यूक्रेन ने हार नहीं मानी लेकिन रूस ने ट्रेड रूट पर कब्जा किया

रूसी सैनिकों ने यूक्रेन पर 24 फरवरी 2022 को हमला कर दिया था। इसके पीछे व्लादिमिर पुतिन का मकसद एक ही था- यूक्रेन पर कब्जा। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की को ये मंजूर नहीं था, लिहाजा आज एक साल बाद भी ये जंग जारी है।

इस जंग में दोनों देशों को काफी नुकसान हुआ। इंफ्रास्ट्रक्चर और मिलिट्री इक्यूपमेंट्स तबाह हुए। पुख्ता आंकड़े तो नहीं हैं, लेकिन माना जाता है कि इस जंग में दोनों तरफ के हजारों सैनिक मारे जा चुके हैं। दुनिया ने यूक्रेन की खूब तारीफ की। अमेरिका समेत कई देशों ने सैन्य मदद भी की, लेकिन रूस को हमेश जंग खत्म करने की सलाह दी। कहा- जंग से कुछ हासिल नहीं होगा।

अब सवाल ये उठता है कि 362 दिन (20 फरवरी तक) बाद रूस ने क्या हासिल किया…क्या वो अपने मकसद में कामयाब हो पाया या नहीं? इसका जवाब सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं…रूस ने ब्लैक सी ट्रेड रूट के ज्यादातर हिस्से पर कब्जा कर लिया है। इसके अलावा जंग की शुरुआत से अब तक रूस ने यूक्रेन की 18% जमीन पर कब्जा किया है। इस जमीन पर यूक्रेन के 6 बड़े शहर- सेवेरोडोनेट्स्क, डोनेट्स्क, लुहांस्क, जपोरिजिया, मारियुपोल और मेलिटोपोल बसे हैं। ये शहर यूक्रेन की इकोनॉमी को कंट्रोल करते हैं।
यूक्रेन के इतने लंबे समय तक जंग में टिके रहने की सबसे बड़ी वजह अमेरिका और पश्चिमी देशों के हथियार और आर्थिक समर्थन है। दूसरी तरफ रूस है जो यूक्रेन को मिलने वाले पश्चिमी देशों के समर्थन का शुरू से विरोध करता रहा है।
अब यूक्रेन के 6 शहरों पर कब्जा करके रूस पश्चिमी देशों को ये संदेश देना चाहता है कि उसे रोकना मुश्किल है। ऐसा करके रूस ये दावा कर पाएगा कि यूक्रेन उसके क्षेत्र पर हमला कर रहा है और पश्चिमी देशों को भी निशाने पर लिया जा सकता है। 2014 में रूस ने इसी तरह क्रीमिया पर कब्जा जमाया था, जिसका पश्चिमी देशों ने विरोध किया था। इसके बाद भी क्रीमिया पर रूस का ही कब्जा है।यूक्रेन का मारियुपोल शहर रूस की सीमा के काफी करीब है। ये लंबे समय से एजोव सी पर रणनीतिक रूप से अहम पोर्ट यानी बंदरगाह रहा है और यह इसे ब्लैक सी यानी काला सागर से जोड़ता है।
मारियुपोल बंदरगाह 10 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक कार्गो को हैंडल करता है। साथ ही माल ढुलाई के मामले में बहुत ही महत्वपूर्ण बंदरगाह है।
यहां कब्जे के बाद अब रूस, मॉस्को को डोनबास के डोनेट्स्क और लुहान्स्क से क्रीमिया को जोड़ने के लिए एक ब्रिज बना सकता है।
यहां पर स्टील की दो बड़ी कंपनियां हैं। इनके नाम इलीच स्टील एंड आयरन वर्क्स और एजोवस्टल हैं। यूक्रेन के कुल स्टील के एक बड़े हिस्से का उत्पादन यहीं से होता है।
जपोरिजिया से यूरोप में एनर्जी सप्लाई की जाती है। ऐसे में रूसी कब्जा होने के बाद यूक्रेन को रेवेन्यू जेनरेट करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, इससे यूक्रेन की इकोनॉमी खतरे में आ जाएगी।
जपोरिजिया यूरोप का न्यूक्लियर पावर हब है। यहां यूरोप का सबसे बड़ा न्यूक्लियर प्लांट है। इस हिस्से को रूस में शामिल करके पुतिन अपने देश को दुनिया की सबसे बड़ी न्यूक्लियर पावर बना सकते हैं।

