कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए 10 मई को वोटिंग होनी है। 6 और 7 मई को PM नरेंद्र मोदी ने लगातार दो दिन बेंगलुरु में रोड शो किया। इस रीजन में 28 सीटें आती हैं, इसलिए सभी पार्टियों का फोकस यहां है। पर बेंगलुरु के कोरामंगला में चुनाव से अलग ही माहौल है। ये एरिया पब, मॉल्स, रेस्टोरेंट्स और नाइट लाइफ के लिए मशहूर है, लेकिन आजकल यहां हिंदी vs कन्नड़ भी ट्रेंड में है।
बेंगलुरु इतना अहम है कि यहां के लिए मंत्रियों में झगड़ा हो जाता है। फिलहाल बेंगलुरु डेवलपमेंट खुद CM बसवराज बोम्मई के पास है। ये लड़ाई सिर्फ 28 सीटों के लिए नहीं है। ये बेंगलुरु डेवलपमेंट के लिए मिले 9,698 करोड़ और बृहद बेंगलुरु महानगरपालिका (BBMP) के 11,157.83 करोड़ के बजट के लिए भी है। ये 21 हजार करोड़ रुपए का सवाल है।
बेंगलुरु में चुनाव का माहौल जानने मैं कोरामंगला पहुंचा। यहां हर वीकेंड पर भीड़ रहती है। फाइव डे वर्किंग वाले नौकरीपेशा यहां शुक्रवार शाम से संडे नाइट तक पार्टी मूड में नजर आते हैं। शाम के 6 बजे हैं और मैं कोरामंगला में हूं। यहां जितने भी पब हैं, सभी में एडवांस बुकिंग है। एक पब के मैनेजर ने बताया कि वीकेंड पर सारे पब फुल रहते हैं। लोग पहले से बुकिंग करवा लेते हैं। इतनी भीड़ होती है कि हम बिना बुकिंग के किसी को सीट नहीं दे पाते।
एक पब के सामने मुझे मधुसूदन मिले। मेरे हिंदी में बात करते ही मुंह फेर लिया। मैंने पूछा क्या हुआ तो बोले, ‘जब हम नॉर्थ इंडिया में जाकर हिंदी बोल सकते हैं, तो आप लोग बेंगलुरु में आकर कन्नड़ क्यों नहीं सीख सकते।’
मैंने कहा, ‘आइए वीडियो पर बात करते हैं।’ हामी भरते हुए बोले, ‘हमें हिंदी बोलने वालों के साथ दिक्कत होती है। हम लोग हिंदी जानते हैं, इसलिए थोड़ा मैनेज कर लेते हैं, लेकिन कन्नड़ सीखना चाहिए। हमारी भाषा कन्नड़ ही है।’
मधुसूदन से जिस कोरामंगला में मेरी बात हुई, वहां देश ही नहीं, दुनियाभर से भारत आने वाले टूरिस्ट घूमने आते हैं। ये स्टार्टअप हब भी है, क्योंकि यहां छोटी-छोटी कई नई कंपनियां चल रही हैं। कुछ ही दूरी पर इलेक्ट्रॉनिक सिटी और HSR लेआउट एरिया हैं, जहां IT कंपनियां हैं। यहीं मुझे मोमिता बिस्वास मिलीं।
मोमिता कोलकाता की रहने वाली हैं और TCS कंपनी में जॉब कर रही हैं। वे 4 साल से बेंगलुरु में हैं। शहर के बारे में पूछने पर कहती हैं, ‘मुझे बेंगलुरु बहुत पसंद है, क्योंकि यहां का मौसम बहुत अच्छा है। कई लोग तो बीमारी से रिकवरी के लिए यहां आते हैं। हालांकि ये महंगा बहुत है। मकान किराए से लेते हैं, तो एक साल का एडवांस जमा करना पड़ता है। फिर पूरा पैसा वापस भी नहीं मिलता। मकान मालिक एक-दो महीने का अमाउंट मेंटेनेंस के नाम पर रख लेता है।’
कोलकाला के ही सब्यसाची मुखर्जी दो साल से बेंगलुरु में हैं। IT कंपनी में जॉब करते हैं। वे अपने दोस्त मौसम के साथ घूम रहे थे। मौसम असम से हैं और इंफोसिस में जॉब करते हैं। करीब 13 साल से बेंगलुरु में हैं। सब्यसाची कहते हैं, ‘मुझे बेंगलुरु की जॉब, यहां के लोग और वेदर सब अच्छा लगा। सिर्फ ट्रैफिक खराब है।’
ट्रैफिक की परेशानी पर सब्यसाची के दोस्त मौसम बताते हैं, ‘आप IT फील्ड से हैं, तो बेंगलुरु में दो से तीन दिन में जॉब मिल जाएगी, लेकिन ऑफिस पहुंचने के लिए आपको घर से दो घंटे पहले निकलना पड़ेगा।’
कोरामंगला के बाद मैं व्हाइट फील्ड पहुंचा, जिसे IT इंडस्ट्री का हब कहा जाता है। टेस्को, कैपजेमिनी, डेल से लेकर हुवाई और एक्सेंचर जैसी कंपनियां व्हाइट फील्ड से ही चल रही हैं। व्हाइट फील्ड में पहुंचते ही चारों तरफ बड़ी-बड़ी इमारतें नजर आती हैं। हर जगह IT फील्ड से जुड़े लोग ही दिखते हैं।
