टाइगर श्रॉफ के भी हैं मार्शल आर्ट गुरु राजू दास के बारें में खास बातें, जरूर पढ़िए

13 साल के एक बच्चे को एक परिचित काम दिलाने के बहाने कोलकाता से मुंबई लेकर आता है। मुंबई के दादर स्टेशन पर ट्रेन से उतरते ही उस बच्चे को अकेला छोड़कर वो शख्स गायब हो गया। इस बच्चे के पास ना खाने के पैसे थे, ना रहने के लिए ठिकाना। छोटे-मोटे काम करके गुजारा चलाया। अब ये ही बच्चा कुंग्फू में टाइगर श्रॉफ का गुरु है। नाम है राजू दास।

राजू का फिल्मी दुनिया तक का सफर काफी दिलचस्प रहा। झारखंड में पैदा हुए। पिता काम के सिलसिले में परिवार को कोलकाता ले गए। पिता मिस्त्री थे। खासी गरीबी थी, सो स्कूल भी जा नहीं पाए। 9-10 साल की उम्र से ही चाय की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया, मगर किस्मत में कुछ और था। धोखे से मुंबई आए तो यहां काम के साथ मार्शल आर्ट सीखा।
कुछ साल ट्रेनिंग के बाद फिल्म और टीवी इंडस्ट्री में दाखिल हुए। स्ट्रगल यहां भी कम नहीं था, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। कभी काम मिलता, कभी खाली रहते। फिर लोगों को सिखाना शुरू किया। टाइगर श्रॉफ को उनके बॉलीवुड डेब्यू के दिनों में कुंग्फू सिखाया। महज 12 हजार रुपए महीने में। अब राजू कई फिल्मों और वेब सीरीज में बतौर फाइट मास्टर काम कर रहे हैं।

