इस सम्पूर्ण सृष्टि में मानव शरीर सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए हर प्रकार से हमें इसकी रक्षा करनी चाहिये। परन्तु, मानव अपनी क्षणिक मानसिक तृप्ति के लिये तरह-तरह के सडे़-गले व्यंजन जो शरीर के लिये निकारक हैं, खाता रहता है। इससे शरीर में अनेकों तरह के कीडे़ पैदा हो जाते हैैं और यही शरीर की अधिकतर बीमारियों के जनक बनते हैैं। ये कीडे़ दो तरह के होते हैं। प्रथम, बाहर के कीडे़ और द्वितीय, भीतर के कीडे़। बाहर के कीडे़ सर में मैल और शरीर में पसीने की वजह से जन्मते हैं, जिन्हे जूँ, लीख और चीलर आदि नामों से जानते हैं।
न्दर के कीड़े तीन तरह के होते हैं। प्रथम पखाने से पैदा होते हैैं, जो गुदा में ही रहते हैं और गुदा द्वार के आसपास काटकर खून चूसते हैं। इन्हे चुननू आदि अनेकों नामों से जानते हैं। जब यह ज्यादा बढ़ जाते हैं, तो ऊपर की ओर चढ़ते हैं, जिससे डकार में भी पखाने की सी बदबू आने लगती है। दूसरे तरह के कीडे़ कफ के दूषित होने पर पैदा होते हैं, जो छः तरह के होते हैं। ये आमाशय में रहते हैं और उसमें हर ओर घूमते है। जब ये ज्यादा बढ़ जाते हैं, तो ऊपर की ओर चढ़ते हैं, जिससे डकार में भी पखाने की सी बदबू आने लगती है।
तीसरे तरह के कीडे़ रक्त के दूषित होने पर पैदा हो सकते हैं, ये सफेद व बहुत ही बारीक होते हैं और रक्त के साथ-साथ चलते हुये हृदय, फेफडे़, मस्तिष्क आदि में पहुँचकर उनकी दीवारों में घाव बना देते हैं। इससे सूजन भी आ सकती है और यह सभी अंग प्रभावित होने लगते हैं। इनके खून में ही मल विसर्जन के कारण खून भी धीरे-धीरे दूषित होने लगता है, जिससे कोढ़ जनित अनेकों रोग होने का खतरा बन जाता है।
एलोपैथिक चिकित्सा के मतानुसार अमाशय के कीड़े खान-
पान की अनियमितता के कारण पैदा होते हैं,जो छः प्रकार के
होते है।
1- राउण्ड वर्म
2- पिन वर्म
3- हुक वर्म
4- व्हिप वर्म
5- गिनी वर्म आदि तरह के कीडे़ जन्म लेते हैं।
कीडे़ क्यों पैदा होते हैं बासी एवं मैदे की बनी चीजें अधिकता से खाने, ज्यादा मीठा गुड़-चीनी अधिकता से खाने, दूध या दूध से बनी अधिक चीजें खाने, उड़द और दही वगैरा के बने व्यंजन ज्यादा मात्रा में खाने, अजीर्ण में भोजन करने, दूध और दही के साथ-साथ नमक लगातार खाने, मीठा रायता जैसे पतले पदार्थ अत्यधिक पीने से मनुष्य शरीर में कीडे़ पैदा हो जाते हैं।
कीडे़ पैदा होने के लक्षण एवं बीमारियाँ शरीर के अन्दर मल, कफ व रक्त में अनेकों तरह के कीडे़ पैदा होते हैं। इनमें खासकर बड़ी आंत में पैदा होने वाली फीता कृमि (पटार) ज्यादा खतरनाक होती है। जो प्रत्येक स्त्री-पुरूष व बच्चों के पूरे जीवनकाल में अनेकों बीमारियों केा जन्म देती हैं, जो निम्नवत है:
ये कीड़े संसार के समस्त स्त्री-पुरुष व बच्चों में पाये जाते है। यह छोटे-बडे 1 सेन्टीमीटर से 1मीटर तक लम्बे हो सकते हैं एवं इनका जीवनकाल 10से12वर्ष तक रहता है। यह पेट की आंतो को काटकर खून पीते है जिससे आंतो में सूजन आ जाती है। साथ ही यह कीड़े जहरीला मल विसर्जित भी करते हैं जिससे पूरा पाचन तंत्र बिगड़ जाता है। यह जहरीला पदार्थ आंतो द्वारा खींचकर खून में मिला दिया जाता है जिससे खून में खराबी आ जाती है। यही दूषित खून पूरे शरीर के सभी अंगों जैसे हृदय, फेफड़े, गुर्दे, मस्तिष्क आदि में जाता है जिससे इनका कार्य भी बाधित होता है और अनेक रोग जन्म ले लेते हैं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ जाती है और अनेक रोग हावी हो जाते हैं। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को प्रतिवर्ष कीड़े की दवा जरूर लेनी चाहिए। एलोपैथिक दवाओं में ज्यादातर कीड़े मर जाते हैं, परन्तु जो ज्यादा खतरनाक कीड़े होते हैं, जैसे- गोलकृमि, फीताकृमि, कद्दूदाना आदि, जिन्हें पटार भी कहते हैं, वे नहीं मरतें हैं। इन कीड़ों पर एलोपैथिक दवाओं को कोई प्रभाव नहीं पडता है, इन्हें केवल आयुर्वेदिक दवाओं से ही खत्म किया जा सकता है। ये कीड़े मरने के बाद फिर से हो जाते हैं। इसका कारण खान-पान की अनियमितता है। मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिये प्रत्येक वर्ष कीड़े की दवा अवश्य खानी चाहिये।
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