मुगल-ए-आजम में जोधा बाई और सलीम की मां के रोल में नजर आईं दुर्गा खोटे की आज 118वीं बर्थ एनिवर्सरी है। ये हिंदी सिनेमा की वो एक्ट्रेस रहीं जिन्होंने फिल्मी दुनिया में महिलाओं के लिए नए आयाम स्थापित किए।
रईस खानदान में जन्मीं दुर्गा खोटे की कम उम्र में शादी हो गई थी। फैमिली लाइफ अच्छी चल रही थी कि उनके पति का निधन हो गया। उस समय दुर्गा खोटे की उम्र महज 26 साल थी। पति के यूं चले जाने से दुर्गा खोटे को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा और ना चाहते हुए भी फिल्मों में काम करना पड़ा।
पहली फिल्म रिलीज हुई तो लोगों ने कड़ी निंदा की। साथ ही फिल्म भी फ्लाॅप रही। लोगों की आलोचना और पहली ही फिल्म का फ्लाॅप टैग लेकर उन्होंने फिल्मी दुनिया से दूरी बना ली। हालांकि बाद में वी.शांताराम के कहने पर दोबारा इंडस्ट्री में कदम रखा और 5 दशक तक इस इंडस्ट्री का हिस्सा बनी रही।
फिल्मों में काम करने के दौरान ही उन्होंने खुद का बेटा खोया और बाद में फिल्म इंडस्ट्री की ‘मां’ बनीं। साथ ही अपनी निडरता के जरिए फ्रीलांस काम करने वाली पहली एक्ट्रेस का टाइटल भी खुद के नाम किया। ये दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड हासिल करने वाली चौथी महिला हैं और उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा गया है।
आज दुर्गा खोटे की बर्थ एनिवर्सरी पर जानते हैं उनकी लाइफ से जुड़े ऐसे ही कुछ किस्सों पर-
दुर्गा खोटे का जन्म 14 जनवरी 1905 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम वीटा लाड था। उनके पिता का नाम पांडुरंग शामराव लाड था और उनकी मां मंजुलाबाई थीं। दुर्गा खोटे अमीर खानदान से थीं। जिस वक्त महिलाओं को पढ़ने नहीं दिया जाता था, उस वक्त दुर्गा खोटे ने सेंट जेवियर काॅलेज से B.A किया था।जब ये कॉलेज की पढ़ाई कर रही थीं तभी परिवार वालों ने दुर्गा की शादी एक अमीर खानदान में कर दी। उनके पति का नाम विश्वनाथ खोटे था और वो मैकेनिकल इंजीनियर थे। दोनों का वैवाहिक जीवन बहुत अच्छा रहा, दोनों के दो बेटे भी हुए।
लेकिन दुर्गा खोटे की ये खुशी बहुत दिनों तक नहीं रही। जब वो 26 साल की थीं, तभी उनके पति का निधन हो गया।
पति के गुजर जाने के बाद दुर्गा खोटे के ससुर ने उनका और उनके बच्चों का पालन-पोषण किया। लेकिन चंद दिनों के बाद ससुर का भी देहांत हो गया। इसके बाद परिवार के कुछ लोगों ने दुर्गा खोटे की मदद लेकिन कुछ समय बाद उन्हें लगने लगा कि वो दूसरों के ऊपर आश्रित नहीं रह सकतीं।
दुर्गा खोटे को लगने लगा कि अब उन्हें घर चलाने के लिए कोई न कोई काम करना पड़ेगा। पढ़ी-लिखी थीं वो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी जिससे परिवार का गुजारा हो जाता था।
दुर्गा खोटे की बहन शालिनी के परिचित थे जे.बी. एच वाडिया। उसी दौरान उन्हें अपनी फिल्म के एक रोल के लिए नए चेहरे की तलाश थी। उन्होंने शालीनी से कहा कि वो उनकी फिल्मों में काम कर लें, लेकिन शालीनी ने मना कर दिया। उन्होंने उस रोल के लिए दुर्गा खोटे का नाम सुझा दिया।जब जे.बी. एच वाडिया ने दुर्गा से मुलाकात की और उन्हें फिल्मों में काम करने का ऑफर दिया तो उन्होंने हामी भर दी। वजह थी कि दुर्गा खोटे तंगी में थी। इसके बाद उन्होंने उस फिल्म में काम किया। फिल्म का नाम फरेबी जाल था जो 1931 में रिलीज हुई थी। हालांकि ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से फ्लॉप रही।
