विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत का बढ़ना और घटना खासे मायने रखता है। कुछ दलों के लिए फायदेमंद रहता है तो कुछ के लिए नुकसान। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत 71.08 फीसदी रहा था।
उस दौरान भाजपा के हिस्से में महज एक सीट शहर ही कब्जे में पाई थी। जबकि चार बसपा और एक-एक सपा और कांग्रेस के हिस्से में आई थी, लेकिन अगली बार वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में वोट फीसदी में वृद्धि हुई। उस चुनाव में 73.09 फीसदी वोट पड़े। जो कि सूबे में सबसे अधिक मत प्रतिशत रहा था। मतदान प्रतिशत का ग्राफ बढ़ा तो भाजपा का ग्राप एक से बढ़कर चार सीटों तक जा पहुंची। जबकि दो कांग्रेस और सपा के हिस्से में एक सीट आई थी। वहीं मत प्रतिशत बढ़ने के चलते बसपा की जमीन खिसक गई थी। उसके हिस्से में एक भी सीट नहीं रही।
अब एक बार फिर विधानसभा चुनाव के लिए सोमवार को मतदान हुआ। इस बार भी वर्ष 2017 के मुकाबले मतदान करीब दो प्रतिशत कम रहा। इस बार मत प्रतिशत 71.01 रहा है। इसके चलते सियासी सूरमाओं के चेहरे पर चिंता लकीरे उभर आई हैं। देर रात तक प्रत्याशी इस घटे मत प्रतिशत को लेकर गुणा-भाग लगाने में जुटे रहे। उधर सियासी गलियारों में भी चर्चा का बाजार गर्म रहा। अब सभी को दस मार्च का इंतजार है। तभी पता चलेगा कि वर्ष 2017 के मुकाबले घटा मत प्रतिशत आखिर क्या गुल खिलाएगा।