असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का सोमवार शाम को देहांत हो गया। कांग्रेस के दिग्गज नेता तरुण गोगोई को असम में सियासी स्थिरता लाने वाले नेता के तौर पर याद किया जाता है। गोगोई असम के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने साल 2001 से 2016 तक सूबे के मुख्यमंत्री पद की कमान सभाली थी। उन्होंने लगातार 15 वर्षों तक असम के मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया। पीएम मोदी ने उन्हें लोकप्रिय नेता एवं कुशल प्रशासक के तौर पर याद किया है।
गोगोई का जन्म एक अप्रैल 1936 में हुआ था। उनके पिता डॉक्टर थे। गोगोई ने गुवाहाटी यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री ली थी। वह असम बार काउंसिल के सदस्य भी रहे। तरुण गोगोई के सियासी सफर की बात करे तो यह 1968 से तब शुरू हुआ था जब उन्होंने जोरहाट नगर मंडल के सदस्य के तौर पर निर्वाचित हुए थे। एक बार जब उन्होंने सियासत में कदम रखा तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अपने काम से कांग्रेस के तत्कालीन शीर्ष नेतृत्व को काफी प्रभावित किया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनके सियासी दबदबे से इस कदर प्रभावित हुईं कि उनको साल 1971 में सूबे के यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। साल 1971 में वह कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित होकर लोकसभा पहुंचे। वह कुल छह बार लोकसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। जोरहाट लोकसभा सीट से एक सांसद के तौर पर उनका पहला तीन टर्म साल 1971-85 तक रहा। बाद के तीन टर्म (1991-2001) उन्होंने कालियाबोर लोकसभा सीट से चुनाव जीता था। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिंह राव के साथ भी काम किया।
मौजूदा वक्त में इस सीट से उनके बेटे गौरव गोगोई लोकसभा सदस्य के तौर पर प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। तरुण गोगोई साल 1991 से 1995 तक केंद्रीय मंत्री के तौर पर विभिन्न मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभाली। साल 2001 में उन्होंने सियासत की वह बुलंदी हासिल की जिसका सपना राजनेता देखते हैं। साल 2001 में उन्होंने असम के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली। उस वक्त उन्होंने लोकसभा सदस्य रहते हुए सीएम पद की कमान संभाली थी। बाद में उन्होंने लोकसभा छोड़कर अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता था।
एक और वाकया सामने आता है। साल 1976 की बात है तब इंदिरा जीन ने देश में इमरजेंसी लगा रखी थी। यह वह वक्त था जब इंदिरा जी विपक्ष के निशाने पर थीं। यही नहीं पार्टी के भीतर भी पर्दे के पीछे सुगबुगाहटें जोर पर थीं। उस समय गोगोई शीर्ष नेतृत्व के प्रति वफादार बने रहे जिसका ईनाम भी उन्हें मिला। उनको ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का संयुक्त सचिव नियुक्त कर दिया गया। समय के साथ कांग्रेस नेतृत्व के प्रति उनकी वफादारी मजबूत होती गई जिसके चलते सियासत की दुनिया में उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
राजीव गांधी की सरकार के दौरान साल 1986 में असम अकार्ड साइन किया गया था। इसके बाद असम में तनाव का माहौल था। राजीव जी ने गोगोई को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया। कांग्रेस नेतृत्व की ओर से गोगोई को असम में पार्टी को फिर से खड़ा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। यह वह वक्त था जब असम गण परिषद के नेता प्रफुल्ल कुमार महन्त की सूबे में मजबूत पकड़ थी। साल 1990 आते आते गोगोई ने कांग्रेस को खड़ा करने के साथ अपनी सियासी जमीन भी मजबूत की। पीवी नरसिम्हाराव की सरकार गोगोई को इसका ईनाम दिया और वह 1991-96 तक केंद्रीय मंत्री रहे…
डॉक्टरों की मानें तो 86 वर्षीय गोगोई के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। सांस लेने में दिक्कत होने के बाद वह बेहोश हो गए थे। बीते 25 अगस्त को गोगोई कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए थे। इसके अगले दिन उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कोरोना संक्रमण से जंग जीतने के बाद उनको 25 अक्टूबर को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी। कुल दो महीने तक वह अस्पताल में भर्ती थे। बीते दो नवंबर को को बेचैनी की शिकायत के बाद उन्हें गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक
-क्यों न्यूज़ मीडिया संकट में है और कैसे आप इसे संभाल सकते हैं
-आप ये इसलिए पढ़ रहे हैं क्योंकि आप अच्छी, समझदार और निष्पक्ष पत्रकारिता की कद्र करते हैं. इस विश्वास के लिए हमारा शुक्रिया.
-आप ये भी जानते हैं कि न्यूज़ मीडिया के सामने एक अभूतपूर्व संकट आ खड़ा हुआ है. आप मीडिया में भारी सैलेरी कट और छटनी की खबरों से भी वाकिफ होंगे. मीडिया के चरमराने के पीछे कई कारण हैं. पर एक बड़ा कारण ये है कि अच्छे पाठक बढ़िया पत्रकारिता की ठीक कीमत नहीं समझ रहे हैं.
-द दस्तक 24 अच्छे पत्रकारों में विश्वास करता है. उनकी मेहनत का सही मान भी रखता है. और आपने देखा होगा कि हम अपने पत्रकारों को कहानी तक पहुंचाने में जितना बन पड़े खर्च करने से नहीं हिचकते. इस सब पर बड़ा खर्च आता है. हमारे लिए इस अच्छी क्वॉलिटी की पत्रकारिता को जारी रखने का एक ही ज़रिया है– आप जैसे प्रबुद्ध पाठक इसे पढ़ने के लिए थोड़ा सा दिल खोलें और मामूली सा बटुआ भी.
अगर आपको लगता है कि एक निष्पक्ष, स्वतंत्र, साहसी और सवाल पूछती पत्रकारिता के लिए हम आपके सहयोग के हकदार हैं तो नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करें और हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें . आपका प्यार द दस्तक 24 के भविष्य को तय करेगा.
https://www.youtube.com/channel/UC4xxebvaN1ctk4KYJQVUL8g
आदर्श कुमार
संस्थापक और एडिटर-इन-चीफ