भारी-भरकम आवाज, सिहरन पैदा कर देने वाली मुस्कुराहट और किसी को भी डरा सकने वाली आंखें। ये थे बॉलीवुड के सबसे खतरनाक विलेन अमरीश पुरी। आज उनकी 18वीं पुण्यतिथि है। पुरी साहब जबरदस्त कलाकार थे। ये उनकी अदाकारी का ही कमाल था कि परदे पर निभाए उनके विलेन वाले किरदार चाहे मि. इंडिया का मोगैंबो हो, तहलका का डॉन्ग हो या दामिनी का इंद्रजीत सिंह चड्ढा- सारे कैरेक्टर्स अमर हैं।
उनकी विलेन वाली इमेज का रियल लाइफ में भी लोगों में इतना खौफ था कि उनके बेटे के दोस्त उनके घर आने से इसलिए घबराते थे कि कहीं पुरी साहब से सामना न हो जाए। मगर अपनी रील लाइफ के उलट अमरीश पुरी एक उम्दा और दिलदार इंसान थे। हालांकि समय के पक्के थे, इतने पक्के कि लेट-लतीफी के चलते उन्होंने एक बार गोविंदा को थप्पड़ भी जड़ दिया था। वे अपने जमाने के सबसे महंगे विलेन थे। कहा जाता है कि मि. इंडिया के लिए उनकी फीस एक करोड़ रुपए थी।
कोई 22 साल की उम्र में उन्होंने फिल्मों में आने के लिए पहला ऑडिशन दिया, तब ये कहकर उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया कि उनका चेहरा पथरीला सा है, हीरो के रोल में नहीं जचेंगे। फिर वो राज्य कर्मचारी बीमा निगम में सरकारी नौकरी पर लग गए। 20 साल से ज्यादा वहीं रहे फिर 40 की उम्र के आसपास बतौर विलेन फिल्मों में कदम रखा। बस, यहीं से उनकी जिंदगी बदली और वे भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े विलेन बनकर उभरे।
अमरीश पुरी का जन्म 22 जून 1932 को पंजाब के नवांशहर में हुआ था। ये मशहूर गायक के.एल. सहगल के कजिन थे, वहीं इनके दोनों बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी भी एक्टर थे। अमरीश ने शुरुआती पढ़ाई पंजाब में करने के बाद शिमला के बी.एम. कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था क्योंकि अमरीश के दोनों भाई हिंदी सिनेमा के जाने-माने चेहरे थे तो अमरीश भी हीरो बनने का ख्वाब देखा करते थे। महज 22 साल की उम्र में अमरीश भी भाइयों के पास मुंबई पहुंच गए।
यहां उन्हें एक हीरो के रोल के ऑडिशन के लिए बुलाया गया, लेकिन पहले ही ऑडिशन में ये फेल हो गए। कास्टिंग करने वाले व्यक्ति ने अमरीश को ये कहते हुए रिजेक्ट कर दिया कि इनका चेहरा बेहद पथरीला है। हीरो बनने का सपना टूटा तो इन्हें कर्मचारी राज्य बीमा निगम में मामूली क्लर्क की नौकरी मिल गई। नौकरी के दिनों में ही अमरीश की मुलाकात NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) के निदेशक इब्राहिम अल्काजी से हुई और उनके कहने पर ये थिएटर से जुड़ गए। शुरुआत में इन्होंने स्टेज की सफाई करने जैसे कई मामूली काम किए, लेकिन फिर दमदार अभिनय के दम पर ये पृथ्वी थिएटर के मंझे कलाकारों में जगह बनाने लगे।
22 सालों तक काम कर ये मामूली क्लर्क से ऑफिसर बन चुके थे, लेकिन चंद फिल्मों में काम मिलने लगा तो अमरीश अपनी सरकारी नौकरी छोड़ना चाहते थे। अमरीश अपने से कम उम्र के रंगकर्मी सत्यदेव दुबे को अपना गुरु मानते थे, उन्हीं के कहने पर अमरीश ने नौकरी करना जारी रखा। नौकरी के बीच ही 1956 की फिल्म भाई-भाई में अमरीश को एक मामूली चंद सेकेंड का रोल मिला था। उनके करियर का पहला बड़ा रोल 1970 की फिल्म प्रेम पुजारी में रहा।