अब राजू कई फिल्मी हस्तियों और टीवी स्टार्स के एक्शन गुरु हैं। कई सेलेब्स कुंग्फू जैसे मार्शल आर्ट इनसे सीख रहे हैं। राजू सिखाने के लिए 75 हजार रुपए महीना तक लेते हैं। एक लो बजट फिल्म में एक्शन डायरेक्शन के 5 से 7 लाख रुपए चार्ज करते हैं।
मेरा नाम राजू भीम दास है। पैदाइश साल 1982 की है। मूलत: झारखंड से हूं, बचपन कोलकाता में बीता और पढ़ाई, मार्शल आर्ट नगालैंड से किया। मेरे दादाजी कोलकाता में गवर्नमेंट एम्प्लॉई थे। चाचा भी गवर्नमेंट सर्विस करते थे, मगर मेरे पापा पढ़े-लिखे नहीं थे, इसलिए खेती करते थे। इंसान खुद पढ़ा-लिखा नहीं होगा तो वह बच्चों को क्या पढ़ाएगा। मैं पढ़ने के लिए बोलता था, तब पिताजी स्कूल भेजते नहीं थे, जबकि उस समय फीस भी नहीं देनी होती थी। टीचर को महीने का एक किलो चावल दे दो, वही बहुत हो गया।
गांव में दूसरी-तीसरी क्लास तक पढ़ा था, उसके बाद पापा हम लोगों को लेकर कोलकाता आ गए। कोलकाता में पापा मिस्त्री का काम करते थे और मम्मी हाउस वाइफ थीं। बचपन में पापा को बोलता था कि मुझे मार्शल आर्ट पसंद है, तब वे कहते थे- ‘यह सब नहीं सीखना है।’
मेरे मन में हमेशा से था कि कुछ कमाऊं ताकि घर की गरीबी हटा पाऊं। मैं 10 साल की उम्र से काम करने लग गया, क्योंकि परिवार बड़ा था और कमाने वाले पिताजी अकेले थे। ऐसे में परिवार कैसे चलेगा, यह सोचकर चाय की दुकान में काम पर लग गया। महीने का 150 रुपए मिलता था। एक साल चाय की दुकान पर और उसके बाद दो साल पिताजी के साथ टाइल्स की दुकान पर काम किया। टाइल्स का काम करता था, तब मुझे एक दिन के 20 से 25 रुपए और पापा को 50-60 रुपए मिलते थे।
13 साल की उम्र में कमाने के लिए मुंबई आ गया, लेकिन यहां जिसके साथ आया था, वे ही दादर स्टेशन पर मेरा साथ छोड़कर चले गए। इतने बड़े शहर में किसके पास जाऊं, यह सोचकर परेशान हो उठा। ट्रेन में यात्रा के दौरान जिन लोगों से थोड़ी-बहुत जान-पहचान हुई थी, वे पूछने लगे कि क्या हुआ? मैंने बताया कि जिसके साथ आया था, वे मुझे छोड़कर चले गए। सह-यात्री पूछने लगे- ‘तुमको जाना कहां हैं?’ मैंने कहा कि मालूम नहीं कहां जाना है। मैं तो उनके साथ आया था। उन्होंने बोला था कि तुमको मुंबई में काम पर लगवा दूंगा। उन लोगों ने कहा- ‘तू टेंशन मत ले, तू मेरे साथ चल।
वे लोग मुझे चार बंगला स्थित होटल स्टमक-टू में ले गए, जहां पर वो हेल्पर का काम करते थे। उन लोगों ने मुझे दोपहर का खाना खिलाया। मैं रूम में आकर सो गया और वे सब काम पर चले गए। रात को होटल बंद हुआ और काम पर से सब लौटे तो सब अपनी चटाई बिछाकर सोने लगे। मेरे लिए जगह ही नहीं थी।
मैं रात भर वर्सोवा में बिल्डिंग के आसपास घूमता रहा। इस तरह पूरी रात गुजारी। मैं सुबह उन लोगों के पास जाकर बोला कि मेरे लिए कोई काम देखो ताकि मुझे भी खाने और रहने की जगह मिल जाए। लोगों ने कहा कि एक जूस की नई दुकान ओपन हुई है, वहां काम करोगे?
जूस बनाने का काम आता तो नहीं था, लेकिन उन लोगों के कहने पर जूस की दुकान पर काम करने लगा। वहां पर मुझे खाने के साथ 800 रुपया महीना मिलता था। जिस दुकान में काम करता था, रात को वह बंद होती थी, तब उसी में कार्टून का बॉक्स और उसके ऊपर चटाई बिछाकर सो जाता था।
मुंबई में साल भर काम किया। इस दौरान मार्शल आर्ट में मेरा इंटरेस्ट देखकर मुंबई में रहने वाले एक टीचर ने कहा- मैं तुम्हें कराटे सिखाऊंगा। ये टीचर मूलत: कानपुर के रहने वाले थे और उनका नाम अरविंद डिसिल्वा था। वे 4 टाइम ब्लैक बेल्ट हैं, लेकिन उनकी शर्त थी कि मुझे सुबह उठा कर आना होगा। मैं सुबह 4 बजे उन्हें उठाने के लिए उनके घर जाता था। एक घंटा उन्हें जगाने में लगता था। उसके बाद उन्हें पान-पट्‌टी पर ले जाकर पान खिलाता, फिर रिक्शे में बैठाकर जुहू जाता था।
वहां पर वो मुझे एक घंटे बुडोकान कराटे की ट्रेनिंग देते थे। फिर रिक्शे में उन्हें बैठाकर नाश्ता करवाने ले जाता था। नाश्ता और पान खिलाकर उनके घर छोड़कर आता था। हां, उनसे सीखने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी, पर वो फीस नहीं लेते थे
इस दौरान एक से दोस्ती हो गई और उसके साथ मैं नगालैंड चला गया। वहां दो साल रहकर मार्शल आर्ट में कुंग्फू की ट्रेनिंग ली, जिसमें मेरी बचपन से दिलचस्पी थी। उस समय पता चला कि मार्शल आर्ट में क्या-क्या फॉर्म होते हैं।
मार्शल आर्ट सीखने के साथ-साथ वीनस कंपनी के ऑफिस का कैंटीन भी चलाता था। तीन-चार साल तक कैंटीन चलाते हुए मार्शल आर्ट सीखा। इसी दौरान डायरेक्टर कमल साहनी के बेटे मेरे पास मार्शल आर्ट सीखने आए। उन्हें 8 से 10 महीना सिखाया। 1000 रुपए महीना फीस मिलती थी। इस लाइन में यह पहली इनकम थी। उन्हें सिखाने के दौरान एक दिन अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, धर्मेंद्र आदि की फिल्में कर चुके चर्चित फाइट मास्टर बच्चन सिंह से मुलाकात हुई। उनसे चार-पांच महीने तक काफी कुछ सीखा और उन्हें असिस्ट भी किया।
|मुंबई में एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी, जिसका नाम था- ‘दिल्लगी’। इसके हीरो बॉबी देओल थे। इसके एक्शन डायरेक्टर टीनू वर्मा थे। उनसे सेट पर जाकर मिला, तब उन्होंने यह कहते हुए अपना विजिटिंग कार्ड दिया कि कल मिलने के लिए आ जाना।

