सूचना आयुक्त की नियुक्ति में पारदर्शिता हो, सिर्फ रिटायर्ड नौकरशाह न भरे जाएं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र एवं राज्य के सूचना आयोगों में खाली पदों और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता बरतने के लिए दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया कि छह महीने के भीतर सभी खाली पदों पर भर्तियां की जानी चाहिए.

जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि केंद्रीय सूचना आयोग एवं राज्य सूचना आयोग में पद खाली होने से दो महीने पहले ही भर्ती प्रक्रिया शुरु की जानी चाहिए. मौजूदा खाली पदों के संदर्भ में कोर्ट ने कहा कि अगर भर्ती प्रक्रिया शुरु हो चुकी है तो दो या तीन महीने में भर्तियां पूरी की जानी चाहिए और यदि प्रकिया शुरु नहीं हुई है तो छह महीने के भीतर देश के सभी सूचना आयोगों में भर्तियां पूरी की जानी चाहिए.

केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत जानकारी पाने के लिए शीर्ष अपीलीय संस्था है. केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही में केंद्रीय सूचना आयोग में चार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की है और चारों लोग रिटायर्ड सरकारी बाबू हैं.

 

इसे लेकर मोदी सरकार की आलोचना हो रही है. इस पर सख्त टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘सूचना आयोग रिटायर्ड नौकरशाहों के लिए नहीं बना है. विभिन्न क्षेत्रों के टैलेंटेड और अनुभवी लोगों को सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए.’

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने सूचना आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में उच्च स्तर की पारदर्शिता भी सुनिश्चित करने की बात कही है. लाइव लॉ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए सर्च कमेटी की गाइडलाइन सार्वजनिक की जानी चाहिए ताकि नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित हो.

इसके अलावा कोर्ट ने ये भी कहा कि सूचना आयुक्त के पद के लिए आए सभी आवेदकों के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए. ये सारी जानकारी वेबसाइट पर अपलोड की जानी चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय सूचना आयोग का स्थान केंद्रीय चुनाव आयोग के बराबर होना चाहिए. इसके अलावा केंद्रीय सूचना आयुक्त का दर्जा केंद्रीय चुनाव आयुक्त के बराबर होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि सूचना आयोगों को सीधे सरकारी (कार्यकारी) नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए.

कोर्ट ने आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज, कोमोडोर लोकेश बत्रा और अमृता जौहरी द्वारा दायर याचिका पर ये निर्देश जारी किए हैं. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सूचना आयोगों में अपीलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन केंद्र और राज्य सरकार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं कर रही है.

इसके अलावा ये भी आरोप था कि सरकार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता नहीं बरत रही है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को आरटीआई कानून को मजबूत करने की दिशा में एक प्रभावी कदम के रूप में देखा जा रहा है.