होली में रंगों के अलावा सबसे खास चीज होती है गुझिया। आपने 500, 1000 या 2000 रुपए किलो की गुझिया खाई होगी। लेकिन क्या कभी 50 हजार रुपए किलो की गुझिया के बारे में सुना है? अगर, नहीं सुना तो जरा लखनऊ घूम आइए।
होली पर आज हम आपको यूपी की प्रमुख मिठाइयों के साथ दुनिया की सबसे महंगी गुझिया के बारे में बताएंगे। ये कहां मिलती है, इसका स्वाद कैसा है, कैसे बनती है? सब कुछ।
लखनऊ कैंट के सदर बाजार में छप्पन भोग की दुकान है। यहां दुनिया की सबसे महंगी एग्जॉटिका (Exotica) गुझिया मिलती है। इसकी कीमत 50 हजार रुपए किलो है। लग्जरी पैकिंग में 20 गुझिया आती हैं। एक पीस 2500 रुपए की है। न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के किसी भी देश में इतनी महंगी गुझिया नहीं मिलती है।
छपन भोग के मालिक रविंद्र ने बताया, “इस गुझिया के लिए हम ईरान से मामरा बादाम, USA की ब्लू बेरी, अफगानिस्तान का पिस्ता, साउथ अफ्रीका से मैकाडॉमिया नट, किन्नौर से पाइन नट, टर्की से हेजलनट और कश्मीर से केशर मंगाते हैं। फिर उसे अपने यहां अनुभवी कारीगरों से बनवाते हैं। इन्हें बनाने के लिए किसी विदेशी कारीगर की मदद नहीं लेते।
रविंद्र बताते हैं, “हमारे यहां 15 तरह की गुझिया बनाई जाती हैं। सिर्फ यूपी ही नहीं विदेशों तक इनकी सप्लाई होती है। मैंने पूरी दुनिया में जाकर मिठाई मार्केट का अध्ययन किया। मैंने देखा कि मिशेलिन के शेफ एग्जॉटिक फ्लेवर बनाने के लिए अलग-अलग ड्राई फ्रूट का इस्तेमाल करते थ
यहीं से मुझे आइडिया आया कि क्यों न हम इस फ्लेवर को गुझिया का रूप दें। इसके बाद मैंने इंडिया आकर एग्जॉटिका गुझिया बनाने का काम शुरू किया। ये दिखने में रिच लगे इसके लिए हमने इस पर 24 कैरेट गोल्ड की वर्क लगवाई।”
“एग्जॉटिका गुझिया की एक खास बात है। ये दिखने में जितनी गोल्डन है। खाने में भी उतनी ही ‘गोल्ड’ यानी टेस्टी होती है। इसकी हर बाइट क्लासी है।”
छप्पन भोग के ओनर रविंद्र गुप्ता बताते हैं कि एग्जॉटिका गुझिया की ऑफलाइन से ज्यादा ऑनलाइन बिक्री होती है। इसके ऑर्डर अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया से भी आते हैं।50 हजार रुपए किलो होने के बावजूद एग्जॉटिका गुझिया के खरीदारों की कोई कमी नहीं है। छप्पन भोग का अनुमान है कि इस होली पर यह गुझिया करीब 20 किलो तक बिक जाएगी। लोगों के बीच 2 पीस वाले डिब्बे की डिमांड सबसे ज्यादा है। इसकी कीमत 5 हजार रुपए रखी गई है।
शानदार गुझिया बनाने में एक्सपर्ट रविंद्र गुप्ता ने इस बार होली पर हेवीवेट बाहुबली गुझिया भी बनाई है। इसके नाम की तरह ही इस गुझिया का वजन भी बाहुबली है। 2 किलो की इस स्पेशल गुझिया की कीमत 6000 रुपए पर पीस है। इसे 10 लोग आराम से खा सकते हैं।
दुकानदार रविंद्र बताते हैं, हमने सबसे पहले ग्लोबली बेबी गुझिया लॉन्च की थी। इसे 1-बाइट गुझिया भी कहते हैं। उसे इंडिया के साथ-साथ न्यूयॉर्क, लंदन और दुबई में भी खूब पसंद किया गया। दुबई के ही हमारे एक कस्टमर ने हमसे कहा कि अगर आप बेबी गुझिया बना सकते हैं, तो सबसे बड़ी गुझिया क्यों नहीं मार्केट में ला रहे? इसके बाद हमारे दिमाग में बाहुबली गुझिया का कॉन्सेप्ट आया।”
रविंद्र कहते हैं, “इस गुझिया को बनाते-बनाते हमें 2 साल लग गए। लेकिन हमने हार नहीं मानी। दरअसल, बाहुबली गुझिया का शेप मेंटेन रख पाना सबसे कठिन काम होता है। कभी हमने बनाई तो बन नहीं पाई। कभी बना ली तो घी में तलते समय खराब हो गई। इस साल हमारे एक्सपर्ट शेफ ने इसे नए सिरे से बनाया है। हमें खुशी है कि महंगी होने के बावजूद इसकी डिमांड अच्छी है।”छप्पन भोग के मैनेजर कुनाल केसरी के मुताबिक, दुकान में गुझिया तैयार करने के लिए 50 अलग कारीगर हैं। यहां गुझिया की 15 तरह की वैराइटी हैं। इनमें फुल काजू गुझिया, बदाम गुझिया, चिलगोजा गुझिया, पिस्ता गुझिया, खजूर गुझिया, मैंगो गुझिया, पान गुझिया और अंजीर गुझिया की डिमांड सबसे ज्यादा रहती है
