क्षेत्रीय दलों की ताकत बढ़ेगी

पिछले सात साल में भारतीय जनता पार्टी के उभार की वजह से राज्यसभा में क्षेत्रीय दलों की ताकत काफी कम हो गई है। लेकिन अगले साल दोवार्षिक चुनाव में इन दलों की ताकत में इजाफा होगा। राज्यों के चुनाव में क्षेत्रीय दलों के मुकाबले भाजपा वैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई है, जैसा नरेंद्र मोदी के कमान संभालने के तुरंत बाद हुए चुनावों में किया था या कांग्रेस के खिलाफ जैसा उसका प्रदर्शन होता है। तभी बिहार से लेकर आंध्र प्रदेश और बंगाल से लेकर तमिलनाडु व केरल तक क्षेत्रीय पार्टियों की ताकत बढ़ेगी। आंध्र प्रदेश में खाली हो रही सभी सीटें जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के खाते में जाएंगी। पिछले चुनाव में हारी टीडीपी के चार राज्यसभा सांसदों को तोड़ कर भाजपा ने अपनी पार्टी में मिला था। उनमें से तीन सीटें अगले साल खाली हो रही हैं और वो तीनों सीटें वाईएसआर कांग्रेस के खाते में जाएंगी। इसी तरह तमिलनाडु में तीन सीटें खाली हो रही हैं, जिनमें से दो सीटें अन्ना डीएमके की हैं। अन्ना डीएमके के दो राज्यसभा सांसदों ने विधानसभा का चुनाव लड़ा था और जीत कर दोनों विधायक हो गए हैं। उनकी खाली सीटें डीएमके के खाते में चली जाएंगी। बिहार में सीटों की संख्या के लिहाज से राजद सबसे बड़ी पार्टी है इसलिए अगले साल होने वाले छह सीटों के दोवार्षिक चुनावों में राजद को तीन सीटें मिलेंगी। तीनों सीटें राजद खुद रख सकती है या एक सीट कांग्रेस को दे सकती है। अगले साल विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अगर सपा और बसपा का प्रदर्शन सुधरता है तो दोनों को कुछ सीटों का फायदा हो सकता है। केरल में पिछली बार से ज्यादा सीट जीतने से लेफ्ट पार्टियों की संख्या में कम से कम एक सीट का इजाफा हो सकता है। तेलंगाना राष्ट्र समिति, तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल की संख्या पहले जैसी ही रहेगी।