मणिपुर मामले में आरोपियों को पकड़ने में देरी की वजह से पुलिस पर सवाल खड़ने होने लगे हैं. बता दें कि एक ऐसी तकनीक भी है जिसका इस्तेमाल अगर किया जाए तो मणिपुर जैसी घटनाओं में शामिल अपराधियों की आसानी से पहचाना की जा सकती है. जानें इस तकनीक के बारे में सबकुछ.
महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं देश दुनिया में हर तरफ से दिखाई सुनाई देती हैं. किसी भी तरह की हिंसा हो, आमतौर पर ये देखा जाता है कि उपद्रवी महिलाओं को अपना निशाना बनाते हैं. ऐसा ही कुछ मणिपुर में, जहां सरकार से जातियों की लड़ाई में महिलाओं के साथ अभद्रता की गई और उन्हें निर्वस्त्र कर सड़कों पर घुमाया गया.
महिलाओं के साथ हुई दरिंदगी की इस घटना ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है. वीडियो सामने आने के बाद पुलिस ने अब तक इस मामले में चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. हालांकि, आरोपियों को पकड़ने में देरी की वजह से पुलिस पर सवाल खड़े हो रहे हैं. लेकिन एक तकनीक ऐसी है अगर उसका इस्तेमाल किया जाए तो मणिपुर जैसी घटनाओं में शामिल उपद्रवियों को आसानी से पहचाना जा सकता है. ओडिशा में चेहरे की पहचान करने वाली ये तकनीक मौजूद है जिसे हम Facial Recognition तकनीक के नाम से जानते हैं. जानिए कैसे ये टेक्नोलॉजी आरोपियों को पकड़ने में मददगार साबित हो सकती है.
क्या है और कैसे काम करती है ये तकनीक?
अगर आप इस बात से वाकिफ नहीं है कि आखिर ये तकनीक है क्या? तो आइए आपको आसान भाषा में इस Facial Recognition Technology के बारे में समझाते हैं. दरअसल, फेशियल रिकग्निशन बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी का ही एक हिस्सा है जो व्यक्ति के चेहरे से उसकी पहचान करती है, ये तकनीक किसी व्यक्ति को उसके नाकर, आंखों के रेटिना और चेहरे को स्कैन कर पहचानती है. इस तकनीक को इस्तेमाल करने से पहले इसके डेटाबेस में चेहरे से जुड़े डेटा को फीड किया जाता है और फिर यदि कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसका डेटा फीड है अगर कैमरा के आगे आता है तो फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी फीड किए डेटा की मदद से उस व्यक्ति की पहचान करती है.
फेशियल रिकग्निशन की मदद से दबोचे गए अपराधी
कुछ समय पहले ओडिशा पुलिस ने अपराधियों को धर दबोचने के लिए स्मार्ट तरीका अपनाते हुए चेहरे की पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर की मदद ली. इस टेक्नोलॉजी की मदद से पुलिस ने रथ यात्रा के दौरान 90 से ज्यादा अपराधियों को धर दबोच लिया था जो झटपटमारी जैसे काम करते थे. पुलिस ने अपराधियों को पकड़ने के लिए बुलेट कैमरों की मदद लेनी शुरू कर दी है. बुलेट कैमरा सबसे हाई टेक कैमरा माना जाता है, ओडिशा पुलिस का ऐसा मानना है कि अपराधियों का पता लगाने और अपराध को रोकने की दिशा में यह तकनीक मददगार साबित हो सकती है.
पुलिस के डेटाबेस में मौजूद अपराधियों के चेहरे की इमेज को चेहरे की पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर से जोड़ दिया गया था. जैसे ही कोई भी अपराधी इस कैमरे के आगे से गुजरता है तो उस अपराधी का चेहरा कैमरा में कैद हो जाता है और फिर सॉफ्टवेयर की मदद से अपराधी की पहचान और लोकेशन का पता चल जाता है जिस वजह से पुलिस को अपराधियों को दबोचने में मदद मिलती है.
देश के अन्य राज्यों में भी होनी चाहिए ये तकनीक
अगर ओडिशा में इस्तेमाल की गई ये तकनीक अगर मणिपुर में भी होती तो आज शायद मंजर कुछ और ही होता और हालात इतने बिगड़े नहीं होते. हर राज्य सरकार को ओडिशा की तरह ही अपने राज्यों में इस तरह के फेस रीड करने वाले सॉफ्टवेयर से पैक्ड बुलेट कैमरा लगाने चाहिए ताकि अपराध की बढ़ती दर को कम किया जा सके और बिना देरी किए पुलिस अपराधियों की पहचान कर उन्हें धर दबोच सके.