मैं अपने रूम पर गया, तब जिसके साथ रहता था, उसे यह बात खुशी-खुशी बताने लगा कि एक डायरेक्टर ने मुझे अपना कार्ड दिया है और उसमें लिखे एड्रेस पर कल मिलने के लिए बुलाया भी है। मैं उनसे मिलने जाऊंगा। यह सारी बात हुई और मैं सो गया, लेकिन रात में ही दोस्त ने कार्ड चोरी कर लिया। शायद उसको लगा कि यह कार्ड लेकर मैं ही मिलने चला जाता हूं ताकि काम मिल जाए।कैंटीन में काम करने से जो कमाई होती थी, उसमें से अपनी फीस भरने, खाना-खुराकी निकालने के बाद घर चलाने के लिए पैसा कोलकाता भी भेजना पड़ता था। पैसों की कमी की वजह से कभी अच्छे कपड़े नहीं ले पाता था।
मेरी हालत देखकर एक परिचित बंदे ने बोला कि तुम मेकअप मैन का काम करो। मैंने कहा कि इसमें मुझे कुछ आता नहीं, क्या करूंगा। उन्होंने कहा- तुम आ जाना, नौकरी लग जाएगी। फिल्म ‘निगेहबान: द थर्ड आइज’ की शूटिंग चल रही थी, जिसकी हीरोइन ‘तुम बिन’ फेम संदली सिन्हा थीं। इस फिल्म में मुझे मेकअप मैन के तौर पर काम मिल गया। यहां देखकर जाना कि मेकअप में कैसे काम करते हैं। साल भर मेकअप का काम किया, जिसमें ‘पिया का घर’ सहित एकाध फिल्म शामिल है। मेकअप के लिए मुझे एक दिन का 100-150 रुपए मिलता था।
एक दिन सेट पर कादर खान के पर्सनल मेकअप मैन फुर्सत से मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि तू इतना अच्छा एक्शन करता है, फिर यहां पसीना पोंछने क्यों आया है। उनकी बात सुनकर सोच में पड़ गया। मुझे लगा कि बात तो सही कह रहे हैं। आखिर कितना बड़ा मेकअप मैन क्यों न बन जाऊं, आखिर पसीना ही पोंछना है। फिर बचपन से जो काम कर रहा हूं, उस चीज में आगे क्यों न बढ़ूं। फिर मैं मेकअप का काम छोड़कर एक्शन लाइन में आ गया।
इंडस्ट्री में लोगों ने मुझे भरपूर यूज किया। एक फाइट को यूनीक ढंग से सजाना पड़ता है। जब आप यूनीक चीजें देते हो, तब वे नहीं चाहते कि यह मुझसे दूर जाए, लेकिन उन्हें आपको आगे बढ़ाना भी नहीं है।
नाम नहीं लूंगा, पर ऐसे तीन-चार हैं, जिन्होंने खूब यूज किया। इनमें एक बहुत ही गंदा इंसान है, जिसने तो भरपूर इस्तेमाल किया। वह आदमी ऐसा था कि खाना खाते वक्त भी काम के लिए बुलाता था। कितना भी अच्छा काम कर दो, आखिर में मुंह ही बिचकाता था। हम सेट पर दो रोटी खा लेते थे, तब भी उसे तकलीफ होने लगती थी।

