कांग्रेस के हाथ से फिसल रही ‘इंडिया’ की कमान, अखिलेश-तेजस्वी क्यों नहीं करेंगे आना-कानी

‘इंडिया’ ब्लॉक की कमान कांग्रेस के हाथ से फिसलने का खतरा पैदा हो गया है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हालिया बयान से यही संकेत मिलता है. ममता का कहना है कि ‘इंडिया’ ब्लॉक के गठन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जिन्हें नेतृत्व का जिम्मा मिला है और वे नहीं कर पाते हैं तो ममता बंगाल की सीएम रहते हुए नेतृत्व के लिए तैयार हैं. ममता इसके पहले भी कई मौकों पर ‘इंडिया’ ब्लॉक का नेतत्व करने वाली कांग्रेस पर निशाना साधा है. हाल ही में उन्होंने कहा था कि कांग्रेस को संसद में सिर्फ अडानी का मुद्दा ही दिखता है. विपक्षी नेताओं में ममता बनर्जी पहली नेता हैं, जिन्होंने बांग्लादेश के मुद्दे पर सकारात्मक बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार को बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र की सेना की तैनाती की पहल करनी चाहिए. ममता का यह बयान तब आया है, जब कांग्रेस के सीनियर लीडर मणिशंकर और सलमान खुर्शीद ममता के ठीक उलट बोल रहे हैं कि बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, वह भारत में भी हो सकता है. ममता के इन दो बयानों से साफ है कि वे इंडिया ब्लॉक में कांग्रेस के स्टैंड और कामकाज से असंतुष्ट हैं.

कांग्रेस से ममता की पुरानी अदावत
सनद रहे कि ममता बनर्जी ने कांग्रेस छोड़ कर ही तणमूल कांग्रेस का गठन किया था. उनके कांग्रेस छोड़ने की वजह थी कि वे बंगाल की तत्कालीन वाम मोर्चा की सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही थीं, लेकिन कांग्रेस नरमी बरत रही थी. तबसे लेकर अब तक उनके निशाने पर बंगाल की वामपंथी पार्टियां जितनी रही हैं, उससे कम कांग्रेस नहीं. ममता ने बंगाल में वाम दलों की तरह कांग्रेस को भी नेस्तनाबूद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अव्वल तो पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के किसी उम्मीदवार को ममता ने जीतने नहीं दिया. दूसरा, उपचुनाव में वाम दलों के सहयोग से एक उम्मीदवार कांग्रेस के टिकट पर जीता भी तो उसे ममता ने अपनी पार्टी में शामिल करा लिया. कांग्रेस से उनकी खुन्नस इससे भी समझी जा सकती है कि इंडिया ब्लॉक में रहते हुए उन्होंने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से कोई समझौता नहीं किया. वाम दलों की तरह कांग्रेस को भी किनारे रखा.

कांग्रेस रहित विपक्ष की पक्षधर ममता
वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी को जब तीसरी बार सरकार बनाने का मौका मिला, तब ममता ने विपक्षी एकता का अभियान चलाया था. विपक्ष को एक करने की उनकी अवधारणा में कांग्रेस कहीं नहीं थी. वे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से मिलीं. मुंबई जाकर एनसीपी के सुप्रीमो शरद पवार और शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे से उन्होंने मुलाकात की. दिल्ली में आम आदमी पार्टी के संयोजक और तब सीएम रहे अरविंद केजरीवाल से भी उनकी कई मुलाकातें हुई थीं. आरजेडी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव तो ममता को बहन ही बताते हैं. हेमंत सोरेन से उन्होंने बात की. आड़े वक्त हेमंत सोरेन की उन्होंने मदद भी की थी. पर, उनकी इन मुलाकातों-बातों में कांग्रेस का जिक्र कहीं नहीं था. यह अलग बात है कि शरद पवार की वजह से तब माहौल नहीं बन पाया. पवार ने साफ कह दिया कि कांग्रेस को छोड़ विपक्षी एकता की बात बेमानी है.

‘इंडिया’ के गठन में भूमिका निभाई

वर्ष 2023 में बिहार में महागठबंधन का नेता रहते नीतीश कुमार ने जब विपक्षी एकता की पहल की और ममता बनर्जी से मिलने वे कोलकाता गए तो ममता की सलाह पर ही विपक्षी नेताओं की पहली बैठक पटना में रखी गई. ममता ने कहा था कि बिहार आंदोलन की भूमि है, इसलिए पटना में पहली बैठक होनी चाहिए. हालांकि, इसके पीछे भी उनकी राजनीतिक चाल थी. वे जानती थीं कि दिल्ली में बैठक हुई तो कांग्रेस हावी हो जाएगी. खैर, पटना की बैठक में पहली बार विपक्ष के नेता एक साथ बैठे. जब नामकरण का समय आया तो ममता ने ही सबसे पहले ‘इंडिया’ नाम का समर्थन किया.

गांधी परिवार से ममता की खुन्नस

ममता बनर्जी राहुल-सोनिया को तो एकदम पसंद नहीं करतीं. यह विपक्षी गठबंधन के नामकरण समारोह में ही साफ हो गया था. उन्होंने प्रधानमंत्री के लिए राहुल के बजाय मल्लिकार्जुन खरगे के नाम का प्रस्ताव दिया था. यह सभी जानते हैं कि राहुल गांधी को दरकिनार कर कांग्रेस में कोई इस तरह की बात सोच नहीं सकता. यह भी ममता बनर्जी की एक चाल ही थी. ममता जानती थीं कि इसके लिए खरगे तैयार नहीं होंगे और बाकी दलों के सहयोग से समय आने पर वे अपना नाम आगे कर सकेंगी. ममता को नीतीश कुमार से भी भय था, जो शुरू में अघोषित संयोजक की भूमिका का निर्वाह कर रहे थे. ममता ने अड़ कर नीतीश को संयोजक बनाने से मना कर दिया था. यह बात राहुल गांधी ने वर्चुअल मीटिंग में जब नीतीश कुमार को बताई तो उन्होंने इंडिया ब्लॉक से विदाई लेने में ही भलाई समझी.

ममता का साथ दे सकते हैं कई नेता

ममता बनर्जी की अखिलेश यादव से खूब बनती है. अखिलेश जब भी कोलकाता जाते हैं, ममता से मिले बगैर नहीं लौटते. झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से ममता की पटरी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके शपथ ग्रहण समारोह में ममता पहुंच गई थीं. वैसे भी अखिलेश कांग्रेस को अधिक तवज्जो देने के मूड में कभी नहीं दिखते. चुनावों के दौरान सीटों का बंटवारा हो या संसद में सिटिंग अरेंजमेंट, अखिलेश ने कांग्रेस के प्रति तल्ख तेवर ही अपनाए हैं. बिहार में आरजेडी भी कांग्रेस को बोझ ही मानती रही है. इसलिए तेजस्वी यादव का ममता का साथ मिल सकता है. अरविंद केजरीवाल और उद्धव ठाकरे से भी ममता की अच्छी पटती है. ममता अगर इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व के लिए रजामंदी दे रही हैं तो यकीनन उनके चिंतन में इन सियासी किरदारों के भरोसे की ही बात होगी.

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