चुनावी प्रक्रिया में सुधार की जरूरत , देश को एक समृद्ध और श्रेष्ठ लोकतंत्र बनाना है

देश को एक समृद्ध और श्रेष्ठ लोकतंत्र बनाने के लिए चुनावी प्रक्रिया में कई सुधार जरूरी हैं। ये सुधार वषों से लंबित हैं। वर्तमान सरकार ने जिस तरह से कुछ सुधारों पर कदम बढ़ाए हैं, उससे अन्य सुधारों को लेकर भी उम्मीद बढ़ी है।

झूठ बोले, जेल काटे: वर्तमान समय में निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 के तहत उम्मीदवारों को केंद्रीय निर्वाचन आयोग और राज्य चुनाव आयोगों के समक्ष हलफनामा दायर करना होता है, जिसमें उनकी आपराधिक पृष्ठभूमि, शिक्षा, संपत्ति एवं देनदारियों की जानकारी रहती है। जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 125ए के तहत गलत जानकारी देने वाले को छह महीने की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। चुनाव आयोग का सुझाव है कि इस धारा के तहत सजा को बढ़ाकर दो वर्ष किया जाना चाहिए। इसमें जुर्माना देकर बचने का प्रविधान नहीं होना चाहिए, साथ ही इस अपराध को धारा-8 की उप-धारा (1) की सूची में जोड़ना चाहिए, जिससे ऐसे उम्मीदवार को चुनाव के लिए अयोग्य मान लिया जाए। गलत जानकारी के आधार पर किसी के चुनाव को भी चुनौती देने का विकल्प मिलना चाहिए। विधि आयोग ने भी अपनी 244वीं रिपोर्ट में इस तरह का सुझाव दिया था।
डिफाल्टर प्रत्याशियों को अयोग्य ठहराने की व्यवस्था: दिल्ली हाई कोर्ट ने 2015 में अपने एक आदेश में चुनाव आयोग को ऐसे प्रत्याशियों से वसूली की संभावनाएं तलाशने को कहा था, जिन पर सरकारी बिल बकाया हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में देखा जाता है कि बहुत से जन प्रतिनिधियों पर बिजली, पानी और टेलीफोन के बिल जैसी देनदारियां बाकी रहती हैं। नगर निगमों और अन्य सरकारी प्राधिकरणों की तरफ से ऐसे बकाए की वसूली के लिए कोई प्रयास नहीं किए जाते हैं। प्रशासन आम नागरिकों से वसूली में जितनी तत्परता दिखाता है, वह तत्परता ऐसे मामलों में नहीं दिखती है। इसे ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग से इस बात की संभावना तलाशने को कहा, जिससे लोकसभा या विधानसभा चुनाव में खड़े होने के समय उम्मीदवार को बताना पड़े उस पर ऐसा कुछ बकाया है या नहीं। बकाया होने की स्थिति में उसकी उम्मीदवारी रोकी जाए, जिससे वसूली हो सके। इस फैसले के बाद चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 में आवश्यक संशोधन करते हुए उम्मीदवार को अयोग्य ठहराने के प्रविधान में बदलाव की सिफारिश की है।
एक ही सीट से लड़ने की हो अनुमति: जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 33 की उप-धारा (7) में व्यवस्था दी गई है कि कोई उम्मीदवार एक साथ दो सीटों पर चुनाव लड़ सकता है। वहीं धारा 70 के अनुसार यदि कोई उम्मीदवार दो सीटों पर जीत हासिल भी कर लेता है, तब भी वह किसी एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है। ऐसी स्थिति में उसकी जीती हुई दूसरी सीट पर उपचुनाव कराने की जरूरत पड़ती है। निसंदेह यह अकारण ही एक सीट पर दो बार चुनाव का खर्च बढ़ाता है।
चुनाव आयोग का प्रस्ताव है कि कानून में संशोधन करते हुए एक व्यक्ति को एक बार में एक ही सीट से चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए। यदि किसी कारण से अभी ऐसा न भी हो, तो संबंधित उम्मीदवार से उसकी सीट पर उपचुनाव कराने का खर्च वसूला जाए। 2004 में आयोग ने इसके लिए विधानसभा की स्थिति में पांच लाख रुपये और लोकसभा के मामले में 10 लाख रुपये जमा कराने की बात कही थी। विधि आयोग ने भी चुनाव आयोग के इस प्रस्ताव से सहमति जताई है कि एक व्यक्ति को एक बार में एक ही सीट से चुनाव लड़ने की अनुमति मिलनी चाहिए।

चुनाव को रद करने का अधिकार: संविधान के अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को संसदीय एवं राज्य विधानसभा चुनावों से संबंधित अधिकार दिए गए हैं। इसी तरह जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 58ए में व्यवस्था दी गई है कि किसी क्षेत्र में बूथ कैप्चरिंग की स्थिति में चुनाव आयोग वहां हुए चुनाव को रद कर सकता है। बूथ कैप्चरिंग का उद्देश्य चुनाव परिणाम को प्रभावित करना होता है। वर्तमान समय में कई तरह से मुफ्त उपहार और पैसे बांटकर चुनाव परिणाम बदलने का प्रयास किया जाता है।
चुनाव आयोग की सिफारिश है कि जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 में एक अन्य धारा जोड़ी जाए, जिसमें चुनाव आयोग को ऐसी स्थिति में भी चुनाव रद करने का अधिकार मिले, जहां इस तरह की आशंका हो कि रिश्वत या अन्य तरीकों से पैसे के दम पर परिणाम बदलने का प्रयास किया गया है। इसी तरह रिटर्निंग ऑफिसरकी रिपोर्ट के आधार पर चुनाव टालने या संबंधित केंद्रों पर दोबारा चुनाव कराने का अधिकार मिले।