आपने फिल्मों और टीवी सीरियल्स में बड़े-बड़े झूमर और डेकोरेशन तो देखे ही होंगे। कभी सोचा है कि ये झूमर कहां से लाए जाते हैं। इन्हें बनाता कौन है। इन्हें बनाने और फिल्मों में दिखाने का कितना खर्च आता है। इस हफ्ते के रील टू रियल में इन्हीं झूमर वालों से बात करेंगे। उनके काम करने का प्रोसेस जानेंगे।
रिकी और दिनेश की टीम प्रोडक्शन हाउसेज के साथ मिलकर काम कैसे करती है। इनके चार्सेज किस तरह के होते हैं। इन्हें काम करने के लिए कितने दिनों का डेडलाइन मिलता है। इन सारे पॉइंट्स को एक-एक करके जानेंगे।
दिनेश और रिकी मिश्रा ने बताया कि उनकी टीम आर्ट डायरेक्टर्स के साथ को-ऑर्डिनेट करती है। आर्ट डायरेक्टर्स इन्हें अपना विजन समझा देते हैं। वे बता देते हैं कि उन्हें सेट पर कैसी लाइटिंग और डेकोरेशन चाहिए। इसके लिए वे सेट पर स्केच भी लगा देते हैं। दिनेश और रिकी की टीम इसे समझकर उसी हिसाब से प्रोडक्ट तैयार करती है।
इनकी फैक्ट्री में मौजूद कारीगर, झूमर, शो लाइट, वॉल लैंप और आर्टिफिशियल फूलों वाली लरिया बनाते हैं। फिर इनकी फैक्ट्री का एक बंदा फिल्म के सेट पर इन सामानों को लेकर जाता है, और वहां लगा देता है।
फिल्मों और सीरियल्स के सेट पर डेकोरेशन के चार्जेस क्या होते हैं। दिनेश और रिकी मिश्रा ने कहा, ‘हम लोग डेली के हिसाब से चार्ज करते हैं। जितने दिन हमारा प्रोडक्ट यूज में रहेगा, उतने दिनों का पैसा मिलता है। एक तरह से कह सकते हैं कि हम रेंट पर सामान देते हैं, जिसके बदले में हमें पैसे मिलते हैं।
हमारा एक टीम मेंबर वहां हमेशा मौजूद रहता है। जब तक शूटिंग चलती है, तब तक वो शख्स वहीं बैठा रहता है। उसे हर दिन के हिसाब से भत्ता मिलता है। एक बार काम होने के बाद वो शख्स सामान को डिस्मेंटल करके वापस फैक्ट्री तक लाता है। ट्रांसपोर्टेशन के चार्जेस अलग से लिए जाते हैं।’
रिकी मिश्रा ने कहा कि धूम-3 के गाने मलंग में आमिर खान जिस झूमर के आगे झूलते हुए नजर आते हैं, वो उन्हीं की फैक्ट्री में बना था। हालांकि इसकी जानकारी रिकी और उनकी टीम को भी नहीं दी गई थी। यशराज स्टूडियो से जुड़े लोगों ने बस झूमर बनाने का ऑर्डर दिया था। अब यह किस सीन में यूज होगा, इसे सीक्रेट रखा गया था।
रिकी के मुताबिक, वॉर के गाने ‘घुंघरू टूट गए’ में 50 फीट बड़ा झूमर बनाकर दिया गया था। यह इतना बड़ा था कि पूरा सेट कवर हो गया था। इसके आस-पास आठ-आठ फीट के छोटे झूमर भी लगे थे।
तनिष्क के ऐड वीडियोज में भी यश इंजीनियरिंग के झूमर देखे जा सकते हैं। इसके अलावा मोबाइल कंपनी ओप्पो के ऐड में भी इनके झूमर यूज किए गए हैं।
रिकी ने कहा कि उन्हें पता ही नहीं होता है कि उनके झूमर का यूज किस फिल्म या किस प्रोजेक्ट के लिए होता है। फिल्म रिलीज के बाद ही पता चलता है कि उनका बनाया प्रोडक्ट कहां-कहां यूज हुआ है।
आज कल की फिल्मों में शादियों का बहुत चलन है, अक्सर देखा जाता है कि शादी वाले सीक्वेंस में बैकग्राउंड को फूलों से सजा दिया जाता है। ये सारे आर्टिफिशियल फूल होते हैं। रिकी और दिनेश की टीम इन्हें कपड़ों से बनाती है। असली फ्लॉवर्स एक वक्त पर खराब हो जाते हैं, ऐसे में फिल्मों में ओरिजिनल नहीं बल्कि आर्टिफिशियल फूलों का इस्तेमाल किया जाता है।
