गुलाबी नगर के नाम से मशहूर जयपुर राजस्थान की राजधानी है। पिंक सिटी जयपुर की स्थापना सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1727 में की थी।
जयपुर नगर वास्तुशिल्प का जीता-जागता उदाहरण है। नगर के महल, बंजर पहाडिय़ों पर खड़े किले, चौड़े रास्ते, बाजार शहर की शानो शौकत हैं। जयपुर नगर के चारों तरफ जब हम दृष्टि डालेंगे तो गुलाबी रंग सर्वत्र दृष्टिगत होगा। यह शहर सुनियोजित ढंग से बसा हुआ है जो चारों तरफ परकोटों से घिरा हुआ है।
बंगाली वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने जयपुर शहर की योजना बनाई थी। भारतीय ग्रंथों में वर्णित वास्तुशास्त्र और शिल्पशास्त्र के हिसाब से तथा नगर योजना के सिद्धांतों के अनुरूप चौड़े-सीधे रास्ते, सड़कें, गलियां, बाजार के दोनों ओर समान पंक्ति में दुकानें आदि का बसावट में विशेष ध्यान रखा गया। इन सबको नौ आयताकार खण्डों में व्यवस्थित किया गया।
सन् 1863 में राजकुमार अलबर्ट के स्वागत हेतु इस शहर को गुलाबी रंग में रंगा गया था। तभी से यह शहर गुलाबी रंग का पर्याय बन गया। शहर के चारों ओर सात दरवाजे हैं जो ध्रुव पोल, घाट गेट, न्यू गेट, सांगानेरी गेट, अजमेरी गेट, चांदपोल, सूरजपोल गेट के नाम से जाने जाते हैं।
पुराने शहर में तीन प्रमुख चौपड़ (चौराहे) हैं जहां मुख्य मार्ग व गलियां आकर मिलती हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। जयपुर में अनेक दर्शनीय स्थल हैं जो पर्यटकों का मन लुभाने में सक्षम हैं।
जयपुर के दर्शनीय स्थल:
1) हवामहल: इसका निर्माण सवाई प्रतापसिंह ने 1799 में करवाया था। यह शिल्पकला का अनूठा नमूना है। इसमें पांच मंजिलें हैं। अर्द्धअष्टकोणिय खिड़कियों व जालियों में वक्र ीय छत पर छोटे-छोटे गुम्बद व आले बने हुए हैं। इस आलों की संख्या 953 है तथा खिड़कियों की संख्या 152 है।
इस विश्व प्रसिद्ध खूबसूरत इमारत का निर्माण रानियों की सुविधा की दृष्टि से करवाया गया था ताकि महलों में रहने वाली सुंदरियां त्यौहारों एवम् विशेष अवसरों पर बाजार से निकलने वाली महाराजा की सवारी एवम् झाकियों का हवामहल के पिछवाड़े के झरोखों से अवलोकन कर सकें। इस हवामहल में शीतल हवा के झोंके बहा करते हैं।
2) रामनिवास बाग: जयपुर नगर के दक्षिण में स्थित इस हरे-भरे उद्यान का निर्माण सवाई रामसिंह ने सन् 1868 में करवाया था। लगभग 7० एकड़ में फैले इस वृहद उद्यान में संग्रहालय, चिडिय़ाघर व अजायबघर भी हैं जो कि देखने योग्य हैं। यहां मगरमच्छों का फार्म भी है जहां शिशु से विशाल आकार तक के मगरमच्छ को एक साथ सुस्ताते हुए देख सकते है। यहां का चिडिय़ाघर भी देश के पुराने चिडिय़ाघरों में से एक है। कुल मिलाकर यह उत्तम पिकनिक स्पॉट है जहां खाने-पीने की दुकानें भी मौजूद हैं।
3) सिटी पैलेस: जयपुर के हृदय स्थल में बसा यह शानदार महल वृहद-क्षेत्र में फैला है। इसका निर्माण 1729-32 में सवाई जयसिंह ने करवाया था। समय के साथ-साथ उनके वंशजों द्वारा निर्माण में बढ़ोत्तरी की जाती रही। यह महल राजस्थानी व मुगल शैलियों का मिश्रण है। महर में शिल्प, वास्तु, स्थापत्य नक्काशी का वैभव बखूबी देखा जा सकता है।
संगमरमर के दो नक्काशीदार हाथी एक सजग प्रहरी की भांति प्रवेशद्वार पर खड़े हैं जिन्हें देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह हमें पैलेस के भीतर प्रवेश के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। यहां संग्रहालय भी बना हुआ है जहां राजस्थानी पोशाकों सहित हथियारों का अवलोकन किया जा सकता है। महल में स्थिल कलादीर्घा में लघुचित्रों, कालीनों, शाही साजो- सामान, अरबी, फारसी, लैटिन व संस्कृत में दुर्लभ खगोल विज्ञान की रचनाओं का उत्कृष्ट संग्रह है।
