कांग्रेस में उठा तूफान फिलहाल कुछ वक्त के लिए ही सही थम सा गया है। पार्टी की कार्यसमिति की बैठक के बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी। साथ ही अगला अध्यक्ष छह माह में चुना जाएगा। हालांकि गांधी नेहरू परिवार ही लंबे समय तक पार्टी अध्यक्ष पद पर काबिज रहा है। परिवार के सदस्य करीब 40 सालों तक इस पद पर रहे हैं। इनमें सबसे लंबे वक्त तक सोनिया गांधी ने पार्टी का अध्यक्ष पद संभाला है। वे करीब 20 सालों तक कांग्रेस अध्यक्ष की भूमिका में रही हैं।
हालांकि सत्ता से बेदखली के बाद कई बार ऐसी परिस्थितियां बनी हैं, जिनमें कांग्रेस को अपने ही नेताओं की चुनौती से जूझना पड़ा है। सोनिया गांधी को पहले भी ऐसी ही परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है। आइए जानते हैं कि आजादी के बाद गांधी परिवार और उनके अलावा कितने अध्यक्ष रहे हैं और आखिरी बार कांग्रेस में ऐसी परिस्थितियां कब बनी थीं।
40 साल गांधी परिवार के अध्यक्ष: आजादी के बाद से कांग्रेस 18 अध्यक्ष देख चुकी है। इनमें से पांच तो सिर्फ गांधी परिवार से रहे, बाकी 13 गांधी परिवार से बाहर के हैं। हालांकि असलियत में गांधी परिवार के हाथों में ही सत्ता और संगठन की बागडोर रही है। गांधी परिवार से आने वाले कांग्रेस के पांच अध्यक्ष करीब 40 सालों तक इस पद पर रहे हैं। 1998 के बाद से कांग्रेस का अध्यक्ष पद लगातार गांधी परिवार के पास ही रहा है।
1998-99 में भी ऐसी ही परिस्थितियों से गुजरी कांग्रेस ; कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर जिस तरह की परिस्थिति है, लगभग वैसी ही स्थिति 1998-1999 में भी पार्टी के सामने थी। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद से ही कांग्रेस के कई नेता सोनिया गांधी को सक्रिय राजनीति में लाना चाहते थे, हालांकि सालों तक वे इसे टालती रहीं और 1997 में कोलकाता में पार्टी की प्राथमिक सदस्य बनीं। राजीव की मौत के बाद नरसिंह राव और सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष बने थे। हालांकि उन्हें पार्टी में विरोध का भी सामना करना पड़ा था। 1998 के मध्यावधि चुनाव में पार्टी की कमजोर तैयारियों के लिए केसरी को जिम्मेदार ठहराया गया। साथ ही उनके निर्णय लेने की शैली ने आर कुमारमंगलम और असलम शेर खान जैसे नेताओं को नाराज कर दिया, जिन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। 14 मार्च 1998 को गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुना गया। उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट करना था
हालांकि साल भर बाद 15 मई 1999 को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का होने के कारण उन्हें प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करने का विरोध किया। जिसके बाद सोनिया गांधी ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि पार्टी नेताओं के समझाने पर उन्होंने अपना इस्तीफा वापस ले लिया। लेकिन इन तीनों नेताओं को छह साल से पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।