इस समय अमरीश 39 साल के थे। जब फिल्मों में अच्छा काम मिलने लगा तो अमरीश ने सरकारी नौकरी छोड़ दी और फिल्मों पर ही फोकस किया। 1980 की फिल्म हम पांच से अमरीश पुरी को देशभर में पहचान मिली और उन्हें दमदार अभिनय के बाद विलेन के रोल मिलने लगे। विधाता में पहली बार अमरीश ने जगावर चौधरी नाम से विलेन का रोल निभाया। आगे अमरीश शक्ति, हीरो जैसी फिल्मों में लगातार काम करते हुए पॉपुलर विलेन बन गए।
मिस्टर इंडिया के मोगैंबो – कल्ट क्लासिक फिल्म मिस्टर इंडिया में अमरीश मोगैंबो के आइकॉनिक रोल में नजर आए। प्रोड्यूसर बोनी कपूर चाहते थे कि मोगैंबो के लुक में कोई कमी नहीं छोड़ी जाए, इसके लिए उन्होंने रकम की कोई सीमा तय नहीं की और कॉस्ट्यूम डिजाइनर को आदेश दिए कि वो जो चाहें करें, लेकिन नया लुक बनाएं।
कई रातों की कड़ी मेहनत के बाद 25 हजार रुपए के बड़े खर्च में ये लुक तैयार हो सका। 1985 में जब फिल्म बनना शुरू हुई उस समय कॉस्ट्यूम में इतना खर्च करना बड़ी बात थी। कॉस्ट्यूम का ज्यादातर सामान इंग्लैंड से मंगवाया गया था। जब लुक तैयार हुआ तो बोनी ने डिजाइनर को 1 हजार रुपए की बख्शीश दी थी।
अपनी ऑटोबायोग्राफी में अमरीश पुरी ने लिखा था कि मोगैंबो का रोल हिटलर से मिलता-जुलता था, जिसका नाम क्लार्क गेबल स्टारर 1953 की हॉलीवुड फिल्म से लिया गया था। ऐसे में मोगैंबो के रोल में ढलने के लिए अमरीश 20 दिनों तक अंधेरे कमरे में बंद रहे थे। उन्होंने कई दिनों तक उजाला नहीं देखा था।
अमरीश पुरी एक रेयर कलाकार थे, साथ ही उनके शरीर की बनावट भी हट कर थी। उन्हें दोनों पैर में अलग साइज के जूते लगते थे। एक पैर का नाप था 11 नंबर और दूसरे का 12 नंबर। उनके कॉस्ट्यूम डिजाइनर माधव इतनी तरकीब से जूते डिजाइन करते थे कि अमरीश को पता भी नहीं चलता था कि उन्होंने दोनों 12 नंबर के जूते पहने हैं क्योंकि नए जूते काटते थे, इसलिए वो एक महीने पहले ही कॉस्ट्यूम और जूते पहनकर ट्रायल लेते थे। शूटिंग शुरू होने के 15 दिन पहले ही अमरीश उन्हें पहन-पहनकर पुराने कर लेते थे।
1993 की फिल्म दामिनी में अमरीश ने इंद्रजीत चड्ढा नाम के वकील का रोल निभाया था। फिल्म में लटें संवारते हुए तोंद लिए वकील बनने का आइडिया खुद अमरीश पुरी का ही था। उन्होंने ही मेकर्स से ये लुक रखने की डिमांड की थी। तोंद दिखाने के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइनर ने खास जैकेट तैयार किया था, जिसे पहनकर अमरीश मोटे दिखते थे।
दूसरी हॉलीवुड फिल्म इंडियाना जोन्सः द टेंपल ऑफ डूम (1984) के लिए अमरीश पुरी ने सिर मुंडवाया था। इस लुक में वो इतने बेहतरीन लगे कि उन्होंने हमेशा गंजे रहने का फैसला किया। इसी के बाद अमरीश 1987 की फिल्म मिस्टर इंडिया में बिना बालों के मोगैंबो के लुक में नजर आए थे।
