क्या होता है MSP ? जो की आजकल बहुत है चर्चा में ,पढ़िए The Dastak 24 की एक रिपोर्ट —-

मोदी सरकार ने बुधवार को धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 200 रुपये बढ़ा दिया है. कैबिनेट बैठक में सरकार ने खरीफ फसल का MSP बढ़ाने का फैसला लिया है. इससे किसानों को उनकी फसल का बेहतर मूल्य मिलने का रास्ता खुल गया है.
 
अब दोस्तों जान लीजिये आखिर यह होता क्या है MSP ?
 
किसानों के हितों की रक्षा करने की खातिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था लागू की गई है. अगर कभी फसलों की कीमत गिर जाती है, तब भी सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है. इसके जरिये सरकार उनका नुकसान कम करने की कोश‍िश करती है.
 
मौजूदा समय में इसमें ये उत्पाद शामिल हैं.
 
– अनाज: धान, गेहूं, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी
 
– दाल: चना, अरहर/तूर, मूंग, उड़द और मसूर
 
– तिलहन: मूंगफली, सरसों, तोरिया, सोयाबीन, सुरजमुखी के बीज, सीसम, कुसुम्भी और खुरसाणी, खोपरा, कच्चा कपास, कच्चा जूट, गन्ना, वर्जीनिया फ्लू उपचारित (BFC) तम्बाकू , नारियल शामिल है.
 
MSP ऐसे तय करती है सरकार:
 
भारत सरकार कृष‍ि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश पर कुछ फसलों के बुवाई सत्र से पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है. इससे किसानों को यह सुनिश्चित किया जाता है कि बाजार में उनकी फसल की कीमतें गिरने के बावजूद भी सरकार उन्हें तय न्यूनतम समर्थन मूल्य देगी.
 
MSP का क्या है उद्देश्य:
 
न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था इसलिए लाई गई है ताकि बाजार में फसल की कीमतें कम होने के बाद किसानों को मजबूरीवश अपनी फसल कम कीमत पर न बेचनी पड़े. न्यूनतम समर्थन मूल्य तब काम आता है, जब बंपर उत्पादन समेत अन्य वजहों से बाजार में फसल की कीमत काफी गिर जाती है. तो ऐसे मौके पर सरकार किसानों से न्यूनतम मूल्य पर फसल खरीद लेती है.
 
ये चीजें ध्यान में रखकर तय होती हैं MSP:
 
जब भी भारत सरकार कृष‍ि लागत और मूल्य आयोग (CACP) न्यूनतम समर्थन मूल्य की अनुशंसा करता है, तो वह कुछ बातों को ध्यान में रखकर ही इसे तय करता है. इसके लिए
 
– उत्पाद की लागत क्या है.
 
– इनपुट मूल्यों में कितना परिवर्तन आया है.
 
– बाजार में मौजूदा कीमतों का क्या रुख है.
 
– मांग और आपूर्ति की स्थ‍िति क्या है.
 
– अंतरराष्ट्रीय मूल्य स्थ‍िति,
 
– इसके अलावा सीएसीपी स्थानी,‍ जिले और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्थ‍ितियों का जायजा लेने के बाद ही सब तय करता है.
 
लेकिन MSP बढोतरी से क्या वाकई किसानों की जिंदगी बदलने वाली है?
 
सरकार अगर अपनी ही रिपोर्ट पढ़े, तो जवाब मिलेगा कि इससे किसानों को बहुत फायदा नहीं होने वाला है. सरकार की जिस एजेंसी को MSP सिफारिश करने की जिम्मेदारी दी है, उसका नाम है Commission for Agricultural Costs and Prices यानी CACP.
 
CACP की 2017 की रिपोर्ट के पेज नंबर 29-30 और 32 पर गौर कीजिए. इसके हिसाब से गेहूं की MSP पर खरीद होती है, इसके बारे में देश के महज 39 परसेंट लोगों को जानकारी है. चावल के MSP के बारे में महज 31 परसेंट लोगों को पता है. बुधवार को जिस रागी के MSP में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी की गई है, उसकी सरकारी खरीद भी होती है, इसके बारे में देश के सिर्फ 2.5 परसेंट लोगों को जानकारी है.
 
अब जरा सोचिए, जिसके अस्तित्व के बारे में ही किसानों को जानकारी नहीं है, उसमें कुछ भी बदलाव होने से किसानों का कितना फायदा होगा? आप खुद इसका अंदाज लगा लीजिए.
 
अब उसी रिपोर्ट की दूसरी बातों पर गौर कीजिए. इसमें कहा गया है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और कर्नाटक में अनाज की खरीद नाममात्र की ही होती है. असम में लगभग नगण्‍य और बाकी राज्यों में कुछ किसानों के फसल का कुछ हिस्सा.
 
अब जिन राज्यों में सरकारी खरीद होती ही नहीं है, वहां सरकारी खरीद मूल्य में कुछ भी बदलाव कीजिए, वहां के किसानों को क्या फर्क पड़ता है?
दरअसल, सरकारी खरीद कुछ राज्यों में खूब होती है. उनमें पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं. वहां के कुछ किसानों को इस बदलाव से जरूर फायदा होगा. लेकिन कुछ राज्यों के मुट्ठीभर किसानों को थोड़ा-सा फायदा, इसको चमत्कारी तो नहीं ही कहा जा सकता है. परसेंट के हिसाब से यह बढ़ोतरी 12.9 परसेंट है. वो तब हुआ है, जब पिछले चार साल से MSP में बढ़ोतरी औसतन 4-5 परसेंट की रही है. लेकिन ठीक 10 साल पहले एक झटके में धान की MSP में 21 परसेंट की बढ़ोतरी की गई थी.
 
15,000 करोड़ रुपए खर्च करने के इस फैसले से अगर किसानों का भला नहीं होगा, तो इसका फायदा किसे होगा? शायद बिचौलियों का, जो किसानों से सस्ते में अनाज खरीद कर सरकारी एजेंसी को बेच देते हैं. इस भारी भरकम बिल से हमें क्या मिलेगा? एक अनुमान के हिसाब से वित्तीय घाटा 0.35 परसेंट बढ़ सकता है . महंगाई में कम से कम 0.7 परसेंट की बढ़ोतरी हो सकती है .क्या इस फैसले के बाद फिर भी हम कहेंगे कि किसानों के हित के लिए ये बड़ा फैसला लिया गया? हेडलाइन से इतर बातों पर गौर करके आप खुद फैसला कीजिए.
 
 
किसान भाइयों को एमएसपी की कीमतों के लिए कब तक इंतजार
 
खरीफ फसलों की बढ़ी हुई कीमतें किसानों को फरवरी-मार्च में मिलेगी. ये ठीक लोकसभा चुनाव से पहले का वक्त है. इसलिए विश्लेषकों का मानना है कि एमएसपी बढ़ाने का असली मकसद चुनावी फायदा लेना है. जो सरकार चार साल तक किसानों की दिक्कत पर चुप बैठे रही वे आखिरी साल में एमएसपी क्यों बढ़ा रही है?
 
 
 
 
लेख : आदर्श कुमार
 
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