समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंधन बन तो गया है लेकिन इसके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिनको जोड़ा है उनका कितना असर रहेगा और उनके नेता अपने प्रभाव से कितना वोट सपा प्रत्याशियों को दिला पाएंगे। यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि पिछले दो गठबंधन सपा ने बड़े दलों से किए थे।
पिछले गठबंधन से मिले नतीजे व अनुभव की रोशनी में देखा जाए तो सपा-कांग्रेस का गठबंधन अनुकूल परिणाम नहीं दे सका बल्कि नतीजे दोनों के लिए बहुत निराशाजनक रहे। दोनों दलों का वोट ट्रांसफर नहीं हुआ या अविश्वास की कमी निचले स्तर पर रही। इस तरह की बातें दोनों ओर से बाद में आईं। लोकसभा चुनाव में भी सपा-बसपा का अनुभव एक दूसरे के प्रति अच्छा नहीं रहा। इसमें सपा तो आधी रह गई और बसपा को 10 सीटों का फायदा हो गया।
अब सपा के सामने चुनौती है कि छोटे दलों के जनाधार को अपने जनाधार के साथ मिलाया जाए तब जाकर गठबंधन के प्रत्याशियों की जीत पक्की होगी। सपा ने इस चुनौती को समझते हुए ही गठबंधन के साथियों के साथ जिलों जिलों में समन्वय बैठकें करवाईं। अब होर्डिंगों में अखिलेश, शिवपाल संग दिखते हैं तो कहीं ओम प्रकाश राजभर अखिलेश के एक साथ फोटो दिखते हैं।
गठबंधन वाले दलों को जब टिकट वितरण का काम पूरा होगा तो अपनी पार्टियों के लोगों को रूठ जाने से रोकना होगा, जिनके टिकट काटकर सहयोगी दलों को सीट दी जाएगी उनकी नाराजगी पार्टी को महंगी पड़ सकती है। यह संतुलन बनाने का काम भी मुश्किल है।
सपा के आगे एक मुश्किल और है कि गठबंधन को चुनाव के बाद भी अटूट रखना। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सपा मुख्य दल होने के नाते कितनी सीट लेकर आया। इसलिए उसे इतना शानदार प्रदर्शन खुद करना होगा ताकि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में सहयोगी दल इधर-उधर या यूं कहें भाजपा की तरफ न भटक जाएं।