भारत के ‘डोसा किंग’ कहे जाने वाले सर्वना भवन के मालिक राजगोपाल की बर्बादी की कहानी

पी राजगोपाल की कहानी में आपको सबकुछ देखने को मिलेगा: फर्श से अर्श तक उठने की कहानी, एक भारतीय रेस्त्रां की श्रृंखला को बनाने वाला दूरदर्शी, एक ज्योतिष की सलाह पर तीसरी शादी करने की चाह जो जुनून में बदल गई और इसमें आड़े आ रहे शख्स को रास्ते से हटाने के लिए उसकी हत्या तक करवा दी। सर्वना भवन के संस्थापक और मालिक पी राजगोपाल ने इस रेस्त्रां की शुरुआत भारत में की जो अब लंदन के लिसेस्टर स्क्वायर से लेकर न्यूयॉर्क शहर के लेक्सिंगटन एवेन्यू और सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया के शहर सिडनी और स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम तक फैला हुआ है। लेकिन पी राजगोपाल इस रविवार से उम्र कैद की सजा काटेंगे। हमेशा सफेद लिबास में रहने वाले और माथे पर चंदन लगाए रखने वाले 71 साल के राजगोपाल तमिलनाडु के एक गांव में प्याज के व्यापारी के बेटे हैं।

1981 में उन्होंने चेन्नई में एक किराने की दुकान खोली जो तब मद्रास के नाम से जाना जाता था। उस दौर में जब ज्यादातर भारतीयों के लिए बाहर खाना खाना आमबात नहीं थी तब उन्होंने अपना पहला रेस्त्रां खोलने का साहसिक कदम उठाया।

इस रेस्त्रां की कामयाबी की नुस्खा था कि उन्होंने दक्षिण भारत के डोसा पैनकेक, तला हुआ बड़ा, इडली राइस केक जैसे लजीज व्यंजन परोसे, जिनका स्वाद एकदम घर में बने हुए खाने जैसा था और यह बहुत महंगा भी नहीं था।

चेन्नई के एक पत्रकार जीसी शेखर ने एएफपी से कहा, “निम्न मध्यवर्गीय परिवार किसी खास मौकों पर खुशी मनाने के लिए अगर कहीं बाहर खाने की सोचता तो वे सर्वना भवन भवन पहुंच जाते।” वे कहते हैं, “इस व्यक्ति ने जैसा रेस्त्रां का लोकतांत्रिकरण कर दिया।”

यह अवधारणा भारत से बाहर तकरीबन 80 आउटलेट्स के साथ विदेशों में फैल गई है, जिसमें ज्यादातर संयुक्त राज्य अमेरिका, खाड़ी देश, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में है और ये प्रवासी भारतीयों को जरूरतों को पूरा करती हैं।

वे अपने कर्मचारियों का ख्याल रखते हैं, अपने सबसे छोटे कर्मचारी को भी स्वास्थ्य बीमा जैसी सुविधा मुहैया कराते हैं। इसके बदले में वे प्यार से उन्हें “अन्नाची” कहकर बुलाते हैं यानी बड़ा भाई।

उनके रेस्त्रां की दीवार पर हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीर के साथ ही दो अन्य तस्वीर लटकी होती है- एक उनके बेटों के साथ है, जो अब यह कारोबार चला रहे हैं, और दूसरी तस्वीर में वे अपने अध्यात्मिक गुरू के साथ हैं।

लेकिन उनकी मान्यताएं और श्रद्धा, जो भारत में आम तौर पर असामान्य नहीं है, उनकी बर्बादी का कारण बनी। राजगोपाल ने एक ज्योतिष की सलाह पर तीसरी शादी करने का फैसला किया जो उसके कर्मचारी की बेटी थी और कई दिनों से उसकी निगाह में चढ़ी हुई थी।

वह युवती पहले से शादीशुदा थी और उसने राजगोपाल के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। लेकिन राजगोपाल को ना सुनने की आदत नहीं थी। उसने उस युवती के पति की हत्या करवा दी।

