भारत में अनिवार्य मतदान न होने के पीछे आखिर क्‍या हैं कारण, जानें क्‍या कहते हैं जानकार

मतदान के प्रति लोगों की उदासीनता प्रमुख चिंता रही है। खासकर युवाओं और शहरी लोगों के बीच।  कुछ समय पहले तक, महानगरों और बड़े शहरों में भी कम मतदान एक समस्या थी, जहां शिक्षित और आर्थिक रूप से संपन्न लोग मतदान करने से बचते थे। 2010- 11 में अपनी हीरक जयंती मनाने के लिए चुनाव आयोग ने जो विषय अपनाया था, वह था एक मजबूत लोकतंत्र के लिए अधिक से अधिक भागीदारी’। व्यवस्थित मतदाता शिक्षा के माध्यम से चुनाव आयोग ने बढ़ी हुई मतदाता भागीदारी का उद्देश्य सफलतापूर्वक प्राप्त किया गया था। एसवीईईपी डिवीजन ने सभी नागरिकों को भाग लेने के लिए व्यापक सामुदायिक पहुंच वाला अभियान चलाया था। जिसका उद्देश्य सूचना, प्रेरणा और सुविधा में सभी संभावित खाली स्थानों को भरना था।

आयोग ने मतदाता भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से 25 जनवरी के दिन को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में घोषित किया। इसके पहले वर्ष में 1.7 करोड़ नए मतदाताओं को मतदाता सूची में जोड़ा गया, जिसमें 52 लाख नए पात्र और पंजीकृत युवा शामिल थे। उन्हें पहले राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर आठ लाख से अधिक मतदान केंद्रों पर मतदाता पहचान पत्र दिए गए थे। चुनाव आयोग की इस आश्चर्यजनक सफलता से प्रभावित होकर दुनिया के कई देशों ने इस मॉडल को अपनाया। एसवीईईपी कार्यक्रम का गोवा, गुजरात,झारखंड, ओडिशा और उत्तर प्रदेश के राज्य विधानसभा चुनावों में गजब का असर दिखा है। वहीं महिलाओं में परिणाम और चौंका देने वाले हैं। इनके मतदान फीसद में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है।

2014 से पहले विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूल परिसरों में 25,000 से अधिक युवा राजदूतों को नियुक्त किया गया। उनकी भूमिका को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया जिसमें मतदाता पंजीकरण, फॉर्म भरने के लिए मार्गदर्शन, चुनावी मशीनरी के साथ समन्वय स्थापित करना, सह-पाठ्यक्रम संबंधी गतिविधियां और कोर टीम गतिविधियां शामिल थीं। बाद के वर्षों में, लगभग सभी राज्य विधानसभा चुनावों में युवाओं के बीच मतदाता पंजीकरण 10 फीसद से बढ़कर 15 फीसद हो गया। महिलाओं से भी मतदाता पंजीकरण कराने की बड़े पैमाने पर अपील की गई। पहले दो चरणों के संयुक्त प्रयासों का समापन 2014 के आम चुनावों में उच्चतम मतदान (66.38 फीसद) में हुआ।

 

कई राज्यों में 80 फीसद से ज्यादा मतदान हुआ। कई बाधाओं के बीच चुनाव आयोग ने मतदाता भागीदारी को बेहतर बनाने और बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए हैं, बावजूद इसके भारत में अनिवार्य मतदान न होने के पीछे अच्छा कारण है। मजबूरी और लोकतंत्र साथ-साथ नहीं चलते। सार्वजनिक जुर्माना केवल अधिक कानूनी मामलों को जन्म देगा और इसके हल होने की बहुत कम संभावना है। ऑस्ट्रेलिया में मतदान अनिवार्य है, लेकिन अधिकारियों को ऐसे मामलों के निपटारे में बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ता है।इसके बजाय भारत में ‘पप्पू कैन वोट अहा’ जैसे कई सफल अभियानों की एक लंबी फेहरिस्त है।

यही वजह है कि दुनिया के 19 देशों में अनिवार्य मतदान का प्रावधान है लेकिन केवल नौ देशों ने इसे लागू कर रखा है। एक ऐसे कानून बनाना बेतुका है, जिसे आप लागू नहीं करना चाहते या या जानते ही नहीं कि लागू कर सकते हैं या नहीं। मतदाताओं की संख्या में वृद्धि कराने के लिए चुनाव आयोग के एसवीईईपी कार्यक्रम की तारीफ हुई है। मुझे विश्वास है कि आगामी चुनावों में फिर से साबित होगा कि अनिवार्यता की बजाय लोगों को प्रेरित करके और सुविधाएं देकर मतदान में ज्यादा प्रभावी इजाफा संभव है। चुनावों में मतदान फीसद को बढ़ाने के यही बेहतर रास्ते हैं।