उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने शनिवार को कहा कि विकास की जरूरतों और कल्याणकारी दायित्वों का सामंजस्य बनाने के बीच लोकलुभावन घोषणाओं पर व्यापक बहस की जरूरत है। इसके साथ ही उन्होंने संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) से इस पहलू की जांच का भी अनुरोध किया।
नायडू ने देश के सीमित संसाधनों के अधिकतम इस्तेमाल पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि संसद द्वारा स्वीकृत धन का बुद्धिमत्तापूर्ण और किफायती उपयोग होना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि खर्च किया जाने वाला हर रपया सामाजिक-आर्थिक परिणाम देगा। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर भी जोर दिया कि साल में संसद की बैठक कम-से-कम 100 दिन और राज्य विधानमंडलों की बैठक 90 होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर राजनीतिक आम सहमति की जरूरत है।
नायडू संसद के केंद्रीय कक्ष में लोक लेखा समिति के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और समिति के अध्यक्ष तथा कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी भी मौजूद थे।
राष्ट्रपति कोविन्द ने अपने संबोधन में उल्लेख किया कि पीएसी अनियमितता का पता लगाने के लिए सरकारी खर्चे की जांच करती है। उन्होंने कहा कि समिति न सिर्फ इसे कानूनी नजरिये से देखती है, बल्कि आर्थिक, विवेकपूर्ण और बुद्धिमत्तापूर्ण पहलुओं पर भी विचार करती है। समिति का उद्देश्य और कुछ नहीं, बल्कि बर्बादी, नुकसान, भ्रष्टाचार, अपव्यय और अक्षमता को ध्यान में लाना है। ईमानदार करदाताओं के पैसे को जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने और राष्ट्र विकास के कार्यो में लगाने की प्रक्रिया में पीएसी और इसके सदस्यों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।