उसे प्रोडक्शन से ट्रेन रिजर्वेशन का पैसा मिलता था, लेकिन हमें साधारण डिब्बे का पेमेंट करता था। मान लीजिए उस समय प्रोडक्शन से एक फाइटर का मेहनताना 1000 रुपए लेता था, पर हमें 150 रुपए ही देता था। उसके साथ दो-तीन साल काम किया, क्योंकि हमें काम सीखने का लालच था, लेकिन वह इस हद तक फायदा उठाने लगा कि एकदम नाच नचाने लग गया। नचाना मतलब हर चीज के लिए धमकी देने लग गया था। फिर तो मैंने दो साल बाद काम छोड़ दिया।
एक समय तो ऐसा आया, जब मेरे पास कुछ खाने के लिए नहीं था। एक नामी डायरेक्टर के साथ काम कर चुका था। उनसे पहचान भी हो गई थी, लेकिन 300 रुपए उधार मांगे, पर उन्होंने पैसे देने से मना कर दिया। सुबह से कुछ खाया नहीं था। एक दुकान पर गया, उसके पास घड़ी रखना चाहा कि घड़ी रखकर बिस्किट ले लूं, लेकिन उसने भी मना कर दिया। मना ही नहीं किया, बल्कि चोरी का इल्जाम भी लगा दिया कि कहीं से चोरी करके घड़ी लाया है। फिर तो उस रात मुझे भूखे पेट सोना पड़ा। इसी तरह जब 1997 में कोलकाता से मुंबई आया था, तब पैसे की इतनी तंगी थी कि कई बार नाश्ता कर लिया तो लंच नहीं करता था, क्योंकि पैसे ही कम हुआ करते थे।

सोचता था कि जो थोड़े-बहुत पैसे बचे हैं, उससे रात को खा लूंगा तो अच्छे से नींद आ जाएगी और सो जाऊंगा। ऐसे करके भी मुंबई में गुजारा किया है। दरअसल, जहां काम करने के लिए बुलाया जाता था, वहां जाने के लिए किराया-भाड़ा आदि खर्च लगता था और काम करके तुरंत पैसे नहीं मांग सकते थे। बचपन से खाने को लेकर काफी दिक्कतें देखी हैं। अगर खाने की दिक्कत न होती, तब 10 साल की उम्र से काम ही क्यों करता।
इसके बाद मैंने कई टीवी शोज में काम किया। कई सीरियल में काम करने के बाद मुझे पेमेंट अच्छा मिलने लगा। सारा खर्च निकालकर मुझे 70 से 80 हजार रुपए बचत होती थी। उस समय बैक टु बैक काम भी करता था। हां, मैंने जो इंडस्ट्री में सहा था, वह बर्ताव काम करने वाले अपने बच्चों के साथ नहीं किया।
मैं यह सारा काम अपने अनुभव के आधार पर किया करता था। मेरे पास एसोसिएशन का कोई मेंबरशिप कार्ड नहीं था, इसलिए प्रोडक्शन वाले कहते थे कि ब्लास्टिंग का काम दूसरे फाइट मास्टर को लाकर करवा लेता हूं, क्योंकि कहीं दुर्घटना हो जाएगी, तब क्या करेंगे।