कुनाल कहते हैं, “हमारी कोशिश यही रहती है कि हम अपने ग्राहकों को क्वालिटी स्वीट्स ऑफर करें। हम दिन के हिसाब से भी मिठाइयां तैयार करते हैं। इसमें रक्षा बंधन, 15 अगस्त, दीपावली और क्रिसमस पर स्पेशल थीम बेस्ड मिठाइयां बनाई जाती हैं।”
मथुरा में होली पर गुझिया, रसगुल्ला, बर्फी और लड्डू से कहीं अधिक डिमांड पेड़े की होती है। यहां का पेड़ा न सिर्फ देश में बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है। हमने वृंदावन की एक दुकान पर इसे बनाने के तरीके पर बात की। दुकानदार ने बताया, “हम कच्चे मावा को लगातार 2 घंटे तक भूनते हैं। भूनते वक्त ही इसमें चीनी, इलायची और केसर डाल देते हैं। इसके बाद तीन घंटे तक ठंडा करते हैं।”
मथुरा के पेड़े की खास बात यह कि यहां बनने वाला पेड़ा गोल होता है। वो चाहे मावा पेड़ा हो, केसर पेड़ा हो या फिर मलाई लड्डू पेड़ा हो। सभी गोल ही बनते हैं। इनके रेट 250 रुपए किलो से शुरू होकर 1200 रुपए किलो तक हैं। मथुरा के लोग होली के दिन भांग की ठंडाई के साथ पेड़े खिलाकर खुशियों का इजहार करते हैं।
मथुरा में पेड़े की शुरुआत कब हुई, इसका कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है। यहां द्वापर युग की एक कहानी चलती है। कहते हैं, एक बार कृष्ण जी की मां यशोदा ने दूध उबालने को रखा। इसके बाद वह भूल गईं। दूध उबलते-उबलते गाढ़ा हो गया। तब यशोदा जी ने उसमें शक्कर डालकर गोला बनाया और कृष्ण को खिला दिया। तब से यही मिठाई पेड़ा नाम से प्रचलित हो गई
जौनपुर की इमरती पूरे देश में मशहूर है। यहां होली पर घर आने वाले मेहमानों को इमरती खिलाने का चलन है। शहर के ओलनगंज में बेनीराम इमरती नाम से सबसे ज्यादा मशहूर दुकान है। यहां हरी उड़द की दाल और बलिया से आई स्पेशल चीनी के जरिए इमरती बनाई जाती है। कोई रंग नहीं डाला जाता। दुकानदार कहते हैं, 10-12 दिन तक आराम से इसे खाया जा सकता है।
1855 में बेनीराम देवी प्रसाद डाकिया थे। एक दिन अंग्रेज अफसर ने उनसे खाना बनाने को कहा। बेनीराम ने खाने के साथ मीठे में इमरती भी बना दी। अंग्रेज अफसर को इतना पसंद आया कि उसने बेनीराम को नौकरी छोड़ने को कह दिया। बेनीराम को लगा, खाना खराब बनाया है। लेकिन अंग्रेज अफसर ने तुरंत ही कहा, “तुम इतनी अच्छी इमरती बनाते हो, तुम्हें यही बनाना चाहिए। इसके बाद बेनीराम ने 167 साल पहले इसकी शुरुआत की।”हरदोई जिले का संडीला अपने स्वादिष्ट लड्डू के लिए पूरे भारत में मशहूर है। लखनऊ से करीब 50 किलोमीटर दूर संडीला में होली पर बाजारों में लड्डू खरीदने वालों की भीड़ रहती है। चने के बेसन, केवड़ा, शक्कर का बुरादा और मेवे से तैयार होने वाले इस लड्डू की खासियत है कि यह मुंह में रखते ही घुलने लगता है।
संडीला के रहने वाले संदीप मिश्रा बताते हैं, “नवाब एजाज रसूल की दिल्ली में शादी थी। यहां के हलवाई लड्डू बनाने दिल्ली गए थे। तब दिल्ली के वायसराय ने लड्डू चखा तो हलवाइयों को बुलाकर खूब इनाम दिया। यहां के लड्डू के चाहने वाले बॉलीवुड सितारे भी हैं। तमाम फिल्मों में इसका जिक्र हो चुका है। गीतकार जावेद अख्तर यहां से अक्सर लड्डू मंगवाते हैं।
होली पर बरेली की बाजारों में 2 चीज सबसे ज्यादा बिकती हैं। पहली: रंग-बिरंगी पिचकारियां। दूसरी: यहां की बर्फी। बरेली में किप्स की दुकान पर आजादी के पहले से बर्फी बन रही हैं। यहां की बर्फी इतनी स्वादिष्ट होती है कि आस-पास के जिलों से लोग इसका स्वाद चखने और खरीदने यहां तक आ जाते हैं। किप्स की सबसे पुरानी दुकान श्याम लाला विशंभर नाथ बड़े बाजार में है। मावा और ड्राई फ्रूट्स से तैयार होने वाली यह बर्फी 300 रुपए किलो से लेकर 2000 रुपए किलो तक बिकती है।
किप्स के मालिक संजय खंडेलवाल के मुताबिक, 150 साल पहले उनके परबाबा ने इसकी शुरुआत की थी। बरेली में ही 10 फ्रेंचाइजी किप्स के नाम पर चल रही हैं। इनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2017 में इन पर ‘बरेली की बर्फी’ नाम से पूरी फिल्म ही बन गई।