ये पहला शहर है जिस पर रूस ने कब्जा किया था। 1 मार्च को रूसी सैनिकों ने यहां कब्जा जमा लिया था। यहां से दो बड़े यूरोपियन हाईवे गुजरते हैं।
ये इंडस्ट्रियल एरिया है। यहां बर्तन बनाने वाला यूक्रेन का सबसे बड़ा प्लांट है। इतना ही नहीं यहां कई इलेक्ट्रॉनिक आइट्म भी बनाए जाते हैं।
यहां विमानों और ट्रांस्पोर्ट से जुड़े पार्ट्स बनाए जाते हैं। इसके अलावा यहां यूक्रेन का इकलौता प्लांट है जहां कार के इंजन बनाए जाते हैं। इस पर कब्जे के बाद अब रूस ट्रांस्पोर्टेशन से जुड़ा प्रोडक्शन बढ़ा सकेगा।
यूक्रेन के कई शहर ऐसे भी हैं जिन पर रूस ने कब्जा कर लिया था, लेकिन बाद में यहां से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया। 15 दिनों में जीत हासिल कर जंग खत्म करने का दावा करने वाले रूस ने हमले के एक महीने बाद ही यूक्रेन की राजधानी कीव से अपनी सेना के पीछे हटने के आदेश दे दिए थे। यहां से सैनिक वापस भी जाने लगे थे, लेकिन 8 महीने बाद अक्टूबर में रूस ने यहां हमले तेज कर दिए थे। हालांकि वो कीव पर अब तक कब्जा नहीं कर पाए हैं।
रूसी सैनिकों ने इजुम पर मार्च में कब्जा किया था। 7 महीने बाद सितंबर में यूक्रेनी सेना ने इसे रूस से छुड़ा लिया था, जिसके बाद रूसी सैनिकों की वापसी हो गई थी।
युक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खार्किव पर रूस ने मार्च में ही कब्जा कर लिया था। अक्टूबर में यहां से रूसी सैनिकों को वापस बुला लिया गया था।
खेरसॉन पर जंग के 5 दिन बाद ही रूस ने 2 मार्च को कब्जा कर लिया था। 7 महीवे बाद 9 नवंबर को पुतिन ने यहां से अपनी सेना को वापस बुला लिया।
24 फरवरी को जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो उसने तभी साफ कर दिया था कि वो यूक्रेन की इकोनॉमी को तबाह कर देगा। इसी स्ट्रैटेजी के तहत रूसी सेना ने स्नेक आईलैंड पर भारी बमबारी की और उस पर कब्जा कर लिया। जुलाई में यहां से रूसी सैनिकों की वापसी हो गई थी।
एक साल बाद भी रूसी सेना यूक्रेन पर कब्जा करने में नाकाम रही। इस दौरान भारत, अमेरिका समेत यूरोपीय देशों ने पुतिन से जंग खत्म करने की बात कही। इजराइल और तुर्की ने मध्यस्थता की बात कही थी। लेकिन ये सब बेनतीजा रहीं।

हालांकि 23 दिसंबर 2022 को पुतिन ने ऐलान किया था कि वो जल्द युद्ध को खत्म करना चाहते हैं। पुतिन ने कहा था- इस संघर्ष को खत्म करना हमारा मुख्य मकसद है। हम इसके लिए प्रयास कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। लेकिन, नए साल यानी 1 जनवरी 2023 को पुतिन-जेलेंस्की में जुबानी जंग हो गई। दोनों ने अपने देश को संबोधित किया था। पुतिन ने 9 मिनट लंबे संबोधन में कहा था- हमारी सेना अपनी जमीन, सच्चाई और न्याय के लिए लड़ रही है। हम रूस और अपने परिवारों के लिए जंग जीतेंगे।
इसके पलटवार में यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमिर जेलेंस्की ने भी वीडियो मैसेज जारी किया था-उन्होंने रूस के लोगों को कहा कि पुतिन उन्हें तबाह कर रहे हैं। वो अपने सैनिकों का नेतृत्व नहीं कर रहे बल्कि उनकी आड़ में छिप रहे हैं।
ऑर्थोडॉक्स क्रिसमस के मौके पर पुतिन ने सीजफायर का ऐलान किया था। दरअसल, ऑर्थोडॉक्स क्रिसमस और कैथोलिक चर्च में बुनियादी तौर पर कुछ फर्क हैं। यही वजह है कि जब दुनियाभर में कैथोलिक चर्च दिसंबर में क्रिसमस वीक सेलिब्रेट करते हैं तो ऑर्थोडॉक्स चर्च इससे दूर रहते हैं और वो 7 जनवरी को क्रिसमस मनाते हैं। इसलिए 6-7 जनवरी को सीजफायर का ऐलान किया गया। लेकिन यूक्रेन ने दावा किया कि रूस ने रॉकेट दागे।
हालांकि रूस ने इस दावे को गलत ठहरा दिया। रूस का कहना है कि वह सीजफायर का सम्मान करता है। हमले यूक्रेन की तरफ से किए गए, उसने सिर्फ जवाब दिया। ये जंग अब भी नहीं थमी है।
नए साल की शाम यानी 1 जनवरी को यूक्रेन ने रूसी कब्जे वाले डोनेस्टक में मिसाइलें दागी थीं। यूक्रेनी सेना ने दावा किया था कि उसने रूस के 400 सैनिकों को मार गिराया है। अब रूसी सेना का कहना है कि हमले में उसके सिर्फ 89 सैनिक ही मारे गए। हमले के तुरंत बाद रूस ने कहा था कि 63 सैनिकों की मौत हुई है।
भारत हमेशा ही एक ऐसी दुनिया के पक्ष में रहा है, जहां देश अपनी पॉलिसी, इंटरेस्ट और प्रायोरिटीज चुन सकें। रूस-यूक्रेन जंग को लेकर भारत का नजरिया भी कुछ ऐसा ही है। 24 फरवरी को शुरू हुई इस जंग पर भारत का स्टैंड हमेशा न्यूट्रल रहा।