एकता की अध्भुत मिशाल 17 साल से गांव वाले चला रहे रेलवे स्टेशन, हर महीने होती है 30 हजार की कमाई

राजस्थान अजूबों का खजाना है. यहां ऐसी अनोखी चीजें हैं जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे. अपने अक्सर स्टेशनों को रेलवे डिपार्टमेंट द्वारा चलाए जाते सुना होगा, लेकिन राजस्थान नागौर में एक ऐसा स्टेशन है जिसे आम लोग चलाते हैं. हम बात कर रहे हैं जालसू नानक हाल्ट रेलवे स्टेशन की. यह देश का इकलौता ऐसा स्टेशन है जिसे ग्रामीण चलाते हैं. नागौर जिला मुख्यालय से लगभग 80 किमी दूर जालसू नानक हॉल्ट रेलवे स्टेशन देश का एक खास रेलवे स्टेशन है. यह स्टेशन रेलवे द्वारा नहीं बल्कि क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा चलाया जाता है. ग्रामीण टिकट बेचते हैं, स्टेशन चलाते हैं और इसके रखरखाव में भी लगे रहते हैं. इतना ही नहीं जालसू नानक हाल्ट स्टेशन से रेलवे को हर महीने करीब 30 हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है.

दरअसल, ग्रामीण करीब 17 सालों से इस स्टेशन का संचालन कर रहे थे.रेलवे की एक पॉलिसी के तहत जोधपुर रेल मंडल के तहत आने वाले कम रेवेन्यू के स्टेशनों को बंद करने का फैसला लिया गया. इसी के तहत 2005 में जालसू नानक हाल्ट स्टेशन बंद कर दिया गया. इस फैसला का ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया. करीब 11 दिन तक ग्रामीणों ने धरना भी दिया. फिर रेलवे ने गांव वालों के सामने शर्त रखी कि स्टेशन को शुरू करना है तो गांव वालों को ही इसे चलाना होगा. रेलवे ने कहा कि उन्हें हर महीने 1500 टिकट और प्रतिदिन 50 टिकट बेचना होगा. गांव वाले भी इस शर्त को मान गए और स्टेशन उनका हो गया.

फौजियों के गांव के लिए शुरू हुआ था स्टेशन

दरअसल, राजस्थान के नागौर जिले का जालसू नानक हाल्ट एक फौजियों के गांव में बना है. कहा जाता है कि इस गांव में हर दूसरे घर में एक सैनिक है. एक जानकारी के मुताबिक, इस गांव के 200 से ज्यादा बेटे सेना, बीएसएफ, नेवी या एयरफोर्स में हैं, जबकि 200 से ज्यादा फौजी रिटायर हैं. करीब 45 साल पहले इस हॉल्ट स्टेशन को फौजियों और उनके परिवारों के लिए शुरू किया गया था. 1976 में जालसू नानक हाल्ट स्टेशन को स्वीकृति मिली थी. इसके बाद रेलवे ने एक छोटा सा कुटिया बनाकर एक हॉल्ट शुरू किया था.बताया जाता है कि 2001 में इस स्टेशन में कोई सुविधा नहीं थी. तब उस समय के सरपंच ने एक हॉल और बरामदा बनाया. ग्रामीणों ने चंदा जमा कर प्याऊ घर बनाया, रंग रोगन कराया. रेलवे की शर्त के मुताबिक, गांव वालों ने चंदा जुटाकर रेलवे का एक महीने का पूरा 1500 टिकट खरीद लिया था. टिकट काटने के लिए गांव के ही एक शख्स को 5000 महीने की सैलरी दी गई.