इस परीक्षण से पता चलता है, धूम्रपान करने वाले के फेफड़े कितने क्षतिग्रस्त हैं

धूम्रपान करने वालों के फेफड़ों के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन यह पता लगान मुष्किल होता है कि यह इससे फेफड़ों का कितना नुकसान पहुंचता है। लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक तकनीक के माध्यम से इसका पता लगा लिया है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि रक्त परीक्षण का उपयोग इसमें मदद करता है। वैसे तो रक्त परीक्षण रक्तप्रवाह में एंडोथेलियल माइक्रोपार्टिकल्स की मात्रा को मापता है। लेकिन वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि धूम्रपान करने वालों के रक्त में इन माइक्रोप्रोटिकल्स की मात्रा अधिक होती है। इस परीक्षण से यह पता लगाया जा सकता है कि फेफड़ों को कितना खींचा गया है और फेफड़ों के आंतरिक माइक्रोस्ट्रक्चर को कितना खो दिया गया है।

वैज्ञानिक इस परीक्षण का अग्नि अलार्म के समान बताया है। जब अलार्म बजता है, तो इसका मतलब यह नहीं हे कि आग लग जाती है, लेकिन लोगों सावधान कर दिया जाता है। यदि कोई व्यक्ति पंद्रह से बीच प्रतिशत धूम्रपान करता है तो उसे वातस्फीति(एम्फाइजिमा) मिलती है। लोग जैसे-जैसे धूम्रपान को बढ़ाते है ये वातस्फीति भी बढ़ती जाती है। वैज्ञानिक इस वातस्फीति के बारे में बताते है कि यह अपरिवर्तनीय होती है और खराब हो जाती है, खासकर तब, जब अगर कोई रोगी धूम्रपान करना बंद नहीं करता है।

वातस्फीति के संबंध में वैज्ञानिकों ने हाल ही में पता लगाया है कि वातस्फीति कोशिका नेटवर्क को नुकसान पहुंचा सकती है। इसका नतीजा यह होता है कि एक कोशिका वाहिका का अंदरूनी अस्तर क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिससे टुकडे हो जाते हैं। इसके बाद एंडोथेलियल माइक्रोपा्रर्टिकल्स-रक्तप्रवाह में प्रवेष करते हैं। हालांकि अभी तक लैब में रक्त परीक्षण का उपयोग नहीं किया जाता है। इस तकनीक को लाने के लिए कुछ साल लगने की संभावना जताई जा रही है।

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