‘इस बार भी लोकसभा चुनाव मैं ही लड़ूंगा। कमलनाथ नहीं लड़ेंगे।’ ठीक एक महीने पहले छिंदवाड़ा के परासिया में कांग्रेस के एक कार्यक्रम में सांसद नकुलनाथ ने यह कहकर खुद अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी थी। बाद में पिता कमलनाथ ने भी ऐसे ही एक कार्यक्रम में उनकी बात को आगे बढ़ाया।
अब मध्यप्रदेश के लिए कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली लिस्ट में नकुलनाथ का नाम शामिल कर पार्टी ने भी जाहिर कर दिया है कि नाथ परिवार की हर बात मान्य है। ऐसा कांग्रेस में ही संभव है और यह छिंदवाड़ा में नाथ परिवार की राजनीतिक ताकत का ही कमाल है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि भाजपा पिछले 27 साल से भेद पाने में असंभव इस सीट पर नाथ परिवार से मुकाबले के लिए इस बार कौन सा प्रयोग करेगी? इस सवाल का जवाब जानने से पहले कांग्रेस की पहली लिस्ट की 4 खास बातें जानते हैं..
कांग्रेस ने पार्टी में मची भगदड़ को देखते हुए सेफ गेम के साथ शुरुआत की। जिन 10 सीटों के लिए पहली लिस्ट में प्रत्याशी घोषित किए गए, उनमें से 7 एससी-एसटी के लिए रिजर्व हैं। यहां दावेदारी को लेकर तनिक भी तनाव नहीं था। बाकी सीटों पर भी ऐसी ही स्थिति है। कुछ पर तो बड़े नेता हाथ जोड़कर कह चुके हैं- इस बार माफ करें।
एक सीट पर भी महिला प्रत्याशी नहीं उतारी गई है। 2019 में इन 10 सीटों में से टीकमगढ़ में महिला प्रत्याशी थी।
किसी भी सीट पर बड़े नेता का भी नाम नहीं है। गुना, रतलाम, राजगढ़ जैसी सीटों को फिलहाल होल्ड रखा गया है, जहां बड़े चेहरों को उतारने की चर्चाएं चल रही हैं।
विधानसभा चुनाव में दावेदारी करने वालों का ध्यान रखा गया। जैसे- धार जिले की मनावर सीट से टिकट नहीं मिलने पर राधेश्याम मुवेल ने निर्दलीय के तौर पर फॉर्म भर दिया था। हालांकि, पार्टी की बात मानकर उन्होंने फॉर्म वापस भी ले लिया था।
अनुसूचित जाति (SC) के लिए रिजर्व इस सीट पर भांडेर के विधायक फूल सिंह बरैया को मौका दिया गया है। बरैया कांग्रेस में बड़ा दलित चेहरा हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की पसंद हैं। 2019 में इस सीट से देवाशीष जरारिया उम्मीदवार थे, लेकिन वे संध्या राय से चुनाव हार गए थे। बीजेपी की संध्या राय फिर मैदान में हैं
इस सीट से नए चेहरे पर दांव लगाया है। 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ीं किरण अहिरवार 2023 में विधानसभा चुनाव भी हार चुकी हैं। पंकज ने विधानसभा चुनाव में जतारा से दावेदारी की थी। कांग्रेस के तीन विधायकों की पसंद पंकज के पक्ष में रही। इस लोकसभा क्षेत्र में अहिरवार वोटर्स 5 लाख के ऊपर हैं।
सतना से दो बार के विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा को मौका दिया है। सिद्धार्थ के पिता सुखलाल कुशवाहा विंध्य और बुंदेलखंड में बसपा के बड़े नेता रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को चुनाव हराया था। 2023 के विधानसभा चुनाव में सिद्धार्थ कुशवाहा ने सांसद गणेश सिंह को सतना सीट से हराया था
पूर्व नेता प्रतिपक्ष और चुरहट से मौजूदा विधायक अजय सिंह के लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार करने पर कमलेश्वर पटेल को मौका मिला है। कमलेश्वर के पिता इंद्रजीत पटेल विंध्य के बडे़ ओबीसी नेता रहे हैं। विंध्य में कुर्मी, पटेल वोट निर्णायक हैं। कमलेश्वर पटेल 2023 का विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। कांग्रेस को ओबीसी मतदाताओं का साथ मिलने की उम्मीद है।
ओमकार सिंह मरकाम कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य हैं। वे डिंडोरी से चौथी बार विधानसभा चुनाव जीते हैं। उनका मुकाबला भाजपा के बड़े आदिवासी नेता और छह बार के सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते से है। इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से पांच पर कांग्रेस का कब्जा है। इस वजह से पार्टी यहां पूरी ताकत लगा रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ पिता की परंपरागत सीट छिंदवाड़ा से दूसरी बार मैदान में हैं। भाजपा को सिर्फ इसी एक सीट की चिंता है क्योंकि 2019 में छिंदवाड़ा ही अकेली ऐसी सीट थी, जहां मोदी लहर नहीं चली थी। इस बार बीजेपी ने छिंदवाड़ा में कांग्रेस के नेताओं को अपने पाले में कर नाथ परिवार पर मनौवैज्ञानिक दबाव बनाया है।
ऐसे में कांग्रेस के साथ कमलनाथ भी समझ गए होंगे कि मुकाबला अलग तरह का होगा। भाजपा इस सीट के लिए 1997 जैसा प्रयोग भी कर सकती है। तब कद्दावर नेता सुंदरलाल पटवा को छिंदवाड़ा भेजा गया था और वे जीतकर आए थे। इस बार भी प्रहलाद पटेल जैसे बड़े नाम की चर्चाएं हैं। पार्टी ने जिन पांच सीटों को होल्ड किया है, उनमें छिंदवाड़ा शामिल है।
राजेंद्र मालवीय नया चेहरा हैं। राजेंद्र के पिता राधाकिशन मालवीय राज्यसभा सांसद और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं। इस सीट से पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा और पूर्व विधायक विपिन वानखेड़े के नाम की भी चर्चा थी। दोनों नेता विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। जातिगत समीकरण को देखते हुए राजेंद्र को मौका मिल गया।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के करीबी राधेश्याम मुवेल पहली बार चुनावी मैदान में हैं। वे तीन विधानसभा चुनाव से लगातार मनावर से टिकट मांग रहे थे। भाजपा के लिए धार सीट हाई रिस्क पर है क्योंकि यहां की आठ विधानसभा सीटों में से 5 पर कांग्रेस विधायक चुन कर आए हैं। बीजेपी ने इस सीट पर अभी उम्मीदवार घोषित नहीं किया है।
पोरलाल खरते एक साल पहले सरकारी नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर राजनीति में आए। ये भी विधानसभा चुनाव में सेंधवा से दावेदार थे और टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले थे लेकिन पार्टी के आश्वासन के बाद मान गए। पार्टी ने अब उनका ध्यान रख लिया। खरगोन संसदीय क्षेत्र में विधानसभा चुनाव में भाजपा की लीड कम हुई है।
छिंदवाड़ा के अलावा बैतूल ही ऐसी सीट है, जहां कांग्रेस ने प्रत्याशी नहीं बदला है। 2019 में रामू टेकाम तीन लाख से ज्यादा वोटों से भाजपा के दुर्गादास उइके से हार गए थे। इस बार फिर दोनों के बीच मुकाबला होगा। कांग्रेस के पास रामू टेकाम के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है।