सबसे पहले अमरीश पुरी 1982 की हॉलीवुड फिल्म गांधी में नजर आए थे। हॉलीवुड डायरेक्टर रिचर्ड एटनबरो की ये फिल्म थी तो विदेशी, लेकिन इसमें ज्यादातर कलाकार भारतीय थे। इसके बाद अमरीश 1984 की फिल्म इंडियान जोन्सः द टेंपल ऑफ डूम में मौला राम के रोल में दिखे। दरअसल स्टीवन स्पीलबर्ग अमरीश की हिंदी फिल्म देखकर इतना इम्प्रेस हुए कि उन्होंने इन्हें अपनी फिल्म के लिए विलेन बनाने का फैसला किया।
जब स्टीवन ने उन्हें ऑडिशन देने के लिए अमेरिका बुलाया तो उन्होंने ये कहते हुए इनकार कर दिया कि अगर ऑडिशन लेना है तो आप खुद मेरी हवेली पर आइए। फिर जब गांधी के डायरेक्टर रिचर्ड एटनबरो ने समझाया तो अमरीश फिल्म करने के लिए राजी हो गए।
1984 की फिल्म इंडियाना जोन्स में अमरीश जिस मौला राम बाबा के किरदार में थे उसकी फिल्म में निगेटिव छवि दिखाई गई थी। भारतीय पंडित की गलत छवि दिखाए जाने से भारतीय सेंसर बोर्ड को ऐतराज था, जिससे ये फिल्म भारत में रिलीज नहीं होने दी गई। हालांकि इस फिल्म के बाद अमरीश एक इंटरनेशनल स्टार बन गए थे, लेकिन भारत में उन्हें ऐसी फिल्म करने पर एंटी नेशनल कहा जाने लगा था।
इंटरनेशनल स्टार बनने के बाद अमरीश को कई और हॉलीवुड फिल्में ऑफर हुईं, लेकिन ज्यादातर रोल ऐसे थे जिनमें उन्हें ऐसे इंडियन का रोल प्ले करना था, जिसकी छवि डार्क या निगेटिव दिखाई जाने वाली थी। ऐसे में अमरीश ने हॉलीवुड से रिश्ता तोड़ लिया और वापस भारत आकर हिंदी फिल्मों में काम किया।
अमरीश पुरी समय के बेहद पाबंद थे। उनके लिए एक मिनट की कीमत भी काफी ज्यादा थी। अमरीश पुरी ने 80 के दशक में गोविंदा के साथ दो कैदी और फर्ज जैसी फिल्मों में काम किया। एक दिन कॉल टाइम सुबह 9 बजे का होने के बावजूद गोविंदा शूटिंग पर शाम 6 बजे पहुंचे। इस बात से अमरीश इतना नाराज हुए कि पहले तो उन्हें खूब बातें सुनाईं और फिर गुस्से में उन्हें थप्पड़ जड़ दिया। इसके बाद से ही दोनों ने कभी साथ में काम नहीं किया।
नासिर हुसैन के निर्देशन में बनी 1985 की फिल्म जबरदस्त में अमरीश पुरी ने काम किया। इस फिल्म में डायरेक्टर नासिर हुसैन के भतीजे आमिर उन्हें असिस्ट कर रहे थे। आमिर सेट पर उस समय कंटीन्यूटी देखते थे। एक दिन अमरीश एक्शन सीन शूट करते हुए बार-बार जगह बदल रहे थे और आमिर उन्हें बार-बार टोक रहे थे।
अमरीश नहीं जानते थे आमिर, डायरेक्टर नासिर के बेटे हैं। जब आमिर पर ध्यान देने से अमरीश को बार-बार एक ही सीन शूट करना पड़ा तो वो गुस्से में चिढ़ गए और उन्होंने आमिर को खूब डांटा। सेट पर सन्नाटा छा गया था। कुछ समय बाद नासिर अमरीश के पास आए और कहा कि आमिर की गलती नहीं है वो आपकी गलती ठीक करवा रहा था। अमरीश को बात में पछतावा हुआ और उन्होंने आमिर से माफी भी मांगी।
एक फिल्म की शूटिंग के दौरान अमरीश को महज 15 मिनट का शॉट देना था। वो तैयार थे, लेकिन साथी कलाकार बार-बार अपनी लाइन्स भूल रहा था। शूटिंग में इतना समय लग रहा था कि अमरीश गुस्से में सेट छोड़कर चले गए। डायरेक्टर सतीश कौशिक ने खूब कोशिशों के बाद अमरीश को मनाया और उनका सीन पहले शूट करवाया। बता दें कि अमरीश पुरी ने सतीश कौशिक के निर्देशन में दो फिल्में प्रेम और बधाई हो बधाई की हैं।
