जदयू (JDU) में मूल विचारधारा बनाम बीजेपी से रिश्ते पर जंग

लोकसभा चुनाव के बाद जदयू में पार्टी की मूल विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध रहने और भाजपा से सौहार्दपूर्ण रिश्ते बनाए रखने वाले नेताओं के बीच अंदरखाने तकरार बढ़ रही है। पहले केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की वक्फ संशोधन बिल पर मोदी सरकार को खुला समर्थन और इसके बाद मूल विचारधारा से जुड़े सवाल उठाने के तत्काल बाद मुख्य प्रवक्ता पद से हुई केसी त्यागी की विदाई दोनों धड़ों की जंग सामने आ गई है। बहरहाल इस पूरे मामले में बिहार के सीएम नीतीश दोनों धड़ों के नेताओं के बीच संतुलन साधने में जुटे हैं। इस संतुलन की नीति के तहत जहां उन्होंने मूल विचारधारा से जुड़े रहने के हिमायती नेताओं को अहम पद दिए हैं, वहीं भाजपा से करीबी संबंध रखने के हिमायती नेताओं को भी निराश नहीं किया है। मसलन मूल विचारधारा से जुड़े रहने के समर्थक नेताओं में मनीष वर्मा को राष्ट्रीय महासचिव, राजीव रंजन को मुख्य प्रवक्ता बनाया है, वहीं भाजपा से बेहतर संबंध बनाए रखने के हिमायती नेताओं में संजय झा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है।

नीतीश की राज्य के कुर्मी, कोइरी और ईबीसी के एक वर्ग पर गहरी पकड़ है। इसके इतर राज्य के करीब 18 फीसदी मुस्लिम मतदाता परिणाम तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। नीतीश नहीं चाहते कि भाजपा के बेहद करीबी होने का संदेश जाने के कारण यह मतदाता वर्ग जदयू के खिलाफ राजद के पक्ष में पूरी तरह से गोलबंद हो जाए। यही कारण है कि उनके निर्देश पर वक्फ बिल मामले में ललन सिंह के उलट पार्टी में नीतीश के करीबी विजय कुमार सिंह ने अलग राय रखी।

जदयू के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक नीतीश ने हमेशा की तरह बीच का रास्ता अपनाया है। सभी विकल्पों के लिए खिड़की खुली रखी है। वह एक तरफ भाजपा के साथ संबंध को खराब नहीं होने देना चाहते, वहीं दूसरी तरफ पार्टी की मूल विचारधारा को भी साधे रखना चाहते हैं। उन्होंने याद दिलाया कि भाजपा से संबंध टूटने के बावजूद उन्होंने राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश पर हाथ नहीं डाला, जिन पर भाजपा का करीबी होने का आरोप था। वहीं दूसरी ओर भाजपा के करीबी बने आरसीपी सिंह और ललन सिंह के खिलाफ कार्रवाई में देर नहीं की। एक समय भाजपा से संबंध की कीमत पर जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव से भी दूरी बनाने में नहीं हिचके। वर्तमान में इसी का शिकार त्यागी बने।

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