ये बाद में यूज भी किए जा सकते हैं। इन्हें इतनी बारीकी और खूबसूरती से बनाया जाता है कि देखने में ये बिल्कुल नेचुरल लगते हैं। टीवी सीरियल्स जैसे गुम है किसी के प्यार में, तेरी-मेरी डोरियां, तोसे नैना मिलाकर और आंगन के सेट का डेकोरेशन रिकी और दिनेश की टीम ही करती है। इस सीरियल में यूज किए जा रहे कार्पेट भी यहीं से जाते हैं।
सेट का डेकोरेशन करने में एक दिन का समय लगता है। झूमर लगाने में दो से तीन घंटे लगते हैं। अगर झूमर बड़ा है, तब इसे फिट करने में और भी ज्यादा समय लग जाता है। झूमर लगाने का काम सबसे लास्ट में ही होता है।
एक बार पूरा सेट तैयार होने के बाद अंत में झूमर लगाए जाते हैं। एक झूमर को बनाने में एक से डेढ़ महीने का वक्त लगता है। इसमें से कुछ का वजन 150 से 200 किलो तक होता है। इसे फोल्ड करके ट्रांसपोर्ट करना पड़ता है। फिर फिल्म या सीरियल्स के सेट पर असेंबल किया जाता है।
ये सामने दिख रहे झमर का वजन 150 किलो तक है। इन्हें पैक करने के लिए कपड़ों का यूज होता है, ताकि टूटे न। इन्हें सिंगल-सिंगल पार्ट्स में ट्रांसपोर्ट किया जाता है। लगाने के टाइम पर इसे असेंबल किया जाता है।
ये सामने दिख रहे झूमर का वजन 150 किलो तक है। इन्हें पैक करने के लिए कपड़ों का यूज होता है, ताकि टूटे न। इन्हें सिंगल-सिंगल पार्ट्स में ट्रांसपोर्ट किया जाता है। लगाने के टाइम पर इसे असेंबल किया जाता है।
डायरेक्टर प्रकाश झा के मॉल में इनके झूमर लगे हैं
रिकी और दिनेश की टीम में एक महबूब नाम के कारीगर काम करते हैं। वो तकरीबन 25 साल से इस फील्ड में हैं। अपने काम में वो इतने पारंगत हैं कि उन्हें दुनिया का बड़ा से बड़ा, भारी से भारी झूमर दिखाओ, वो उसे आसानी से बना देंगे।
फेमस फिल्म मेकर प्रकाश झा ने इन्हें पटना स्थित अपने मॉल के लिए झूमर बनाने का ऑर्डर दिया। प्रकाश झा ने एक महीने का समय दिया था। महबूब ने एक महीने से कम समय में वहां जाकर झूमर लगा दिए।
इसके अलावा फेमस आर्ट डायरेक्टर रजत पोद्दार की फरमाइश पर सात दिन में 20 झूमर बना दिए थे। सामान्य स्थिति में इतना करने में 6 महीने लगते हैं। रजत पोद्दार उस वक्त शाहरुख खान की फिल्म पठान पर काम कर रहे थे।
दिनेश मिश्रा ने एक बड़ी दिलचस्प बात बताई। दिनेश ने कहा कि धूम-3 की शूटिंग के दौरान उनक एक झूमर डैमेज हो गया था। प्रोडक्शन वाले पैसे देने में आनाकानी कर रहे थे। दिनेश यशराज स्टूडियो में ही बैठे थे। अचानक उनके पास यशराज फिल्म्स के मालिक आदित्य चोपड़ा का बुलावा आया।
आदित्य ने दिनेश को अपने ऑफिस में बुलाया और पूछा कि कितना नुकसान हुआ है? दिनेश ने 3 लाख की रकम बताई। आदित्य ने बिना एक सेकेंड की देर किए जीएसटी सहित 3 लाख रुपए का चेक काटकर दे दिया। दिनेश ने कहा कि आदित्य चोपड़ा जैसा इंसान जो शायद ही किसी से मिलता है। उन्होंने बकायदा ऑफिस में बुलाया और नुकसान की भरपाई कर दी।
दिनेश ने कहा कि कोविड के समय यशराज स्टूडियो ने उनकी काफी मदद की। हर जगह से पेमेंट आने बंद हो गए थे। सिर्फ यशराज ही इकलौता प्रोडक्शन हाउस था, जिसने लोगों को बुला-बुला कर पैसे दिए थे। दिनेश ने कहा कि यशराज स्टूडियो के पास उनका 14 लाख बकाया था। उन्होंने बिना एक रुपए काटे सारा भुगतान कर दिया। दिनेश इसके लिए आदित्य चोपड़ा के शुक्रगुजार भी हैं।
दिनेश ने कहा कि प्रोडक्शन वाले मोलभाव बहुत करते हैं। भले ही फिल्म 500 करोड़ मेंं बने, लेकिन प्रोडक्शन वाले यही कहते हैं कि उनके पास पैसा नहीं है। वो चाहते हैं कि कम दाम में उनका काम चल जाए। वो कम दाम में बेहतर प्रोडक्ट की उम्मीद करते हैं