“प्रस्तुत है आदर्श कुमार की रिपोर्ट इतने अच्छे से कोई समाचार वाला नहीं बताएगा “
महंगाई भत्ता! ये ऐसा पैसा है, जो देश के सरकारी कर्मचारियों के रहने-खाने के स्तर को बेहतर बनाने के लिए दिया जाता है. पूरी दुनिया में सिर्फ भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश ही ऐसे देश हैं, जिनके सरकारी कर्मचारियों को ये भत्ता दिया जाता है.ये पैसा सरकारी कर्मचारियों, पब्लिक सेक्टर के कर्मचारियों और पेंशनधारकों को दिया जाता है.
आज आदर्श कुमार की रिपोर्ट में बड़ी बारीकियों से इस पर नजर डालेंगे
महंगाई भत्ते की शुरुआत द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हुई थी. उस वक्त अविभाजित भारत के हजारों सैनिक अंग्रेजों के नेतृत्व में लड़ाई के लिए दूसरे देशों तक जाते थे. इस दौरान उन्हें खाने के लिए अतिरिक्त पैसे दिए जाते थे. इस पैसे को उस वक्त खाद्य महंगाई भत्ता या डियर फूड अलावेंस कहा जाता था. जैसे-जैसे वेतन बढ़ता जाता था, इस भत्ते में भी इजाफा होता था. भारत में मुंबई के कपड़ा उद्योग में 1972 में सबसे पहले महंगाई भत्ते की शुरुआत हुई थी. इसके बाद केंद्र सरकार सभी सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता देने लगी थी, ताकि बढ़ती हुई महंगाई का असर सरकारी कर्मचारी पर न पड़े. इसके लिए 1972 में ही कानून बनाया गया, जिससे कि ऑल इंडिया सर्विस एक्ट 1951 के तहत आने वाले सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिया जाने लगे.
किस आधार पर दिया जाता है महंगाई भत्ता ?
महंगाई भत्ते की गणना मूल सैलरी पर होती है. इसकी शुरुआत 1 जनवरी 1996 से हुई थी. आम तौर पर हर छह महीने में महंगाई भत्ते में बदलाव किया जाता है. हर साल जनवरी और जुलाई से नया भत्ता लागू होता है. उदाहरण के लिए इस साल सरकार ने 29 अगस्त 2018 को महंगाई भत्ते में दो फीसदी की बढ़ोतरी का ऐलान किया है. अब ये सात फीसदी से बढ़कर 9 फीसदी हो गया है. तो जितने भी 48.41 लाख सरकारी कर्मचारी और 61.17 लाख पेंशनधारक हैं, उन्हें बढ़ा हुआ भत्ता 1 जुलाई 2018 से मिलेगा. इससे पहले मार्च में महंगाई भत्ते में दो फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी, जिसे 1 जनवरी 2018 से लागू किया गया था. ये महंगाई भत्ता अलग-अलग कर्मचारियों के लिए अलग-अलग होता है. शहरी क्षेत्र, अर्ध शहरी क्षेत्र और ग्रामीण इलाकों में नौकरी करने वालों के लिए ये महंगाई भत्ता अलग-अलग होता है. और मिलने वाले इस पैसे पर टैक्स की छूट नहीं होती है.
2006 तक केंद्र सरकार महंगाई भत्ता तय करती थी. इसके तहत बेसिक सैलरी और ग्रेड पे को जोड़कर जो पैसा बनता था, उसका एक निश्चित हिस्सा महंगाई भत्ते के तौर पर दिया जाता था. लेकिन 2006 के बाद महंगाई भत्ता तय करने का प्रावधान बदल गया. इसके लिए एक फॉर्म्यूला निकाला गया. ये फॉर्म्यूला है-
महंगाई भत्ते का प्रतिशत = पिछले 12 महीने का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का औसत-115.76. अब जितना आएगा उसे 115.76 से भाग दिया जाएगा. जो अंक आएगा, उसे 100 से गुणा कर दिया जाएगा.
अब समझ लें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक क्या होता है ?
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक देश के लोगों की ओर से एक साल में खरीदे गए सामान और सेवाओं के औसत को मापने का सूचकांक है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की गणना सामान और सेवाओं के एक मानक समूह के औसत मूल्य की गणना करके की जाती है. इस उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को नापने के लिए 2012 का आधार वर्ष तय किया गया है. आधार वर्ष वो साल होता है, जिसके आधार पर खर्च में हुई बढ़ोतरी या कमी को मापा जाता है. भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के आँकड़े केन्द्र सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा मासिक आधार पर प्रतिमाह जारी किए जाते हैं। इस सूचकांक हेतु वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य संबंधी आँकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन NSSO द्वारा चुनिंदा शहरों से संग्रहित किए जाते हैं , जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए आँकड़ों का संग्रहण डाक विभाग द्वारा किया जाता है।
अब आप सभी ने कल देखा या पढ़ा होगा की केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महंगाई भत्ते (डीए) और महंगाई राहत (डीआर) में दो प्रतिशत अतिरिक्त वृद्धि को मंजूरी दे दी है. इस कदम से केंद्र सरकार के 1.1 करोड़ कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को लाभ मिलेगा. एक आधिकारिक बयान में यह जानकारी दी गई है. डीए और डीआर में वृद्धि से सरकारी खजाने पर सालाना 6,112.20 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा.
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