अशोकनगर जिले की तीन विधानसभा सीटों में सबसे रोचक मुकाबला मुंगावली में है। इस विधानसभा में अमरोद नाम का एक गांव है, जिसका राजनीति से गहरा संबंध है। इसे नेताओं का गांव भी कह सकते हैं। अब तक यहां से छह विधायक और 50 से ज्यादा लोग अलग-अलग राजनीतिक पदों पर रह चुके हैं।
इस बार शिवराज सरकार के मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव को उन्हीं के भतीजे राव यादवेंद्र सिंह यादव टक्कर दे रहे हैं। ये दोनों भी इसी गांव के रहने वाले हैं। चाचा-भतीजे की इस सियासी लड़ाई को मंत्री बृजेंद्र यादव महाभारत का युद्ध बता रहे हैं।
चाचा-भतीजे के इस सियासी महाभारत को देखने दैनिक भास्कर की टीम राजनीति का केंद्र बिंदु कहे जाने वाले अमरोद गांव पहुंची। पढ़िए रिपोर्ट…
अमरोद गांव, अशोकनगर जिला मुख्यालय से 17 किमी दूर चंदेरी मार्ग पर बसा है। करीब 2000 की आबादी वाले इस गांव में 150 मकान हैं। वोटरों की संख्या 900 के करीब है। इस गांव की धमक निकाय चुनाव से लेकर विधानसभा-लोकसभा तक रही है।
1957 में जब मुंगावली विधानसभा सीट अस्तित्व में आई तब इस गांव में राजनीति की शुरुआत हुई। गांव के राव ज्योत सिंह यादव ने 1957 का चुनाव लड़ा। हालांकि, राव ज्योत सिंह ये हार गए। हिंदू मजदूर सभा के खलक सिंह ने ये चुनाव जीता था। इसके बाद 33 साल तक यानी 1990 तक गांव से राजनीति में किसी को भागीदारी नहीं मिल पाई।
ग्रामीण जगराम सिंह यादव बताते हैं कि 1990 के विधानसभा चुनाव के कुछ समय पहले राजमाता विजयाराजे सिंधिया का गांव में एक कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम की जिम्मेदारी गांव के सरपंच राव देशराज सिंह यादव को मिली थी। कार्यक्रम बहुत ही सफल रहा। कार्यक्रम के आयोजन के लिए जो पैसा मिला, उसमें से कुछ पैसा बच गया था। इस पैसे को लौटाने के लिए राव देशराज यादव, राजमाता के पास पहुंचे। उनकी ये ईमानदारी राजमाता को बहुत पसंद आई। राजमाता के कहने पर भाजपा ने राव देशराज यादव को 1990 के विधानसभा चुनाव का टिकट दे दिया। राव देशराज यादव चुनाव जीतकर विधायक बन गए।
हालांकि, 1990 में राम मंदिर आंदोलन की वजह से चार राज्यों की सरकारें गिर गईं, जिसमें मध्यप्रदेश भी शामिल था। इसके बाद 1993 में एक बार फिर विधानसभा चुनाव हुआ। राव देशराज यादव को भाजपा ने फिर मैदान में उतारा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1998 में राव देशराज तीसरी बार चुनाव लड़े और एकबार फिर जीते। राव देशराज ने मुंगावली से छह चुनाव लड़े, उन्हें तीन बार जीत हासिल हुई।
1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राव देशराज सिंह को गुना लोकसभा सीट से टिकट दिया। कांग्रेस की तरफ से माधवराव सिंधिया मैदान में थे। इस चुनाव में राव देशराज सिंह को हार का सामना करना पड़ा। माधवराव सिंधिया के निधन के बाद साल 2002 में गुना सीट पर उपचुनाव हुआ। वे एक बार फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने मैदान में उतरे, लेकिन चुनाव हार गए। हार-जीत के इस सिलसिले के बीच अमरोद गांव प्रत्याशियों के लिए फिक्स हो गया। हर विधानसभा चुनाव में इस गांव के नेताओं को बीजेपी या कांग्रेस से टिकट मिलता रहा है।
2018 में देशराज सिंह के निधन के बाद उनकी पत्नी बाई साहब यादव भी चुनाव लड़ीं। हालांकि, वे अपने देवर और कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र सिंह यादव से हार गईं। दो उपचुनाव और एक आम चुनाव मिलाकर बृजेंद्र सिंह मुंगावली सीट से लगातार तीन बार से विधायक हैं। इस बार उनका मुकाबला राव देशराज सिंह यादव के बड़े बेटे राव यादवेंद्र सिंह यादव से है। यह दूसरा मौका है, जब बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अमरोद गांव से ही अपना प्रत्याशी बनाया है।
ग्रामीण जसवंत सिंह यादव बताते हैं कि आजादी के बाद जब दूसरी बार 1957 में मुंगावली सीट पर चुनाव हुआ तब ये सीट लोकसभा के बराबर होती थी। 1957 में राव जोत सिंह यादव के हारने के बाद 1990 तक किसी ने भी विधानसभा या लोकसभा की राजनीति का रुख नहीं किया। केवल सरपंच और मंडी के चुनाव तक ही सीमित रहे।
1990 से लगातार गांव का कोई न कोई प्रत्याशी मुंगावली सीट से चुनाव लड़ रहा है। अब तक 10 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा और इनमें से छह विधायक चुने गए। इनमें चार विधायक भाजपा से और दो कांग्रेस पार्टी से रहे। वर्तमान में गांव से विधायक के साथ ही दो जनपद सदस्य, तीन जिला पंचायत सदस्य और तीन मंडी डायरेक्टर हैं।
मुंगावली से जो भी विधायक रहा उसका अमरोद गांव से कनेक्शन जरूर रहा है। राव ज्योत सिंह यादव के भांजे राव चंदन सिंह एक बार मुंगावली विधायक रहे। इसके अलावा राव ज्योत सिंह के समधी गजराम सिंह बीलाखेड़ी दो बार और गजराम सिंह रांवसर एक बार मुंगावली से विधायक चुने गए हैं। वहीं, दूसरे भांजे रघुवीर सिंह रुसल्ला भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। गुना लोकसभा से मौजूदा सांसद डॉ. केपी यादव, राज्यमंत्री बृजेन्द्र सिंह यादव के भतीजे हैं।
सरपंच पद से लेकर लोकसभा तक का चुनाव लड़ने वाले स्व. राव देशराज सिंह यादव के नाम का आज भी गांव में अलग प्रभाव है। गांव के लोग उनका नाम नहीं लेते, उन्हें राव साहब कहते हैं। कुछ दिनों पहले ही गांव के चौराहे पर राव साहब की प्रतिमा स्थापित की गई है। गांव में राजनीतिक की चर्चा आज भी राव साहब के नाम से ही शुरू होती है
अशोकनगर जिले का ईसागढ़ क्षेत्र प्राचीन अहीरवाड़ा राज्य का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। ईसागढ़ का नाम बहादुरगढ़ हुआ करता था। यहां खींचियों की आमद से पहले अहीर शासकों ने ही राज किया। पार्वती और बेतवा नदी के बीच का इलाका, जिसमें वर्तमान में विदिशा, गुना, शिवपुरी व अशोकनगर के बड़े हिस्से आते हैं, वहां अहीर राजाओं का शासन था। अशोकनगर जिले में यादव वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। मुंगावली में करीब 50 हजार, चंदेरी में करीब 32 हजार और अशोकनगर सीट पर करीब 28 हजार यादव वोटर हैं।