उन्नाव की 18 साल की क्रिकेटर अर्चना देवी इस वक्त चर्चा में हैं। अंडर-19 महिला टी 20 वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले में तीन ओवर में 17 रन देकर दो विकेट हासिल किया। जिससे खेल का रुख ही बदल गया। इंग्लैंड को 7 विकेट से शिकस्त देकर भारतीय टीम पहली बार चैंपियन बनी।
लेकिन अर्चना के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। लंबा संघर्ष किया। पिता और भाई आंखों के सामने दुनिया से चले गए। मां को लोगों ने डायन कहा। इन सबको पीछे छोड़ते हुए अर्चना ने वो कर दिखाया, जिसका जश्न आज पूरा देश मना रहा है।
अर्चना के अलावा यूपी की सोनम यादव और पार्श्वी चोपड़ा ने भी भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई। आइए पूरी कहानी शुरू से जानते हैं।
उन्नाव में फसलों के कटने के बाद खेत में बनी उबड़-खाबड़ पिच। खेलने का कोई सुविधा नहीं थी। विकेट के रूप में तीन डंडे गाड़े। अर्चना हाथ में टेनिस बॉल लेकर प्रैक्टिस करने उतर आई। क्षेत्र में कोई और लड़की क्रिकेट नहीं खेलती थी, इसलिए लड़कों को ही गेंदबाजी करने लगी। गली-मोहल्ले का क्रिकेट था, इसलिए गेंदबाजी के बाद वह फील्डिंग करने लगी।
अचानक हवा में उड़ते हुए एक बॉल आई। अर्चना उसे कैच करने ही वाली थी कि सूरज की तेज किरणों की वजह से वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ीं। साथियों ने तुरंत उन्हें अस्पताल पहुंचाया। डॉक्टर ने जांच की। उन्होंने बताया कि अर्चना ने मैच से पहले कुछ नहीं खाया था। वह भूखे पेट ही सुबह से मैच खेल रही थीं। दरअसल उस वक्त अर्चना के घर में इतना पैसा भी नहीं था कि वह भर पेट खाना खा पाए।
अर्चना के गांव में हर साल बाढ़ आती थी।आधा समय उनके खेत नदी के पानी में डूबे रहते थे। इसलिए पूरे परिवार को सिर्फ गाय-भैंस के दूध पर ही निर्भर रहना पड़ता था। इसके बावजूद अर्चना के अंदर क्रिकेट का जो जुनून था, वो उन्हें खाली पेट ही पिच पर ला देता था।
अर्चना के पिता-भाई की मौत के बाद पूरे गांव से उनकी मां को बहुत ताने सुनने पड़े, लेकिन फिर भी उन्होंने अर्चना को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
साल 2008, अर्चना 3 साल की थीं, तब उनके पिता शिवराम की कैंसर से मौत हो गई। घर में कमाई का कोई साधन नहीं था। मां ने जैसे-तैसे सभी बच्चों को पाला। कुछ वक्त सब ठीक चला पर साल 2017 में एक और हादसा हो गया।
भाई रोहित ने बताया, “अर्चना अपने भाई बुधिमान के साथ घर में क्रिकेट खेल रही थीं। उन्होंने एक शॉट मारा और बॉल कमरे में पड़े मलबे के अंदर चली गई। बॉल अक्सर उस मलबे में चली जाती थी, तो बैट से ये लोग निकाल लेते। पर इस बार बुधिमान मलबे के अंदर हाथ डालकर बॉल निकालने लगा। जैसे ही हाथ अंदर डाला उसे सांप ने काट लिया। आनन-फानन में हम उसे बचाने के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक पहुंचे, लेकिन बचा नहीं पाए।”
