मैं किन्नर क्या-क्या बन जाऊं

किन्नर भिक्षु भी हैं।
किन्नर दानवीर भी हैं।
किन्नर नृत्यकार भी हैं।
किन्नर संगीतज्ञ भी हैं।
किन्नर स्वयं न्यायाधीश,यम भी हैं।
किन्नर विष्णु भी हैं।
किन्नर मृत्यु भी हैं।
किन्नर सुख भी हैं।
किन्नर दुख भी हैं।
किन्नर वैश्या भी हैं।
किन्नर काम भी हैं।
किन्नर काम नियंत्रक भी हैं।
किन्नर लिंग धारी देवी भी हैं
किन्नर लिंग विच्छेद नारी भी हैं।
किन्नर योनि धारी पुरुष भी हैं।
किन्नर ब्रह्माण्ड का नायक भी हैं।
किन्नर संतान श्रृजक भी हैं।
किन्नर सांसारिक मोह में फंस कर भी विरक्त हैं।
किन्नर गृह स्वामी हो कर भी सन्यासी हैं।
किन्नर स्वर्ण और पाप को धारण कर पाप मुक्त है।
किन्नर सभी देवताओं सर्वश्रेष्ठ है।
जो किन्नर को लांघ कर और निरादर कर के जाता है वह जीवन भर सुख का भोग नहीं कर पाता।
किन्नर एक प्राणी हो कर प्राण हैं।
किन्नर सदा सुहागन हैं।
किन्नर छल भी है।
किन्नर कपट भी है।
किन्नर सत्य भी है।
किन्नर शरीर से पुरुष दिखता है तो आत्मा से स्त्री। यह दुनियां के लिए कुदरत का छल है।
किन्नर संसार की मुस्कुराहट का कारण हैं।
किन्नर जीवन भी देता है और पालन भी करता है,और समय आने पर मृत्यु रूप में काल है।
किन्नर सिर्फ आम प्राणी नहीं वह ब्रह्माण्ड है।
किन्नर राजाओं में इन्द्र हैं
किन्नर मृत्यु में स्वयं यम हैं
किन्नर पालनहार में स्वयं विष्णु हैं।
किन्नर देवताओं में स्वयं परमात्मा हैं।
किन्नर समय हैं।
सत-रज-तम से परे किन्नर मोक्ष हैं।

इस संसार को सिर्फ सिद्ध योगी किन्नर बचा सकता है। अन्यथा विनाश निश्चित है ।

विचारक :- प्रियंका सिंह रघुवंशी
अध्यक्ष शिव फाउंडेशन व बोर्ड मेम्बर अखिल भारतीय किन्नर आयोग लखनऊ उ.प्र.