अफगानिस्तान में बुधवार को नया एकेडमिक ईयर यानी शिक्षा सत्र शुरू हो गया। तालिबान हुकूमत ने इसके लिए एक सेरेमनी होस्ट की, लेकिन इसमें किसी महिला पत्रकार को नहीं जाने दिया गया। 10 लाख से ज्यादा गर्ल स्टूडेंट्स को तालीम हासिल करने की मंजूरी नहीं दी गई है। अफगानिस्तान दुनिया का इकलौता देश है, जहां महिला शक्ति को शिक्षा का अधिकार नहीं है।
करीब 10 लाख लड़कियां इस सेशन में स्कूल नहीं जा सकेंगी। कुछ खबरों में कहा गया है कि पांचवीं तक की लड़कियां पर्दे में शिक्षा हासिल कर सकती हैं, लेकिन इसकी तस्वीर भी साफ नहीं है। कुल मिलाकर 50 लाख लड़कियां ऐसी हैं, जो इस वक्त स्कूल से दूर हैं। हालांकि, ये हालात तालिबान के दूसरी बार सत्ता में आने से पहले भी अच्छे नहीं थे। लेकिन, अब इन्हें भयावह कहा जा सकता है।
लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने की एक वजह फेसेलिटीज का न होना भी है। देश में न तो अच्छे स्कूल हैं और न दूसरी व्यवस्थाएं। यूएन ने कई साल तक यहां एजुकेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारने की कोशिश की, लेकिन हालात बदल नहीं सके।
बुधवार को एकेडमिक ईयर की शुरुआत के मौके पर जो सेरेमनी हुई, उसमें वुमन जर्नलिस्ट्स को एंट्री नहीं दी गई। तालिबान की एजुकेशन मिनिस्ट्री ने कहा- उन्हें इनविटेशन इसलिए नहीं दिया गया, क्योंकि इसके लिए वहां जरूरी इंतजाम नहीं थे। लिहाजा, हम उनसे माफी मांगते हैं।
सेरेमनी के दौरान एजुकेशन मिनिस्टर हबीबुल्लाह आगा ने कहा- हम मॉडर्न और रिलीजियस एजुकेशन का कॉम्बिनेशन तैयार करना चाहते हैं। पहली कोशिश तो यही है कि साक्षरता बढ़ाई जाए, लेकिन इसके लिए मजहबी उसूलों से समझौता नहीं किया जाएगा। इसलिए मदरसे ज्यादा खोले जाने पर विचार किया जा रहा है। स्टूडेंट ऐसे कपड़े पहनें जो इस्लामिक और अफगान कल्चर के हिसाब से सही हों। शिक्षा को देश के हर हिस्से तक पहुंचाने की कोशिश जारी है।
पिछले महीने एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि तालिबान के शासन में 33 साल की रोया अजीमी 2022 से लड़कियों के लिए अंडरग्राउंड स्कूल चला रही हैं। उनके साथ 6 अन्य महिलाएं 9 से 18 साल की करीब 150 लड़कियों को पढ़ाती हैं।
एक बार तालिबान की धार्मिक मामलों की समिति के लोगों ने स्कूल में घुसने की कोशिश भी की थी। लेकिन आस-पड़ोस के पुरुषों ने इसे सिर्फ लड़कियों का सिलाई स्कूल बताकर उन्हें रोक लिया। इसके बाद रोया को स्कूल बंद करना पड़ा था, लेकिन यह जानते हुए कि वे कभी भी पकड़ी जा सकती हैं, उन्होंने स्कूल शुरू किया। पकड़े जाने पर दूसरी बैक-अप इमारत ढूंढ़ रखी है। इतने जोखिमों के बाद भी रोया का कहना है कि वह डरी नहीं हैं। वे कहती हैं- पढ़ाना धर्म, विश्वास, संस्कृति या लोगों के विरुद्ध नहीं है। यह गर्व का काम है।
खुद रोया को भी शिक्षा पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। रोया के चाचा नहीं चाहते थे कि वे पढ़ाई करें। रोया की मां ने चाचा को राजी करवाया और हमेशा बुरका पहने रखने की शर्त पर उन्हें पढ़ाई करने की छूट मिली। रोया ने फारसी साहित्य में पढ़ाई की है।
अफगानिस्तान की तस्वीर 2021 में बदलना शुरू हुई। 15 अगस्त 2021 को तालिबान यहां दोबारा काबिज हुआ था। सत्ता पर काबिज होने के बाद तालिबान ने कठोर इस्लामी शासन से राहत देने की बात कही थी। फिर भी महिलाओं पर कई प्रतिबंध लगाए गए।