अर्चना की मां बताती हैं कि उस वक्त हमारे परिवार का गांव में रहना भी मुश्किल हो गया था। मैं गाय का दूध बेचकर और खेती कर सभी बच्चों को अकेले पाल रही थी। गांव वाले आते-जाते हमको ताने देते थे। हमें डायन कहते थे। उनका कहना था कि मैं पहले अपने पति को खा गई, फिर अपने बेटे को। मैं गांव में कहीं जाती, तो लोग हमको देखकर रास्ता बदल लेते। हमारे घर को डायन का घर कहते थे।
भाई रोहित ने बताया, “घर खर्च में मदद करने के लिए मैं नई दिल्ली की एक कपड़े की फैक्ट्री में काम करने लगा। लेकिन, लॉकडाउन होने से मेरी नौकरी चली गई। वो बताते हैं जब हमारे खाने तक को नहीं था, ऐसे वक्त में अर्चना के लिए क्रिकेट जैसे महंगे खेल का सपना देखना दूर की बात थी।
हमारे भाई बुधिमान ने भी मरते वक्त मां से बोला था कि अर्चना को क्रिकेट खिलाए। यही उसकी आखिरी इच्छा थी। इसलिए अर्चना ने क्रिकेट को गंभीरता से लेना शुरू किया। वो क्रिकेट खेलकर देश का नाम रोशन करना चाहती, लेकिन घर की स्थितियों की वजह से मजबूर थी।”
अर्चना के क्रिकेट खेलने का सपना शायद टूट ही जाता। उसके भाई की आखिरी इच्छा भी अधूरी रह जाती, पर एक दिन अर्चना अपनी स्कूल टीचर पूनम गुप्ता से बात कर रहीं थीं। पूनम को अर्चना के सपने के बारे में पता चला। पूनम भी भारत के लिए क्रिकेट खेलना चाहती थीं, लेकिन खेल नहीं पाईं। इसलिए उन्होंने अर्चना की मदद करने की ठानी।
पूनम ने अर्चना की मदद की साथ ही उन्हें अपने कोच कपिल देव पांडेय से मिलवाया। कोच ने अर्चना को ट्रेनिंग दी। साथ ही एकेडमी की फीस भरने, किट खरीदने की पूरी जिम्मेदारी कोच और शिक्षक पूनम ने अपने कंधों पर ले ली। उन्होंने एकेडमी के पास ही अर्चना के लिए किराए पर कमरा लिया, ताकि रोज-रोज गांव से आने में उनका वक्त बर्बाद न हो। कपिल देव पांडेय भारतीय क्रिकेटर कुलदीप यादव के भी कोच रह चुके हैं। इसलिए उन्होंने अर्चना के लिए कुलदीप से भी मदद ली।
रोहित बताते हैं कि जब अर्चना क्रिकेट की प्रैक्टिस करने के लिए एकेडमी में थी, तो उनका गांव आना-जाना नहीं होता। इसमें भी गांव वालों को चैन नहीं था। वो मेरी मां से कहते कि उन्हें अपनी बेटी की फिक्र नहीं, उन्होंने अपनी बेटी को बिना सोचे समझे अकेले इतनी दूर भेज दिया। लेकिन मां ने किसी की नहीं सुनी। उसने हमेशा अर्चना को आगे बढ़ने और क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्साहित किया।
अर्चना ने क्रिकेट की प्रैक्टिस तो शुरू कर दी थी। लेकिन, अगली चुनौती इंडियन क्रिकेट टीम में शामिल होने की थी। अर्चना एक अच्छी गेंदबाज थीं, इसलिए उनके कोच कपिल को लगा कि अगर वो ऑफ-स्पिन में महारथ हासिल कर ले, तो उसका सिलेक्शन होना आसान हो जाएगा।
अर्चना एक तरफ प्रैक्टिस करतीं दूसरी तरफ इंडियन टीम में शामिल होने की जद्दोजहद में लगीं थीं। आखिरकार, नवंबर 2022 में न्यूजीलैंड अंडर-19 के खिलाफ इंडिया की तरफ से खेलने का उन्हें मौका मिला। मैच में तीन विकेट लेकर वो भारत की सबसे प्रभावी गेंदबाज बन गईं।
वर्ल्ड कप में अर्चना का सिलेक्शन हुआ। अर्चना फाइनल से पहले 6 मैचों में 6 विकेट ले चुकी थीं। इकोनॉमी 5 रन प्रति ओवर के आस-पास थी। फाइनल मैच में कप्तान सेफाली वर्मा ने उन्हें दूसरा ओवर थमाया। अर्चना कुछ अलग ही सोचकर गेंदबाजी करने आईं।
