रूस और यूक्रेन के बीच विवाद गहराता जा रहा है। दोनों देशों के बीच लाखों सैनिकों की तैनाती से जंग जैसे हालात हैं। अमेरिका का कहना है कि रूस के सैनिक यूक्रेन पर कभी भी हमला कर सकते हैं। रूस और यूक्रेन के बीच अगर जंग होती है तो यह महज दो देशों के बीच युद्ध नहीं होगा। यूक्रेन की मदद के लिए अमेरिका और नाटो के सदस्य देश आगे जरूर आएंगे। अगर ऐसा हुआ तो चीन प्रत्यक्ष रूप से रूस की मदद में आगे आ सकता है। ऐसी स्थिति में इसे महायुद्ध बनने से कोई नहीं रोक सकता। सवाल यह है कि क्या यह तीसरे महायुद्ध की दस्तक होगी?
1- प्रो. हर्ष वी पंत ने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच निश्चित रूप से एक महाजंग जैसी तैयारी चल रही है। नाटो के सदस्य देश और अमेरिका भी इस युद्ध को टालने के लिए कूटनीतिक नहीं बल्कि सैन्य दबाव का अभ्यास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि महाजंग की तैयारी ही महायुद्ध को टालने के लिए है। नाटो और अमेरिका यह दिखा रहे हैं कि जंग के हालात में यूक्रेन अकेला नहीं है। इसलिए वह इस प्रकार का दबाव रूस पर बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौर में कोई भी देश जंग की स्थिति में नहीं है। उन्होंने कहा कि दिक्कत यह है कि रूस और यूक्रेन के बीच विवाद का कूटनीतिक समाधान नहीं है। ऐसे में सैन्य रणनीति के तहत नाटो और अमेरिका इस युद्ध को टालने की कोशिश कर रहे हैं।
2- प्रो. हर्ष वी पंत ने कहा कि दरअसल, यूक्रेन और रूस के बीच विवाद कोई ताजा नहीं है। 1990 के दशक तक यूक्रेन पूर्व सोवियत संघ का ही प्रमुख हिस्सा था। सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन और रूस दोनों संप्रभु राष्ट्र बन गए। यह शीत युद्ध का दौर था। इस दौरान सोवियत संघ और अमेरिका के बीच तनाव चरम पर था। सोवियत संघ के विघटन के बाद इससे अलग हुए राज्यों ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति स्वीकार की। हालांकि, सोवियत संघ के विघटन के बाद भी रूस और अमेरिका के बीच रिश्ते बहुत मधुर नहीं रहे। दोनों देशों के बीच संबंधों में एक खिंचाव रहा। उधर, यूरोप से सटे स्वतंत्र राज्य पश्चिमी देशों और अमेरिका के नजदीक आए। सोवियत संघ से स्वतंत्र हुए राज्यों का यूरोपीय देशों और अमेरिका की निकटता रूस को पसंद नहीं आई।
3- उन्होंने कहा कि यूक्रेन स्वतंत्र होने के बाद यूरोपीय संघ के निकट आया। यूक्रेन की यूरोपीय संघ से निकटता रूस को कभी नहीं भाई। इतना ही नहीं वर्ष 2014 के बाद से ही यूक्रेन अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य संगठन नाटो का सदस्य देश बनना चाहता है। नाटो और यूक्रेन की समीपता ने रूस की चिंता को बढ़ा दिया। रूस कदापि नहीं चाहता कि उसकी सीमा तक नाटो की पहुंच हो। रूस की यह भी नाराजगी है कि यूक्रेन के चलते अमेरिकी सेना और नाटो के सदस्य देश उसकी सीमा तक पहुंच रहे हैं। रूस इसे एक बड़े खतरे के रूप में देखता है।
4- प्रो. पंत ने कहा कि खास बात यह है कि यूक्रेन और रूस की सीमा एक दूसरे से मिलती है, ऐसे में सीमा पर नाटो और अमेरिका की हलचल रूस की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। उन्होंने कहा है कि रूस को जब भी अपनी सुरक्षा पर खतरा लगेगा वह यूक्रेन के साथ युद्ध से पीछे नहीं हटेगा। हालांकि रूस यह बार-बार दावा करता रहा है कि वह यूक्रेन पर हमला नहीं करेगा। उधर, अमेरिका की खुफिया रिपोर्ट के आधार पर यह कहा जा रहा है कि जनवरी या अंत तक रूस यूक्रेन पर हमला कर सकता है। यह संदेह नाजायज नहीं है, जिस तरह यूक्रेन और रूस की सीमा पर रूसी सैनिकों का जमावड़ा लग रहा है उससे यह संकेत निकलता है। कई रिपोर्ट्स में यह दावा किया जा रहा है कि करीब एक लाख सैनिक सीमा पर तैनात है
1- बता दें कि 30 देशों के सैन्य संगठन नाटो ने कहा कि वह बाल्टिक सागर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। इसके साथ ही नाटो के कई सदस्यों ने अपने सैनिक और साजो-सामान भेजने शुरू कर दिए हैं। डेनमार्क बाल्टिक सागर में एक युद्धपोत भेज रहा है। साथ ही डेनमार्क लिथुआनिया में एफ-16 युद्धक विमान तैनात कर रहा है। वहीं स्पेन नाटो के समुद्री बल को ताकत देने के लिए अपने जहाज भेज रहा है। स्पेन बुल्गारिया में भी अपने लड़ाकू विमान भेजने पर विचार कर रहा है। दूसरी ओर फ्रांस बुल्गारिया को सैनिक भेजने के लिए तैयार है।
2- तुर्की ने भी यूक्रेन की सहायता के लिए सैकड़ों की संख्या में बायरकटार TB2 ड्रोन सौंपा है। इन ड्रोन्स की मदद से यूक्रेन की सेना रूसी सीमा की रखवाली भी कर रही है। हाल में ही खबर आई थी कि तुर्की में बने इन ड्रोन के जरिए यूक्रेन ने रूस समर्थित अलगाववादियों को निशाना बनाया था। नाटो महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने बयान जारी कर कहा कि नाटो अपने गठबंधन के सभी सहयोगियों की रक्षा करेगा। इसके लिए वह सभी जरूरी कदम उठाएगा। वहीं, समाचार एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक क्रेमलिन का कहना है कि नाटो की तैनाती गतिरोध को बढ़ाने का काम करेगी।
वर्ष 2014 तक विक्टर यानुकोविच के राष्ट्रपति पद से अपदस्थ होने तक दोनों देशों के रिश्ते काफी मजबूत थे। हालांकि, उनके हटते ही यूक्रेन में रूस विरोधी सरकार आ गई। इस कारण यूक्रेन के रूसी भाषी क्षेत्रों में अस्थिरता पैदा हुई। सबसे अधिक प्रभावित क्रीमिया में बढ़ते यूक्रेन विरोधी विद्रोह का फायदा रूस को मिला। इसी को आधार बनाकर 2014 में रूस ने क्रीमिया पर हमला किया और कब्जा कर लिया। तब से दोनों देशों के बीच तनाव लगातार बना हुआ है। तब से लेकर अबतक क्रीमिया में रूस समर्थक विद्रोहियों और यूक्रेनी सेना के बीच जारी लड़ाई में 14 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।