उत्तर प्रदेश विधानसभा सत्र के 11 दिन विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना के मामले में छह पुलिसकर्मियों पर सुनवाई होगी। कटघरे में खड़े छह पुलिसकर्मियों पर साल 2004 के मामले में विधानसभा अध्यक्ष की मौजूदगी में सदन सुनवाई कर कार्रवाई कर सकता है। इससे पहले 1964 में यूपी विधानसभा में कटघरे में सुनवाई की गई थी।
साल 2004 में सपा सरकार में बिजली कटौती के विरोध में वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना कानपुर में धरने पर बैठे थे। धरने पर बैठे बीजेपी के विधायक और कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज करने की वजह से तत्कालीन विधानसभा सदस्य सलिल विश्नोई की टांग टूटी थी। वह कई महीनों बेड पर पड़े थे। इसके बाद विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना की सूचना 25 अक्टूबर 2004 को विधानसभा सत्र में रखी गई थी।
पुलिस की लाठीचार्ज में सलिल विश्नोई की टांग टूट गई थी। जिसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह सलिल से मिलने उनके घर गए थे। उन्होंने कहा था, सलिल तुम धैर्य मत खोना
विधानसभा से मिली जानकारी के अनुसार, विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना के मामले में छह पुलिसकर्मियों के खिलाफ करीब डेढ़ साल तक की सुनवाई हुई। सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने के बाद सभी पुलिसकर्मियों को दोषी पाया गया। लेकिन 2004 के बाद से लेकर अभी तक इस मामले में कोई भी सजा नहीं सुनाई गई थी। विधानसभा सत्र के 11वें दिन कार्रवाई में करीब 12 बजकर 30 मिनट के बाद मामले में सदन की अदालत के कटघरे में 6 पुलिसकर्मियों को खड़ा कर कर सजा पर फैसला किया जा सकता है
विधानसभा में विशेषाधिकार हनन के मामले में पूर्व सीईओ कानपुर के साथ ही पांच अन्य पुलिसकर्मियों को पेश करने के निर्देश DGP और प्रमुख सचिव गृह को विधानसभा अध्यक्ष ने दिए। संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना की ओर से सदन में रखे गए विशेषाधिकार से जुड़े प्रस्ताव को सर्वसम्मति से सदन की मंजूरी मिल गई है। विशेषाधिकार हनन के तहत छह पुलिसकर्मियों को विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत होने के बाद ठंड पर चर्चा होगी। सभी को सदन में उपस्थित करने की जिम्मेदारी डीजीपी की होगी। वहीं, विधानसभा में पेश करने का जिम्मेदारी मार्शल को दिया गया है।
सीओ अब्दुल समद के अलावा किदवई नगर के थानाध्यक्ष ऋषिकांत शुक्ला, एसआई थाना कोतवाली त्रिलोकी सिंह, किदवई नगर थाने के सिपाही छोटे सिंह यादव, काकादेव थाने के सिपाही विनोद मिश्र और काकादेव थाने के सिपाही मेहरबान सिंह शामिल हैं। ये सभी उस वक्त शहर के ही विभिन्न थानों में तैनात थे।
14 मार्च 1964 में यूपी विधानसभा में नरसिंह नारायण पांडे विधानसभा सदस्य के खिलाफ भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाया गया था। जिसमें गोरखपुर के साथ-साथ विधानसभा में हाथों में एक पंपलेट प्रकाशित और प्रसारित किया गया था। विधानसभा में नरसिंह नारायण पांडे तथा अन्य द्वारा शिकायत की गई यह विशेषाधिकार का हनन है। विशेषाधिकार समिति के द्वारा शिकायत पर चार व्यक्तियों को नोटिस भेजा गया था। जिसमें केशव सिंह, श्याम नारायण, हुबलाल दुबे और महात्मा सिंह नोटिस में शामिल थे। इन चारों पर आरोप था कि श्याम नारायण सिंह हुबलाल दुबे ने पंपलेट को छपवाया और वितरित किया था। या अभी आरोप लगाया गया था कि सदन की लॉबी की ओर जाने वाले गेट पर महात्मा सिंह ने पंपलेट का वितरण भी किया। विशेषाधिकार समिति के याचिकाकर्ता को ढूंढ निकाला गया। विशेषाधिकार समिति की जांच में सही पाए जाने पर फटकार लगाते हुए दोषियों पर अवमानना की कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया था
नरसिंह नारायण पांडे विधानसभा सदस्य की याचिका पर दोषी पाए गए। मामले में श्याम नारायण सिंह हुबलाल दुबे समेत तीन को विधानसभा के समक्ष उपस्थित होने का नोटिस जारी किया गया था। श्याम नारायण सिंह और हुबलाल दुबे 19 फरवरी 1964 को विधानसभा के समक्ष पेश हुए। फटकार प्राप्त की लेकिन आवश्यक रेल यात्रा की किराए का भुगतान करने में असमर्थता जताई। तीसरे दोषी पाए गए केशव सिंह को बार-बार विधानसभा अध्यक्ष के कहने के बावजूद उपस्थित ना हुए।
इस पर विधानसभा अध्यक्ष के आदेश पर 13 मार्च 1964 को मार्शल के द्वारा गोरखपुर से गिरफ्तार कर 14 मार्च 1964 को पेश किया गया। विधानसभा अध्यक्ष के हस्ताक्षर से जारी किए गए वारंट पर 19 मार्च 1964 को 7 दिन की सजा मिली और 2 रुपया जुर्माना लगाया गया था। फिलहाल इस मामले में केशव सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ हाईकोर्ट इलाहाबाद बेंच में 10 मार्च 1965 को याचिका दाखिल की थी।