आखिर क्या है अविश्वास प्रस्ताव? रिपोर्ट आदर्श कुमार की

अविश्वास का प्रस्ताव एक संसदीय प्रस्ताव है, जिसे पारंपरिक रूप से विपक्ष द्वारा संसद में एक सरकार को हराने या कमजोर करने की उम्मीद से रखा जाता है या दुर्लभ उदाहरण के रूप में यह एक तत्कालीन समर्थक द्वारा पेश किया जाता है, जिसे सरकार में विश्वास नहीं होता। यह प्रस्ताव नये संसदीय मतदान (अविश्वास का मतदान) द्वारा पारित किया जाता है या अस्वीकार किया जाता है।
तो आइए, यह जानते हैं कि आखिर यह अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है, सबसे पहले संसद में यह कब आया और अब तक इससे किसे क्या नुकसान हुआ है–
अविश्वास प्रस्ताव का नियम :
संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का कोई जिक्र नहीं है। लेकिन अनुच्छेद 118 के तहत हर सदन अपनी प्रक्रिया बना सकता है जबकि नियम 198 के तहत ऐसी व्यवस्था है कि कोई भी सदस्य लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है।
किस तरह पारित होता है प्रस्ताव :
प्रस्ताव पारित कराने के लिए सबसे पहले विपक्षी दल को लोकसभा अध्यक्ष को इसकी लिखित सूचना देनी होती है। इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहता/कहती हैं। यह बात सदन में तब उठती है जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है।
अविश्वास प्रस्ताव मंजूरी मिलने के बाद क्या होता है :
अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने के लिए कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल होना चाहिए तभी उसे स्वीकार किया जा सकता है। लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर की मंजूरी मिलने के बाद 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा कराई जाती है। चर्चा के बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग कराता है या फिर कोई फैसला ले सकता है।
वैसे देश के संसद के इतिहास में अब तक करीब 26 बार अविश्वास प्रस्ताव आए हैं लेकिन दो बार ही विपक्ष को इसमें सफलता मिली है.
भारतीय संसद में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव 1963 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ आया था. नेहरू के खिलाफ जेबी कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था.भारतीय संसदीय इतिहास में सबसे ज़्यादा अविश्वास प्रस्ताव का सामना प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को करना पड़ा है. इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष 15 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया, पर एक भी बार उसे कामयाबी नहीं मिली.
विपक्ष की ओर से सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद ज्योति बसु के नाम है. उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ रखे थे.
भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को सफलता 1978 में मिली. आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी को बहुमत मिला और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने.
एनडीए सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए. वाजपेयी जब खुद प्रधानमंत्री बने तो उन्हें भी दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. इनमें से पहली बार तो वो सरकार नहीं बचा पाए लेकिन दूसरी बार विपक्ष को उन्होंने मात दे दी.1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को जयललिता की पार्टी के समर्थन वापस लेने से अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था. तब वाजपेयी सरकार 1 वोट के अंदर से हार गई थी.
अब आते हैं मोदी सरकार के विरुद्ध आने वाले अविश्वास प्रस्ताव की कहानी पर :
केंद्र में सत्ताधारी मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर शुक्रवार को चर्चा और वोटिंग होगी. मोदी सरकार के सवा चार साल में पहली बार विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया है. सरकार के पास बहुमत के आंकड़े से ज्यादा नंबर हैं, इसलिए वो इस प्रस्ताव के सफल न होने को लेकर आश्वस्त है.
लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने मोदी सरकार के खिलाफ चार साल में पहला अविश्वास प्रस्ताव मंजूर किया है। संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने कहा कि सरकार भी अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने के लिए तैयार है। हम आसानी से जीतेंगे, क्योंकि हमारे पास सदन में दो-तिहाई बहुमत है।
अभी लोकसभा की स्थिति क्या है: कुल सांसद: 545 (543 + 2 नॉमिनेट) 8 सीटें खाली होने की वजह से 535 सांसद रह जाते हैं। ऐसे में बहुमत के लिए 268 सांसदों की जरूरत है। हालांकि, बीजेपी 314 सांसदों के समर्थन का भरोसा जता रही है।
 
नोट: अगर आपको हमारी खबरें पसंद आ रही हैं तो Facebook ग्रुप या पेज में अपने 100 जानकारों को जोड़ें .और हमारी वेबसाइट www.thedastak24.com पर भी इस खबर को पढ़ें कमेंट करें