उदयपुर और अमरावती के बाद अब अजमेर से एक वीभत्स वीडियो आया है। वीभत्स इसलिए कि इसमें भी सिर कलम करने की धमकी आई है। यह धमकी देने वाला और कोई नहीं, बल्कि अजमेर दरगाह का खादिम सलमान चिश्ती है। उसके वायरल वीडियो में वह नूपुर शर्मा का सिर काटने का फतवा दे रहा है और कह रहा है कि जो ऐसा करेगा वह उसे अपना मकान सौंप देगा। यह भी कह रहा है कि मैं अगर पहले वाला सलमान होता तो नूपुर शर्मा को गोली मार चुका होता।
सलमान चिश्ती, दरगाह पुलिस थाने का हिस्ट्रीशीटर भी रहा है। सवाल यह उठता है कि पवित्र दरगाह के खादिम इस तरह के हिस्ट्रीशीटर को कौन बनाता है और क्यों? यही नहीं, बतौर खादिम उसके वायरल वीडियो को देखने या मानने वाले इस वक्त क्या-क्या और कैसी-कैसी योजनाएं या साजिशें रच रहे होंगे, यह किसे पता? पुलिस की नजर में तो चिश्ती अब तक फरार है, लेकिन वह क्या कर रहा होगा, कोई नहीं जानता।
अजमेर दरगाह के निजामी गेट से हुई भड़काऊ बयानबाजी करने वालों को पुलिस अभी तक गिरफ्तार नहीं कर पाई है। जबकि, पुलिस ने उनकी पहचान कर लेने का दावा किया था।
अजमेर दरगाह के निजामी गेट से हुई भड़काऊ बयानबाजी करने वालों को पुलिस अभी तक गिरफ्तार नहीं कर पाई है। जबकि, पुलिस ने उनकी पहचान कर लेने का दावा किया था।
पिछले दिनों इसी दरगाह के निजाम गेट से भड़काऊ नारेबाजी करने वाले 25 लोगों की पहचान पुलिस ने की थी। किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया। हो सकता है इसी वजह से सलमान चिश्ती की हिम्मत बढ़ी होगी।दरअसल, वर्षों तक जब अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने और समग्र या बहुसंख्यक के नकार की राजनीति की जाती रही, तब किसी को कोई तकलीफ नहीं हुई, जैसे ही पहली बार बहुसंख्यकों को तरजीह दी जाने लगी तो सब कुछ अन्यायपूर्ण और गलत नजर आने लगा। क्यों? यह सही है कि समग्र के ठीक ढंग से काम करने के लिए जो कर्तव्य और दायित्व सरकार पर हैं, उन्हें अनुचित हस्तक्षेप या किसी जंजीर के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि खुद व्यक्ति के अस्तित्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए।
ठीक वैसे ही जैसे किनारों की वजह से ही नदी बह पाती है। व्यक्ति बचेगा तो परिवार बचेगा। परिवार बचेगा तो समाज और समाज के बचने से ही देश बचा रह सकता है। ठीक है, नूपुर शर्मा का बयान गलत था और उनके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन इसके लिए आप एक के बाद एक लोगों की गर्दन काटने लगें, यह कौन सा न्याय है? आखिर हम किस तरह के समाज और देश का निर्माण करना चाहते हैं?
पिछले कई सालों तक हमारी राजनीति अंशों, अवयवों और अल्पसंख्यकों को एक साथ जोड़कर उन्हें उकसाती रही, ताकि समग्र को, बहुसंख्यकों को दबाया जा सके। अब हरेक मुद्दे पर बहुसंख्यक को लामबंद किया जा रहा है, जो होना भी चाहिए, तो कई स्थापित धारणाओं को यह उल्टी गंगा समझ में नहीं आ रही। या सुहाती नहीं है। बात सिर्फ इतनी सी है।
यही वजह है कि एक बयान की खातिर लोग, अन्यों की गर्दन काटने पर उतारू हैं। …और हमारी पुलिस, हमारा तंत्र, सांप के निकल जाने के बाद लकीर पर डंडे पीटने के अलावा कुछ नहीं कर पा रही है या कहना चाहिए कि वह कुछ करना ही नहीं चाहती।