यूपी में अफसरशाही और नेतागीरी “तुम डाल डाल, मैं पात पात” वाली शैली में काम कर रही है। सरकार ने विकास कार्य सुचारू रूप से चलें और उनकी समीक्षा होती रहे। इसके लिए “प्रभारी मंत्री” बनाए लेकिन अफसरों ने इस योजना को लपक लिया और “प्रभारी अफसर” बनाने शुरू कर दिए। इस योजना का लाभ कुछ खास किस्म के कृपापात्रों को ही मिलता है इस सरकार में।
सीएम योगी कहते हैं कि उनकी सरकार ने अफसरों के आउट ऑफ टर्न प्रमोशन को खत्म कर दिया। लेकिन, अफसरों ने इसकी काट निकालते हुए आउट ऑफ टर्म पोस्टिंग की नई व्यवस्था शुरू कर दी, जो देश के किसी भी अन्य राज्य में नहीं चल रही।
नियम के मुताबिक, IAS अफसरों का पूरा बैच प्रमोट होता है फिर उसी आधार पर उनकी तैनाती होती है। हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने कुछ खास कृपापात्र अफसरों को मनमाने तरीके से प्रमोशन की प्रत्याशा में एक साल पहले ही उच्च पदों पर प्रभारी अफसर बनाकर विराजमान कर दिया।
फिलहाल, जैसा माहौल यूपी की नौकरशाही में है, ऐसे में किसी भी बात से इनकार नहीं किया जा सकता। Annual Confidential Report (ACR) अफसरों के कामकाज की समीक्षा का एक पैमाना होता है, जो उनका रिपोर्टिंग अफसर लिखता है। अफसरों की एसीआर ही उनके प्रमोशन का आधार बनती है।
आल इंडिया सर्विस रूल की धज्जियां उड़ाने में योगी सरकार के नियुक्ति विभाग का कोई सानी नहीं है। हैरत की बात है कि बड़े बड़े IAS अफसर सबकुछ देखने के बाद भी ‘धृतराष्ट्र’ बने हुए हैं। पूरी ब्यूरोक्रेसी कुछ अफसरों की बेअंदाजी से परेशान हैं। मगर सोच ईमानदार, काम असरदार की बातें करने वाली यूपी सरकार नौकरशाही की निरंकुशता और घाल मेल के सामने बौनी साबित हो रही है।
मंत्री तो दूर की बात है, अफसर मुख्यमंत्री की आंखों में भी धूल झोंकने से बाज नहीं आ रहे। सरकार की नजरें इनायत 2008 बैच के IAS अफसरों पर कुछ ज्यादा ही दिखती है। चंद्र भूषण सिंह 2008 बैच के विशेष सचिव स्तर के प्रमोटी IAS अफसर हैं। ये अपर परिवहन आयुक्त के पद पर हैं। इसके साथ ही ये प्रभारी परिवहन आयुक्त भी हैं जो कि सचिव स्तर के अफसर का पद है। तो क्या सिंह साहब अपने ‘प्रतिवेदक अधिकारी’ खुद ही होंगे जो अपनी स्वंय की ACR लिखेंगे।