पश्चिम एशिया में लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है. ईरान के इजराइल पर हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है. जिसका असर पूरे विश्व में देखने को मिल रहा है. इसी बीच PM मोदी ने पश्चिम एशिया में नए सिरे से पैदा हुए तनाव के बीच बृहस्पतिवार (3 अक्टूबर) को सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति की बैठक की अध्यक्षता की.
इस बैठक में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री, विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की समिति ने हिस्सा लिया. इस बैठक में पश्चिम एशिया में तनाव और पेट्रोलियम उत्पादों के व्यापार एवं आपूर्ति पर पड़ने वाले प्रभाव पर बैठक में चर्चा की गई. भारत ने पश्चिम एशिया में सुरक्षा स्थिति बिगड़ने पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि संघर्ष को व्यापक रूप नहीं लेना चाहिए. भारत ने सभी मुद्दों को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से सुलझाने का भी आह्वान किया है. अगर पश्चिम एशिया में तनाव और ज्यादा बढ़ता है तो इसका असर सिर्फ उस क्षेत्र पर नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा. ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत के आयात-निर्यात पर इसका असर पड़ेगा. इस संघर्ष से कार्गो माल ढुलाई शुल्क में काफी वृद्धि हो सकती है क्योंकि लेबनान के ईरान समर्थित हिजबुल्लाह आतंकवादियों के यमन में हूती विद्रोहियों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जो लाल सागर और अदन की खाड़ी के माध्यम से माल ले जाने वाले व्यापारी जहाजों पर लगातार हमलें कर रहे हैं.
हूती विद्रोहियों ने पिछले साल अक्टूबर में लाल सागर से होकर जाने वाले व्यापारी जहाजों पर हमला करना शुरू किया था, जिसका असर पूरी दुनिया के व्यापार पर पड़ा था. भारत के भी पेट्रोलियम निर्यात में कमी आई थी. यह आयात अगस्त में 37.56 प्रतिशत गिरकर 5.96 अरब डॉलर रह गया था, जो पिछले साल के इसी महीने में 9.54 अरब डॉलर था. 2023 के आंकड़ों के अनुसार, स्वेज नहर के बाद भारत अपना 50 फीसदी निर्यात लाल सागर मार्ग से ही करता है. ऐसे में भारत के लिए मुश्किलें और ज्यादा बढ़ सकती है.