सुशील कठेरिया (राष्ट्रीय अध्यक्ष किसान सेना रिपब्लिक पार्टी) ने देश में सूखाग्रस्त मुड़े पर विचार व्यक्त किये । सुशील कठेरिया ने कहा की देश में सूखे के नए आंकड़े आ गए हैं। आधा देश इस समय सूखे की चपेट में है। हैरत की बात ये है कि अभी कुछ महीने पहले ही देश में कई जगह बाढ़ की खबरों से मीडिया भरा हुआ था। खासतौर पर केरल में बाढ़ से तबाही हमारे सामने थी। उस समय ‘गाँव कनेक्शन के इसी स्तम्भ में एक आलेख लिखा गया था कि ‘यही बाढ़ बनेगी सूखे का सबब।’ पिछले साल जुलाई के महीने तक देश के कई हिस्से बाढ़ की चपेट में थे। देश का मौसम विभाग सामान्य वर्षा का अनुमान लगा रहा था।
सरकारी विभाग का हिसाब देश में औसत बारिश से लगता है। यानी कहीं भारी सूखा और कहीं बाढ़ को मिलाकर औसत वर्षा को सामान्य बताना कोई नई बात नहीं है। याद करें तो पिछले मानसून ने तय समय से दो हफ्ते पहले पूरा देश कवर कर लिया था। सामान्य वर्षा के आंकड़ों के बीच उस समय बारिश का पानी नदियों को उफनाता और तबाही मचाता हुआ समुद्र में चला जा रहा था। तब इसी स्तंभ में लिखा गया था कि बाढ़ से बचने का सबसे बड़ा उपाय जल संभरण की अपनी क्षमता को बढ़ाना है। बारिश के पानी को आबादी वाले इलाकों में तबाही मचाने से रोकने के लिए पानी का संभरण न सिर्फ बाढ़ से बचाता है बल्कि निकट भविष्य में पड़ने वाली पानी की ज़रूरत के लिए भी काम आता है। आज की स्थिति को देखें तो पिछले साल के सामान्य मानसून के दावों के बाद भी आज देश के कई इलाके सूखे की चपेट में हैं। इसीलिए जल संरक्षण और सूखा प्रबंधन पर विश्लेषण की दरकार एक बार फिर है।
हमारा देश आकार में इतना बड़ा है कि कोई भी सर्वेक्षण या आकलन पूरी तरह सही तस्वीर बताने का दावा नहीं कर सकता। लेकिन शोध पद्धति और सैंपलिंग के नए तरीके विकसित होने से काफी कुछ सही आकलन होने लगे हैं। अपने देश में सूखे और उससे जुड़ी दूसरी समस्याओं पर सर्वेक्षण और विश्लेषण का काम इस समय आईआईटी गाँधीनगर के जिम्मे है। आईआईटी गांधीनगर की वाटर एंड क्लाइमेट लैब ने इस साल भारत में सूखे की स्थिति के आंकड़े जारी कर दिए हैं। उसके मुताबिक इस समय देश का 47 फीसदी हिस्सा यानी करीब आधा देश सूखे की चपेट में है। सूखे की चपेट में देश के इस सैतालीस फीसदी भूभाग में 16 फीसदी इलाके ऐसे हैं, जिन्हें एक्सट्रीम ड्रॉट यानी अत्यधिक या भयंकर सूखे की श्रेणी में रखा गया है।
सूखे की स्थिति पर रिपोर्ट के साथ विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं ने हमेशा की तरह कुछ उपाय भी सुझाए हैं। उनका कहना है कि शहरों में पानी बचाने की मुहिम ज्यादा कारगर नहीं है। क्योंकि घरेलू काम में पानी की खपत थोड़ी सी ही है। इसीलिए आईआईटी के जल विज्ञानियों को यही समझ पड़ रहा है कि खेती में पानी के इस्तेमाल में बदलाव लाकर हालात में थोड़ा बहुत सुधार लाया जा सकता है। उनका हिसाब यह है कि इस समय भारत में कृषि क्षेत्र करीब 80 फीसदी ताज़ा पानी इस्तेमाल कर रहा है। लिहाजा उनका सुझाव यह है कि कुछ फसलें जैसे चावल जिन्हें उगाने में ज्यादा पानी लगता है, उन्हें पानी की कमी वाले इलाकों में ना उगाया जाए। यह सुझाव जल विज्ञानियों का ही है जबकि कृषि विशेषज्ञ पहले से ही वह तरीका ढ़ूंढने में लगे हैं कि देश में क्रॉप पैटर्न में बदलाव के लिए क्या किया जाए।