यह एक हाई प्रोफाइल आपराधिक मामला था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, शांताकुमार जीवज्योति का पति था जिससे कि राजगोपाल शादी करना चाहता था। होटल मालिक के गुर्गों ने उसकी चेन्नई के वेल्लाचेरी स्थित घर से अक्तूबर 2001 में अपहरण करने के बाद हत्या कर दी थी। शांताकुमार का शव 31 अक्तूबर को कोडाई पहाड़ियों के जंगल में मिला था।

निचली अदालत ने राजगोपाल को हत्या के मामले में दोषी ठहराया था और उसे 10 साल की सजा सुनाई थी। मद्रास उच्च न्यायालय ने इस सजा को बढ़ाकर उम्रकैद कर दिया था। आरोपी ने इस सजा के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की थी। हालांकि उसे सर्वोच्च अदालत से कोई राहत नहीं मिली है।

ऐसे शुरू हुई इस अपराध की कहानी

जीवज्योति के पिता रामास्वामी ने शांताकुमार को अपने बेटे को गणित का ट्यूशन देने के लिए नियुक्त किया था। रामास्वामी राजगोपाल के यहां सहायक प्रबंधक के तौर पर काम करते थे। बाद में रामास्वामी जब मलेशिया चले गए तो उनकी बेटी को शांताकुमार से प्यार हो गया। उन्हें यह शादी मंजूर नहीं थी क्योंकि शांताकुमार क्रिश्चियन था। मगर जोड़े ने परिवार की परवाह किए बिना अप्रैल 1999 में शादी कर ली।

कुछ महीनों बाद अपनी ट्रैवल एजेंसी खोलने के लिए जोड़े ने जीवज्योति के चाचा और राजगोपाल से कर्ज के लिए संपर्क किया। जीवज्योति को देखकर राजगोपाल उसपर मोहित हो गया और उसने उसे रोजाना फोन करना शुरू कर दिया। वह उसे महंगे उपहार देने लगा।

उसने ज्योति को एक ज्योतिष की सलाह पर अपनी तीसरी पत्नी बनने का प्रस्ताव दिया। मगर वह नहीं मानी तो उसने उनके बीच लड़ाई करवानी शुरू की। राजगोपाल ने शांताकुमार से भी कहा कि वह उसकी पत्नी से शादी करना चाहता है।

परेशान होकर जब जोड़ा चेन्नई से बाहर जाने की कोशिश कर रहा था तो राजगोपाल के गुर्गों ने उनका अपहरण कर लिया। शांताकुमार की गुंडो ने पिटाई की। जोड़े ने पुलिस में शिकायत की लेकिन उनकी मुश्किलें कम नहीं हुईं।

इसके बाद 26 अक्तूबर 2001 को जोड़े को अगवा करके तिरुचेंदूर लाया गया। जहां शांताकुमार को उसके परिवार से अलग करके उसकी हत्या कर दी गई। साल 2004 में रेस्त्रां व्यवसायी को इस अपराध का दोषी करार दिया गया था।

उच्चतम न्यायालय ने 29 मार्च को मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए सर्वना भवन के मालिक पी राजगोपाल को उम्रकैद की सजा सुनाई। मामले से जुड़े पांच अन्य लोगों को भी सजा सुनाई गई। राजगोपाल फिलहाल जमानत पर बाहर है जो उसे 2009 में उच्चतम न्यायालय से मिली थी।

उन्हें सात जुलाई तक आत्म समर्पण करना है और उसके बाद अपना बाकी का जीवन सलाखों के पीछे काटना है। पत्रकार शेखर कहते हैं, “राजगोपल एक मिसाल हैं कि कैसे आप कड़ी मेहनत और बड़ी सोच के जरिये समाज में अपनी जगह बना सकते हैं।” साथ ही वे कहते हैं, “महिलाओं के प्रति उनकी आसक्ति और कमजोरी उनके पतन का कारण बनी, और यह सोच कि वे इतने ताकतवर हैं कि वे किसी की हत्या करवा देंगे और बच जाएंगे।”