सियासी हंगामे में जोरदार रहा पेगासस मुद्दा जांच में कमजोर साबित हो रहा है। संसद का मानसून सत्र पेगासस की भेट चढ़ गया था। बजट सत्र में विपक्षी सांसदों की ओर से फिर से इसे धार देने की कोशिश हो रही है। वहीं दूसरी तरफ औपचारिक जांच में मदद के लिए लोग आगे नहीं आ रहे हैं। लगभग 300 विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की पेगासस के माध्यम से जासूसी कराने का आरोप था। हालत यह है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सामने जांच के लिए न तो कोई आ रहा है और न ही अपना मोबाइल फोन दे रहा है। अभी तक केवल दो लोगों ने ही अपना मोबाइल फोन विशेषज्ञों से जांच के लिए जमा कराया है। पैनल ने फिर से आठ फरवरी तक के लिए समय बढ़ा दिया है।
गौरतलब है कि विपक्षी हंगामे के कारण मानसून सत्र के धुल जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में जांच के एक पैनल का गठन किया था। अक्टूबर में तकनीकी कमेटी गठित होने के बाद उन सभी लोगों को पैनल के सामने पेश होने और जांच के लिए अपना फोन जमा कराने को कहा गया था, जो जासूसी के शिकार बने थे। परंतु तीन महीने में सिर्फ 10 लोगों ने अपना बयान दर्ज कराया है और उनमें से केवल दो ने तकनीकी जांच के लिए अपना मोबाइल फोन जमा कराया है। इनमें दिल्ली के पत्रकार जे गोपीकृष्णन और झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता रुपेश कुमार शामिल हैं।
इसके बावजूद बजट सत्र के पहले एक बार फिर न्यूयार्क टाइम्स में 2017 में इस्त्राइल के साथ एक डिफेंस डील के तहत भारत को पेगासस स्पाइवेयर के मिलने की जानकारी दी गई। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पैनल की जांच के कारण यह तूल नहीं पकड़ पाया।