेरिकी अखबार ‘द हिल’ ने एक एनालिसिस जारी किया था। इसमें कहा गया था कि श्रीलंका को चीन पूरी तरह से कब्जे में लेना चाहता है, लेकिन इसका जवाब भारत और अमेरिका दे रहे हैं। दोनों देश नहीं चाहते कि चीन अब किसी तरह से श्रीलंका पर दबाव बना सके। इसके लिए सीक्रेट और बैकडोर डिप्लोमैसी के तहत कई मिशन अंजाम दिए जा रहे हैं।
चीन ने यहां का बेहद अहम हम्बनटोटा पोर्ट अपने कब्जे में ले लिया था। इसकी वजह यह थी कि श्रीलंका तय वक्त पर चीन का कर्ज नहीं चुका पाया था। चीन के जहाज इस इलाके में लगातार मूवमेंट कर रहे हैं और इसकी वजह से भारत की सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा है। इसके अलावा कुछ दूसरे देश भी परेशान हैं। इनकी मदद के लिए अब अमेरिका यहां दखल बढ़ा रहा है और इसमें भारत उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है।
इस मामले में एक और खास बात यह है कि एक ओर जहां पाकिस्तान को IMF से 1.2 अरब डॉलर के कर्ज की किश्त 9 महीने से नहीं मिली है, वहीं भारत और अमेरिका ने महज 5 दिन में श्रीलंका को 3 अरब डॉलर का लोन दिलवा दिया। इसके पहले भी इतना ही अमाउंट जारी किया गया था।
भारत का एहसानमंद रहेगा श्रीलंका
श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साब्रे पिछले महीने रायसीना डायलॉग में आए थे। तब उन्होंने दुनिया के सामने कहा था- मुश्किल वक्त में भारत ने श्रीलंका की सबसे ज्यादा मदद की है और इसके लिए श्रीलंका हमेशा भारत का शुक्रगुजार और एहसानमंद रहेगा। साब्रे ने कहा था- सच्चा दोस्त वही होता है, जो मुश्किल वक्त और खराब हालात में भी आपका हाथ थामे और मदद करे। भारत ने यही किया है।
कुछ महीने पहले श्रीलंका दिवालिया हो गया था। इसके बाद वहां सिविल वॉर के हालात बन गए थे। इस दौर में भारत सरकार ने फूड, फ्यूल और मेडिसिन के साथ करीब 3 अरब डॉलर का फॉरेन डिपॉजिट भी अपने इस पड़ोसी को दिया था।
साब्रे ने श्रीलंका और भारत के रिश्तों को ऐतिहासिक बताते हुए कहा था- इकोनॉमिक क्राइसिस से गुजर रहे हमारे देश को सिर्फ भारत सरकार ने ही मदद नहीं दी, यहां के आम लोग भी हमारे साथ खड़े रहे। आप हमारे सच्चे दोस्त हैं। भारत ने हमारे लिए जो किया है, श्रीलंका हमेशा एहसानमंद रहेगा।
फॉरेन मिनिस्टर ने कहा- जब हम कर्ज जाल में फंसे और मुल्क दिवालिया हुआ तो भारत ने सबसे पहले मदद भेजी। ऐसा कोई दूसरा देश नहीं कर सका। आप सोचिए कि भारत ने हमें IMF से भी कर्ज दिलाया ताकि हमारी इकोनॉमी को पटरी पर लाया जा सके।
श्रीलंका की मदद करने वाले देशों में भारत के अलावा चीन और जापान भी हैं। पिछले महीने भारत के विदेश मंत्री जयशंकर श्रीलंका दौरे पर गए थे। इस दौरान उन्होंने वादा किया था कि वहां की इकोनॉमिक रिकवरी में भारत मदद और इन्वेस्टमेंट करता रहेगा।
एक दशक के दौरान श्रीलंका की सरकारों ने जमकर कर्ज लिए, लेकिन इसका सही तरीके से इस्तेमाल करने के बजाय दुरुपयोग ही किया। 2010 के बाद से ही लगातार श्रीलंका का विदेशी कर्ज बढ़ता गया। श्रीलंका ने अपने ज्यादातर कर्ज चीन, जापान और भारत से लिए।
2018 से 2019 तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे रानिल विक्रमसिंघे ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन को 99 साल की लीज पर दे दिया था। ऐसा चीन के लोन के पेमेंट के बदले किया गया था। ऐसी नीतियों ने उसके पतन की शुरुआत की।
उस पर वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसे ऑर्गेनाइजेशन का भी पैसा बकाया है। साथ ही उसने इंटरनेशनल मार्केट से भी उधार लिया है। श्रीलंका की एक्सपोर्ट से अनुमानित आय 12 अरब डॉलर है, जबकि इम्पोर्ट से उसका खर्च करीब 22 अरब डॉलर है, यानी उसका व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर है।
श्रीलंका जरूरत की लगभग सभी चीजें, जैसे-दवाएं, खाने के सामान और फ्यूल के लिए पूरी तरह इम्पोर्ट पर निर्भर है। ऐसे में विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से वह ये जरूरी चीजें नहीं खरीद पा रहा था। अब भारत और अमेरिका ने उसे IMF से 6 अरब डॉलर का कर्ज आसान शर्तों पर दिलवाया है। इसके अलावा भारत ने खुद करीब 3 अरब डॉलर दिए। बाकी चीजें जैसे पेट्रोल, डीजल, एलपीजी, गेहूं, चावल और दवाइयां अलग हैं।