एक दिन सेट पर एसोसिएशन वाले आए थे और वहां हमारी टक्कर एसोसिएशन वालों से हो गई। उनकी नाराजगी भी झेलनी पड़ी, क्योंकि हम उनके एसोसिएशन के मेंबर नहीं थे। मैंने मुंबई एसोसिएशन से कार्ड मांगा, लेकिन उनकी शर्त थी कि पहले तुम पांच साल फाइटर में काम करो, 10 साल असिस्टेंट में काम करो, फिर 20 साल बाद हम तुमको फाइटर मास्टर का कार्ड देंगे। कार्ड की फीस 3 लाख रुपए है। फिर तो गवर्नमेंट ऑथराइज्ड शिवसेना यूनियन का मेंबर बनकर काम करने लगा।
ताहा शाह दुबई से आए थे। उन्होंने नेट पर चेक करके मेरे बारे में जाना तो मुझसे डेमो लेने आए और डेमो लेकर चले गए। उसके दो महीने बाद कॉल आया तो बोले- सर! मैं ताहा शाह बोल रहा हूं। आपने मुझे डेमो दिया था। ट्रेनिंग स्टार्ट करनी है। कब और कैसे करेंगे। मैंने उन्हें बुलाया।
ताहा ने बताया कि मैंने दो महीने मुंबई में छान मारा, पर आपसे बेहतर कोई नहीं लगा। ताहा ने मुझसे लगभग पांच-छह साल मार्शल आर्ट, फाइट, वैपेन आदि की ट्रेनिंग ली। उसके बाद साल 2004 में टाइगर श्रॉफ को तीन साल होंशू कुंग्फू और मोयथाई की ट्रेनिंग दी। उस समय टाइगर से ज्यादा चार्ज नहीं करता था। ऐसे कुछ 12 हजार प्रति माह करता था। इसी तरह रंजीत के बेटे जीवा और डैनी डेन्जोंगपा के बेटे रिनजिंग से भी 12-12 हजार रुपए प्रतिमाह फीस लेता था।

मैं लाठी, तलवार, भाला, नामचा आदि की ट्रेनिंग देता हूं। नॉर्मल ट्रेनिंग के लिए 25 हजार रुपए चार्ज करता हूं, लेकिन जो हीरो बनने आते हैं। उन्हें कोई स्पेशल चीज करना है तो उसके लिए महीने का 60 से 75 हजार रुपए लेता हूं।
एक फिल्म मुमताज के बेटे रुसलान मुमताज के साथ की। एक सुपर हीरो पर वेब सीरीज अमेजन के लिए कर रहा हूं। इसमें संभावना सेठ के हस्बैंड अविनाश द्विवेदी हैं। अविनाश मेरे स्टूडेंट भी हैं। पांच साल से मेरे अंडर ट्रेनिंग भी ले रहे हैं।

एक हॉरर मूवी कर रहा हूं। इसमें ‘कहो न प्यार है’ फेम अभिषेक शर्मा (‘कहो ना…’ में जो रितिक रोशन के छोटे भाई बने थे) इस हॉरर मूवी के हीरो हैं। राखी सावंत के प्रोडक्शन की वेब सीरीज कर रहा हूं। एक फिल्म जॉनी लीवर की बेटी जेमी लीवर के साथ कर रहा हूं।
मुंबई में अनुपम खेर एक्टिंग इंस्टीट्यूट में एक्शन डिपार्टमेंट संभालता हूं। विस्लिंग वुड्स में भी सिखाता था, पर अभी नहीं सिखा रहा हूं। उनके साथ मेरे संपर्क अच्छे हैं, उनके बच्चों का कोई प्रोजेक्ट आता है, तब मुझे बुलाते हैं। इसके अलावा क्रिएटिव करेक्टर एक्टिंग स्कूल है। यह समर जय सिंह का इंस्टीट्यूट है। यह वह एक्टर हैं, जिन्होंने पहली बार ‘ओम नम: शिवाय’ में ओरिजिनल सांप को गले में लपेटकर शूट किया था। ‘मुंबई फिल्म अकादमी’ में भी एक्शन डायरेक्शन डिप्लोमा की ट्रेनिंग देता हूं। इसके लिए प्रतिमाह 50 से 70 हजार चार्ज करता हूं।