तीसरी गेंद पर आक्रामक बल्लेबाज फियोना हॉलैंड को क्लीन बोल्ड कर दिया। टीम जश्न में डूब गई। इसके दो गेंद बाद उन्होंने इस वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा रन बना चुकी इंग्लैंड की कप्तान ग्रेस स्क्रिवेंस को आउट करके पूरी टीम को बैकफुट पर धकेल दिया।
टीम के लिए खतरनाक साबित होती रेयाना मैकडोनॉल्ड का शानदार कैच पकड़कर अर्चना ने पूरी टीम को ही पटरी पर उतार दिया। इसके बाद इंग्लैंड की पूरी टीम 68 रन पर ऑल आउट हो गई और फिर भारत ने 14 ओवर में तीन विकेट के नुकसान पर लक्ष्य को हासिल कर लिया।
अर्चना के भाई रोहित बताते हैं की हम सब मैच देख रहे थे। मां ने पैसे जोड़कर घर में इन्वर्टर लगवाया, ताकि बेटी जब मैच खेले तो उसे हम सब देख पाएं। ऐसा ना हो कि उसी वक्त बैटरी खत्म हो जाए या गांव में लाइट चली जाए तो हम मैच ना देख पाएं।
जैसे ही भारत ने मैच जीता हम सब लोग खुशी से झूम उठे। मां की आंखों में आंसू भर गए। अर्चना ने घर पर फोन किया। वो इतनी खुश थी कि थोड़ी देर तो वो कुछ बोल ही नहीं सकी। बाद में उसने मां से कहा, “देखा मां आज मैं कैसे उड़ी, मैंने कैसे आसमान छू लिया।”
कई पड़ोसी भी मैच के बाद हमसे मिलने आए। जो लोग आज तक हमको ताने दे रहे थे वो आज बधाई दे रहे हैं। गांव वाले कह रहे हैं कि अर्चना हमारे बच्चों के लिए प्रेरणा है। अब हम भी अपने बच्चों को उसकी तरह ही बनाएंगे।
ये तो थी अर्चना देवी की कहानी। इसके अलावा यूपी की सोनम यादव और पार्श्वी चोपड़ा ने भी भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई। साथ ही फलक नाज का भी अंडर 19 की 15 सदस्यों की टीम के लिए चयन हुआ था। लेकिन इस वर्ल्ड कप में उन्हें एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला।
फिरोजाबाद की सोनम यादव 15 साल की हैं। टीम इंडिया में वो लेफ्ट आर्म स्पिनर हैं। पिता कारखाने में मजदूरी करते हैं। सोनम की क्रिकेट में रुचि थी तो उसके पिता ने दोनों वक्त की मजदूरी शुरू कर दी ताकि खर्चा निकल सके। पिता ने पैसा इकठ्ठा किया। उसे मैदान में ले गए और एकेडमी में प्रैक्टिस कराई।
सोनम बाएं हाथ की स्पिन बॉलर हैं और दाएं हाथ से बल्लेबाजी करती हैं। सोनम को फाइनल में 15वें ओवर तक गेंदबाजी करने का मौका नहीं दिया तो घरवाले मायूस हो गए। हालांकि 16वें ओवर में सोनम को बॉल थमाई गई। वर्ल्ड कप के फाइनल मैच में इंग्लैंड का आखिरी विकेट उनकी बॉलिंग पर ही आया था।बुलंदशहर की पार्श्वी चोपड़ा 16 साल की हैं। टीम इंडिया में वो लेग स्पिनर हैं। पूरे टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 11 विकेट पार्श्वी ने ही लिए। पार्श्वी की जीत पर उसके दादा परशुराम भावुक हो गए। दरअसल पार्श्वी के दादा जोनल के लिए खेल चुके हैं। उसके पिता और चाचा क्लब क्रिकेट खेल चुके हैं। दादा को उम्मीद थी कि जो उनके बेटे नहीं कर पाए वो एक दिन उनकी पोती करके दिखाएगी। आज भारत की जीत के बाद उसके पूरे परिवार को उस पर नाज है।