4) जन्तर-मन्तर (वैधशाला): यह प्रसिद्ध एवम् विस्तृत वैधशाला है जो जन्तर-मन्तर के नाम से जानी जाती है। सन् 1718 में खगोलज्ञ सवाई जयसिंह द्वारा इसका निर्माण करवाया गया। उनके द्वारा दिल्ली, मथुरा, उज्जैन, वाराणसी में भी वैधशालाएं निर्मित करवायी गई थीं मगर जयपुर की वैधशाला देश की सबसे बड़ी वैधशाला है। इस वैधशाला के निर्माण के पीछे यह उद्देश्य रहा कि इसकी सहायता से समय की जानकारी, सूर्य का झुकाव, नक्षत्रों की जानकारी तथा ग्रहणों को सुनिश्चित किया जा सके। वैधशाला में कई यंत्र हैं जिनमें प्रमुख हैं सम्राट यंत्र, राम यंत्र, जयप्रकाश यंत्र आदि।
5) आमेर: जयपुर की स्थापना के 6 शताब्दियों पूर्व आमेर ढूंढार राज्य के कच्छावा शासकों की राजधानी थी। यह जयपुर से करीब 11 किमी. की दूरी पर स्थित दुर्ग है। दुर्ग के निर्माण में राजपूत व मुगल शैलियों का मिश्रण है। दुर्ग का निर्माण तो राजा मानसिंह ने आरंभ करवाया था, कालान्तर में उनके वंशजों द्वारा कई नये महल व ढांचे जोड़े गये। यह जयपुर का प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
6) गलता: गलता सनातन मतावलम्बियों का प्रमुख तीर्थस्थल है। यह गालव ऋषि के कारण प्रसिद्ध है जिन्होंने यहां कठोर तपस्या की थी। यहां जलकुण्ड है जिसका जल अत्यंत पवित्र माना जाता है। लोग गंगा के स्थान के समकक्ष इस तीर्थ का स्नान मानते हैं। यहां पहाड़ी पर एक सूर्य मंदिर भी है जहां से जयपुर शहर के मनोहारी दृश्यों को देखा जा सकता है।
7) गोविन्द देवजी मंदिर: यह जयपुर का प्रमुख मंदिर है। जयपुर के शासकों तथा प्रजाजनों का यह आराध्य स्थल वैष्णव रीति-नीति के अनुसार संचालित होता है। इस स्थान पर जब राजा जयसिंह सो रहे थे तब उन्हें दृष्टांत हुआ था कि यह देव स्थान है, यहां सोना नहीं चाहिए। तदुपरान्त यहां गोविन्द देवजी की मूर्ति स्थापित की गई जो पूर्व में वृंदावन में स्थापित थी। यहां धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। मंदिर का विग्रह दर्शनीय है।
8) अलबर्ट हॉल: रामनिवास बाग के ठीक सामने अलबर्ट हॉल स्थित है जो भारतीय पारसी शैली का मिश्रण है। इसका निर्माण सन् 1876 में हुआ। राजकुमार अलबर्ट ने इसका शिलान्यास किया था। उन्हीं के नाम पर इसका नाम अलबर्ट हॉल रखा गया। इसकी भित्तियों पर चीन, जापान, मिश्र आदि देशों के प्रसिद्ध चित्रों की प्रतिलिपियां अंकित की गई हैं। दुर्लभ सिक्के, राजस्थान की झांकियां, मीनाकारीयुक्त धातु के बर्तन, हस्तनिर्मित चित्र, लकड़ी व हाथी दांत पर खुदाई का काम, चीनी मिट्टी, पत्थर की मूर्ति कला के नमूने इत्यादि यहां हजारों दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह देखा जा सकता है।
रामबाग पैलेस, राजमंदिर सिनेमा, बिड़ला प्लेनेटोरियम, मोतीडूंगरी, विधानसभा भवन, गैटोर जलमहल, कनक वृंदावन, जयगढ़, नाहरगढ़ आदि अन्य दर्शनीय स्थान हैं जो दो-तीन दिन की यात्रा के दौरान देखे जा सकते हैं।
जयपुर रेल, हवाई, बस मार्ग द्वारा देश के प्रमुख नगरों से जुड़ा हुआ है। ठहरने के लिए पर्याप्त होटल आदि हंै तथा खाने-पीने की भी पर्याप्त सुविधाएं हैं। अक्टूबर से मार्च तक जयपुर में घूमना उत्तम रहेगा। ग्रीष्मकाल में यहां भीषण गर्मी पड़ती है। राजस्थान की राजधानी होने के कारण यातायात के यहां पर्याप्त सस्ते साधन उपलब्ध हैं।