क्या होता है संसद सत्र ? शुरू होने जा रहा है मानसून सत्र इसको भी समझ लें .

संसद (पार्लियामेंट) भारत का सर्वोच्च विधायी निकाय है। यह द्विसदनीय व्यवस्था है। भारतीय संसद में राष्ट्रपति तथा दो सदन- लोकसभा (लोगों का सदन) एवं राज्यसभा (राज्यों की परिषद) होते हैं। राष्ट्रपति के पास संसद के दोनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्थगित करने अथवा लोकसभा को भंग करने की शक्ति है। भारतीय संसद का संचालन ‘संसद भवन‘ में होता है। जो कि नई दिल्ली में स्थित है।

लोक सभा प्रत्‍येक आम चुनाव के बाद चुनाव आयोग द्वारा अधिसूचना जारी किए जाने पर गठित होती है। लोक सभा की पहली बैठक शपथ विधि के साथ शुरू होती है। इसके नव निर्वाचित सदस्‍य ‘भारत के संविधान के प्रति श्रद्धा और निष्‍ठा रखने के लिए,’ भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्‍ण रखने के लिए’ और ‘संसद सदस्‍य के कर्तव्‍यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करने के लिए’ शपथ लेते हैं।

राष्‍ट्रपति द्वारा आमंत्रण

राष्‍ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्‍येक सदन को बैठक के लिए आमंत्रित करता है। प्रत्‍येक अधिवेशन की अंतिम तिथि के बाद राष्‍ट्रपति को छह मास के भीतर आगामी अधिवेशन के लिए सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करना होता है। यद्यपि सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करने की शक्‍ति राष्‍ट्रपति में निहित है तथापि व्‍यवहार में इस आशय के प्रस्‍ताव की पहल सरकार द्वारा की जाती है।

संसद के सत्र

सामान्यतः प्रतिवर्ष संसद के तीन सत्र या अधिवेशन होते हैं। यथा बजट अधिवेशन (फरवरी-मई), मानसून अधिवेशन (जुलाई-अगस्त) और शीतकालीन अधिवेशन (नवंबर-दिसंबर)। किंतु, राज्यसभा के मामले में, बजट के अधिवेशन को दो अधिवेशनों में विभाजित कर दिया जाता है। इन दो अधिवेशनों के बीच तीन से चार सप्ताह का अवकाश होता है। इस प्रकार राज्यसभा के एक वर्ष में चार अधिवेशन होते हैं।

क्या आप जानते हैं संसद में एक सत्र की कार्यवाही का खर्च कितना होता है?

 

भारत में लागू होने वाली कोई भी योजना की रूप रेखा एक ही जगह पर बनाई जाती है, उस जगह का नाम है संसद. संसद में सालाना कार्यवाही होती है और इस कार्यवाही के लिए खर्च भी होता है. आपको बता दें कि साल 2014 के शीत कालीन संसद सत्र की कार्यवाही में करीब 144 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. अनुमान के अनुसार संसद को चलाने में प्रति मिनट करीब 2.5 लाख रुपये का खर्च आता है.

इसके अलावा सांसदों को साल भर में 34 हवाई यात्राओं और असीमित रेल और सड़क यात्रा के लिए भी सरकारी खजाने से धन दिया जाता है.

संसदीय आंकड़ों के अनुसार दिसम्बर 2016 के शीत कालीन सत्र के दौरान करीब 92 घंटे व्यवधान की वजह से बर्बाद हो गए थे. इस दौरान करीब 144 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था, जिसमें 138 करोड़ रुपये संसद चलाने का खर्च और 6 करोड़ रुपये सांसदों के वेतन, भत्ते और आवास का खर्च शामिल है.

समझें आदर्श कुमार के गणित को : अब मान लीजिये कि संसद का शीतकालीन सत्र 15 दिन चलता है.
शीतकालीन सत्र का का कुल खर्च = 144 करोड़ रुपये
प्रतिदिन कार्यवाही का खर्च = 6 घंटे
शीतकालीन सत्र में संसद चली = 90 घंटे
प्रति घंटे का खर्च = रुपये 1440000000/90 घंटे
संसद के एक घंटे तक चलने की कुल लागत = 160000000 रुपये
प्रति मिनट का खर्च = रुपये 160000000/60 मिनट
संसद के एक मिनट तक चलने की कुल लागत = 2.6 लाख रुपये.

अब शुरू होने जा रहा है मानसून सत्र इसको भी समझ लें आखिर क्या बला है ये :

संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई 2018 से शुरू होकर 10 अगस्त 2018 तक चलेगा। यानि की कल से शुरू हो रहा है ।

आगामी विधानसभा और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले  भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) मानसून सत्र के दौरान महत्वपूर्ण अध्यादेशों को पास करा लेना चाहता है ताकि उसका राजनीतिक फायदा लिया जा सके। खासकर ओबीसी कमीशन बिल और तीन तलाक को अपराध बनाने माननेवाले बिल को पास कराने पर जोर रहेगा।

इस बार BJP सरकार की प्राथमिकता में सत्र के दौरान वे छह अध्यादेश रहेंगे जो पिछले कई महीनों से लटके हुए हैं। ये हैं- फ्यूजिटिव इकॉनोमिक ऑफेंडर्स ऑर्डिनेंस, इनसोल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (अमेंडमेट) ऑर्डिनेंस, होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल (अमेंडमेंट) ऑर्डिनेंस, क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) ऑर्डिनेंस, कॉमर्शियल कोर्ट्स कॉमर्शियल डिविजन एंड कॉमर्शिय एप्पलेट डिविजन ऑफ हाईकोर्ट्स (अमेंडमेंट्स) ऑर्डिनेंस एंड द नेशनल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी ऑर्डिनेंस।

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