दुर्गा खोटे ने उस वक्त फिल्मी इंडस्ट्री में कदम रखा था, जब लड़कियों के रोल भी लड़के ही किया करते थे। फिल्मों में यूं जाने से दुर्गा खोटे की खूब आलोचना हुई। कई तरह की बातें हुईं कि एक रईस परिवार की लड़की फिल्मों कैसे काम कर सकती है। फिल्म में उनका रोल बस 10 मिनट का था लेकिन उन्हें उतने से रोल के लिए काफी निंदा झेलनी पड़ी। लोगों के तानों से वो बुरी तरह से टूट गईं जिस वजह से उन्होंने फिल्मी दुनिया से दूरी बना ली थी।पहली फिल्म में उनकी एक्टिंग से वी.शांताराम बहुत प्रभावित हुए थे। इसके बाद उन्होंने अपनी फिल्म ‘अयोध्येचा राजा’ में उन्हें लीड रोल ‘तारामती’ का किरदार उन्हें ऑफर किया। पहले तो दुर्गा ने उनके इस ऑफर को ठुकरा दिया लेकिन बाद में शांताराम के बहुत समझाने के बाद उन्होंने फिल्मों में दोबारा वापसी की
दुर्गा खोटे ने फिल्म अयोध्येचा राजा की शूटिंग पूरी की। फिल्म रिलीज के पहले वो बहुत घबराई थीं। उन्हें डर था कि कहीं लोग उनकी फिल्म को बहिष्कार ना कर दें, जिससे फिल्म फ्लॉप हो जाए। हालांकि ऐसा हुआ नहीं, उनका ये किरदार लोगों को खूब पसंद आया। इस फिल्म के बाद तो दुर्गा खोटे स्टार बन गईं।दुर्गा खोटे हिंदी सिनेमा की पहली ऐसी एक्ट्रेस थीं जिन्होंने स्टूडियो सिस्टम (फिल्मों में काम करने के लिए एक ही स्टूडियो के साथ मासिक वेतन पर एग्रीमेंट) को खत्म किया और फ्रीलांस काम करने वाली पहली एक्ट्रेस बनीं।दुर्गा खोटे का एक किस्सा भी ये मशहूर है कि वो एक फिल्म की शूटिंग कोल्हापुर में कर रही थीं। उस दौरान वहां कुछ शेरों को भी लाया गया था। उनके साथ उन शेरों का ट्रेनर भी था। तभी अचानक शेर ने एक कर्मचारी को दबोच लिया। उस आदमी को बचाने के लिए दुर्गा उस शेर से भिड़ गईं। थोड़ी देर बाद ट्रेनर ने उस शेर को शांत कराया और दुर्गा भी बाल-बाल बच गईं।
जब हिंदी सिनेमा में महिलाओं का एक्टिंग करना बड़ी बात थी तब समय दुर्गा खोटे ने फिल्म डायरेक्शन में भी हाथ आजमाया। उन्होंने फैक्ट फिल्म्स प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले कई शाॅर्ट फिल्में बनाई थी, जिसके लिए उन्हें काफी सराहा गया।
दुर्गा खोटे विदेशी फिल्म फेस्टिवल में जाया करती थीं, जिस वजह से उन्हें फिल्म प्रोडक्शन में भी काफी मदद ली। उन्होंने एक फिल्म साथी बनाई, जो बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हुई। इसके बाद उन्होंने कोई फिल्म नहीं बनाई।जब दुर्गा खोटे फिल्मों में सक्रिय थीं, तभी उनके बेटे का निधन हो गया। बेटे के चले जाने से उन्हें गहरा सदमा लगा। खुद के बेटे को खोने के बाद वो ऑनस्क्रीन मां बनकर उभरीं। उन्होंने फिल्म मुगल-ए-आजम में सलीम की मां जोधा बाई का किरदार निभाया जो आज भी लोगों के जेहन में जिंदा है।दुर्गा खोटे का वजन काफी बढ़ गया था। उन्होंने खुद को फिट रखने की बहुत कोशिश की लेकिन बढ़ती उम्र की वजह से वो खुद का ठीक से ध्यान नहीं रख पाईं। इसलिए बाद में लीड रोल मिलने के बजाए उन्हें साइल रोल मिलने लगे।दुर्गा खोटे दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड हासिल करने वाली चौथी महिला हैं। साथ ही उन्हें पद्मश्री और फिल्मफेयर अवाॅर्ड से भी नवाजा जा चुका है।
दुर्गा खोटे ने 5 दशक तक फिल्म इंडस्ट्री में काम किया है। उनकी आखिरी फिल्म 1980 में रिलीज हुई थी। इसके बाद खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्होंने फिल्मों में काम करना बंद कर दियाा। 1991 में 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।