वो पहली भारतीय लड़की थी, जिसने कॉमनवेल्थ खेलों और एशियन गेम्स में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता था। इकलौती ऐसी लड़की थी, जिसने एक दर्जन से ज्यादा इंटरनेशनल चैंपियनशिप्स में भारत के लिए मेडल जीते।
वो पहली भारतीय खिलाड़ी थी, जिसका नाम लॉरियस वर्ल्ड स्पोर्ट अवॉर्ड के लिए नामित हुआ। भारत सरकार ने उसे मेजर ध्यानचंद खेलरत्न अवॉर्ड, अर्जुन अवॉर्ड और पद्मश्री से सम्मानित किया।
इतनी उपलब्धियों, सम्मान और इज्जत के बाद भी वो लड़की इतनी वलनरेबल थी कि एक मर्द सिर्फ अपने पद, सामाजिक ओहदे और राजनीतिक रसूख के चलते उसका यौन शोषण कर सकता था। वो लड़की अकेली नहीं थी, उसके जैसी ढेर सारी लड़कियां थीं।
उस आदमी की हैसियत इतनी ही थी कि वो बड़ी राजनीतिक पार्टियों से ताल्लुक रखता था, बार-बार चुनाव जीतकर संसद में पहुंचता था, दसियों स्कूल-कॉलेजों और करोड़ों की संपत्ति का मालिक था और दबंग इतना कि एसपी के दफ्तर में एसपी पर ही बंदूक तान सकता था।
हम बात कर रहे हैं रेसलर विनेश फोगाट और सांसद ब्रजभूषण सिंह की। इस मामले की ज्यादा डीटेल बताने की जरूरत नहीं, सिवा इसके कि विनेश, साक्षी समेत 30 से ज्यादा लड़कियों ने इन इज्जत और रसूख वाले आदमी पर यौन शोषण का आरोप लगाया है।
इस आरोप की बात आज सुनी जा रही है क्योंकि एक नहीं, दो नहीं, ढेर सारी लड़कियां एक साथ सामने आई हैं। सब डर, शर्म, संकोच को पीछे छोड़कर बोल रही हैं और इस लड़ाई में बहुत सारे पुरुष रेसलर साथी भी उनके साथ हैं।
कल्पना करके देखिए कि इतनी मजबूत और ताकतवर लड़कियां हमारे समाज में मर्द की सत्ता के आगे इतनी कमजोर और वलनरेबल हो सकती हैं तो मामूली लड़कियों की क्या हैसियत होगी।
ये ऐसा सच नहीं, जो किसी से छिपा हुआ हो। ये पहली बार भी नहीं है। इतिहास गवाह है कि जाने कितनी बार कितनी महिलाओं के साथ ताकतवर मर्दों ने अपनी ताकत का बेजा फायदा उठाया है और वो परिवार के, समाज के, इज्जत के, जज किए जाने के डर से चुप रही गईं।
समाज ने उन्हें बोलने की जगह नहीं दी, बोलने का मौका नहीं दिया, बोलने का भरोसा नहीं दिया। वो बोल सकें, इतनी सुरक्षा नहीं दी और फिर एक दिन वही समाज पलटकर पूछता है कि तब क्यों नहीं बोली। इतने दिनों तक चुप क्यों रही।
ये समाज कभी पलटकर खुद से सवाल नहीं करता। इनके तरकश से सवालों के सारे तीर सिर्फ और सिर्फ औरतों के लिए ही निकलते हैं। ये समाज एक औरत की बात को तब तक नहीं सुनता, जब तक उसकी आवाज इतनी ऊंची और इतनी बड़ी ना हो जाए कि पूरे ब्रम्हांड में गूंजने लगे।
2017 से पहले भी ये होता है, हर देश में, हर शहर में, हर दफ्तर, गली, मुहल्ले में। हर लड़की डरकर चुप रहती और हर मर्द और ज्यादा बेशर्म और बेलगाम होता जाता था।
अगर गलती से कोई एक लड़की बोल भी देती तो पूरा समाज मिलकर उससे ही सवाल करने, उसे ही झूठा ठहराने, उसे ही गलत साबित करने में लग जाता। अदालत का सहारा लेती तो सालों साल गुजर सकते थे और इस बीच उस दोषी मर्द का पैसा, ताकत और दुनिया में उसका रुतबा बढ़ता ही जाता।
दरअसल इस बार वो अकेली नहीं थीं। वो एक, दो, चार या दस भी नहीं थीं। दस हजार भी नहीं, दस लाख भी नहीं। वो दस करोड़ से ज्यादा थीं। वो दुनिया के हर देश, हर घर, गांव, गली-मुहल्ले में खड़े होकर बोल रही थीं- ‘मी टू।’
हां, मेरे साथ भी ऐसा हुआ है। मेरा भी हैरेसमेंट हुआ है। मुझे भी किसी ने मेरी मर्जी के खिलाफ चूमने की कोशिश की, मेरे बॉस ने भी मेरा गलत फायदा उठाने की कोशिश की, मेरे भाई ने, मेरे चाचा ने, मेरे ताया ने, मेरे पापा के दोस्त ने, मेरे ब्वॉयफ्रेंड ने भी मुझे गलत ढंग से छुआ है। मुझे भी डराया गया है, मुझे भी जज किया गया है। मुझे भी डर लगा है।
विनेश फोगाट वाले मामले में सबसे सुंदर बात यही है कि ये लड़कियां अकेली नहीं है। ये कमजर्फ लोगों के जजमेंट से डर नहीं रहीं, किसी औरताना चुप्पी और शर्म का डर इन्हें नहीं खा रहा। ये खुद पर यकीन कर रही हैं और सबसे बड़ी बात कि वो समूह में हैं। वो ढेर सारी हैं। वो एक साथ हैं और एकता में बल है।
देश में अभी भी लड़कियों की सुरक्षा पर खतरा, जब गोल्ड मेडल जीतने वाली लड़कियां रो पड़ीं