निगेटिव रोल से शुरुआत करने वाले अमरीश पुरी ने 90 के दशक में पॉजिटिव के किरदार निभाने शुरू किए थे। उनका कद काफी बढ़ चुका था और कई बार ऐसा भी होता था कि मुंहमांगी फीस न मिलने पर वो फिल्म छोड़ दिया करते थे। 1998 के एक इंटरव्यू में इस बात का जिक्र है कि एन. एन. सिप्पी की एक फिल्म उन्होंने सिर्फ इसलिए छोड़ दी थी, क्योंकि उन्हें मांग के मुताबिक 80 लाख रुपए नहीं दिए जा रहे थे।
सिप्पी की फिल्म छोड़ने पर अमरीश ने एक इंटरव्यू में कहा था, “जो मेरा हक है, वो मुझे मिलना चाहिए। मैं एक्टिंग के साथ कोई समझौता नहीं करता। तो फिल्म के लिए कम पैसा स्वीकार क्यों करूं। लोग मेरी एक्टिंग देखने आते हैं। प्रोड्यूसर्स को पैसा मिलता है, क्योंकि मैं फिल्म में होता हूं। तो क्या प्रोड्यूसर्स से मेरा चार्ज करना गलत है? जहां तक सिप्पी की फिल्म की बात है तो वह मैंने बहुत पहले साइन की थी। वादा था कि साल के अंत में फिल्म शुरू होगी, लेकिन तीन साल बीत चुके हैं। मार्केट का भाव बढ़ गया है। अगर वो मुझे उतना पैसा नहीं दे सकते तो मैं उनकी फिल्म नहीं कर सकता।”
अमरीश पुरी अपनी आवाज के लिए अलग पहचान रखते थे। ऐसे में वो चाहते थे कि लोग ज्यादा से ज्यादा उनकी आवाज सिर्फ फिल्मों में ही सुनें। ऐसे में कभी ऑडियो इंटरव्यू नहीं देते थे या इंटरव्यू के दौरान अपनी आवाज रिकॉर्ड नहीं करने देते थे। अमरीश इंटरव्यू तभी देते थे जब रिकॉर्डर बंद हो। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि अमरीश ने इस शर्त पर इंटरव्यू दिया कि अगर कवर पेज में जगह मिलेगी तभी बात करूंगा।
मशहूर फिल्म डायरेक्टर श्याम बेनेगल ने एक इंटरव्यू में बताया था, “एक बार हमारे एक दोस्त और उसकी फैमिली का एक्सीडेंट हो गया। पत्नी सर्वाइव कर गई, लेकिन दोस्त और उसका बेटा क्रिटिकल थे। हॉस्पिटल में उनके लिए रेयर ब्लड ग्रुप की जरूरत पड़ी, जो कि अमरीश का ग्रुप भी था। हमारे उस दोस्त से उनका कोई परिचय नहीं था। बावजूद इसके वो अस्पताल पहुंचे और डॉक्टर्स से बोले, ‘मैं ब्लड देना चाहता हूं, जितनी जरूरत हो ले लीजिए।’ दुर्भाग्य से दोस्त और उसका बेटा बचे नहीं। लेकिन बिना किसी के कहे अमरीश का ब्लड देना मुझे आज भी याद है।”
फिल्मों में भले ही ये लोगों को खुद से नफरत करवा दें, लेकिन असल में अमरीश बेहद कोमल व्यवहार वाले व्यक्ति थे। परिवार को समय देना, बच्चों के होमवर्क करवाना हो या उनके बर्थडे पार्टी में सारे अपनों को एक छत के नीचे जमा करना हो, अमरीश ने हमेशा से ही परिवार को तवज्जो दी। कोई परेशान हो तो मदद करने के लिए दोबारा नहीं सोचते थे।
अमरीश पुरी के बेटे राजीव पुरी ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि फिल्मों में अमरीश की छवि इतनी डरावनी दिखाई जाती थी कि बचपन में उनके दोस्त अमरीश से खूब डरते थे। ज्यादातर दोस्त तो अमरीश के डर से घर ही नहीं आते थे।