यहां मुझे इंफोसिस में जॉब करने वाले एक इंजीनियर मिले। कैमरे पर बात नहीं की, पर कहा, ‘इस शहर में जो आता है वापस नहीं जाना चाहता। ट्रैफिक की वजह से जो जिस कंपनी में जॉब करता है, उसके आसपास ही रहता है। इसलिए मकान मालिक मनमर्जी से किराया वसूल रहे हैं। पिछले साल बारिश ने बेंगलुरु को डुबो दिया था। इसके बावजूद अब तक कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ।’
महादेवपुरा सीट में आने वाला बेंगलुरु का IT कॉरिडोर 2022 में बाढ़ से डूब गया था। IT कर्मचारियों को 50-50 रुपए देकर ट्रैक्टर से ऑफिस जाना पड़ा था। CM के साथ मीटिंग के बाद TCS और विप्रो जैसी बड़ी IT कंपनियों को वर्क फ्रॉम होम का ऐलान करना पड़ा था।
इस बार BJP ने महादेवपुरा से मौजूदा विधायक अरविंद लिंबावली का टिकट काट दिया। पार्टी को डर है कि एंटी इनकम्बेंसी की वजह से वे हार सकते हैं। अरविंद की जगह उनकी पत्नी को उम्मीदवार बनाया गया है। अभी यहां लड़ाई कांग्रेस और BJP के बीच ही है। इस रीजन में JDS का सिर्फ एक विधायक है। आम आदमी पार्टी भी यहां जगह बनाने की कोशिश कर रही है।
सीनियर जर्नलिस्ट बेलागारू समीउल्ला कहते हैं, ‘बेंगलुरु कुबेर का खजाना है। BJP सरकार बेंगलुरु के लिए एक डेडिकेटेड मंत्री तक अपॉइंट नहीं कर पाई, क्योंकि मंत्री बेंगलुरु का इंचार्ज बनने के लिए लड़ रहे थे। इस शहर में लाखों-करोड़ों रुपए के प्रोजेक्ट आते हैं। हजारों कंपनियां हैं। इसलिए हर मंत्री चाहता है कि उसे बेंगलुरु की कमांड मिल जाए।’
‘बारिश में ये शहर सिलिकॉन सिटी से गटर सिटी बन जाता है। लैंड माफिया इतने एक्टिव हैं कि सरकारी जमीन पर कब्जा हो गया। तालाबों पर कब्जा करके बिल्डिंगें बना दी गईं। लैंड माफिया सभी पार्टियों से जुड़े हैं, इसलिए सरकार किसी की भी हो, इनका काम चलता रहता है। हर रोज सैकड़ों नई गाड़ियां आ रही हैं, लेकिन सड़कों का साइज तो वही है। इसलिए ट्रैफिक बढ़ता जा रहा है। पार्किंग कॉम्प्लेक्स बनाने की जगह नहीं है। यहां मुंबई की तरह सबअर्बन रेलवे का इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना जरूरी हो गया है।’
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. एस वेंकटेश कहते हैं, ‘बेंगलुरु में कई लोग बाहर से आ रहे हैं, क्योंकि यहां जॉब के मौके हैं। शहर की ग्रोथ तेजी से हो रही है। इसका असर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर भी दिख रहा है। इलेक्शन में नेता बहुत वादे करते हैं, लेकिन वे पूरे नहीं हो पाते। ऐसा सिर्फ बेंगलुरु में ही नहीं, पूरे देश में हो रहा है।’
बेंगलुरु में 28 विधानसभाएं आती हैं। ये कर्नाटक की कुल असेंबली सीटों का 12% हैं। 2008 के बाद से यहां की तीनों संसदीय सीटों पर BJP कैंडिडेट जीत रहे हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव में तस्वीर अलग होती है और कांग्रेस आगे रहती है। 2008 में जरूर BJP ने 17 सीटें जीत ली थीं और कांग्रेस 10 पर रह गई थी।
2013 और 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस BJP से आगे रही। 2019 में ऑपरेशन लोटस के तहत BJP ने कांग्रेस और JDS के विधायक तोड़ लिए थे। इसके बाद बेंगलुरु में BJP विधायकों की संख्या 15 हो गई, कांग्रेस के 12 विधायक रह गए। बेंगलुरु के 28 में से 23 विधायक लगातार दो बार से जीत रहे हैं। 7 विधायक ऐसे हैं, जो पांच बार से लगातार जीत रहे हैं।
बेंगलुरु के वरतुल, मारतहल्ली, बेलंदूर जैसे एरिया को IT कॉरिडोर कहा जाता है। बेंगलुरु में 5500 से भी ज्यादा IT कंपनियां हैं। 2014 के बाद से यहां 800 से ज्यादा स्टार्टअप्स बने हैं। खास बात ये है कि स्टार्टअप्स शुरू करने वाले फाउंडर्स की औसत उम्र 32 साल है। यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स के मामले में बेंगलुरु दिल्ली और मुंबई से आगे है। देश में शुरू होने वाले टेक स्टार्टअप्स में से करीब 40% बेंगलुरु में ही हैं।