रीना कपूर एक ऐसी अदाकारा हैं जो हर किरदार में खुद को ढाल लेती हैं और उम्र के साथ-साथ उनकी एक्टिंग में भी काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. वो समय के साथ चलना जानती हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण आज (13 सितंबर) सिनेमाघरों में रिलीज हुई उनकी फिल्म ‘द बकिंघम मर्डर्स’ है. इस फिल्म में उनकी अदाकारी देखने के बाद आप उनकी एक्टिंग के मुरीद हो जाएंगे. उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वो एक शानदार अभिनेत्री हैं. साथ वह इस फिल्म की प्रोड्यूसर भी हैं.
‘द बकिंघम मर्डर्स’ देखते वक्त आपको भी ऐसा लगेगा कि इस फिल्म को हॉलीवुड के तर्ज पर बनाया गया है. 107 मिनट की इस छोटी फिल्म आपको कुर्सी से उठने तक नहीं देगी, लेकिन क्यों? तो वजह है फिल्म की कहानी और साथ ही करीना का किरदार. तो चलिए, सबसे पहले बात करते हैं फिल्म की कहानी की. इसकी शुरुआत होती है इंग्लैंड के बकिंघमशायर से, जहां एक सरकारी डिटेक्टिव जसप्रीत भामरा ‘जैज’ (करीना कपूर) बेहद दुखी है, क्योंकि दिमागी रूप में बीमार एक शख्स उनके 10 साल के बेटे की गोली मारकर हत्या कर चुका है और उसी शख्स को कोर्ट ने सजा भी सुना चुकी है.
एक तरफ जहां जसप्रीत इस घटना से बिलकुल टूट चुकी है, तो वहीं दूसरी ओर उसका ट्रांसफर भी हो चुका है. ट्रांसफर के तुरंत बाद ही उसे एक ऐसे केस में लगाया जाता है, जिसमें ट्रांसपोर्टर दलजीत (रणवीर बरार) और प्रीति कोहली (प्रभलीन) के बेटे की हत्या हो चुकी है. करीना इस केस में पहले तो काम करने से इनकार कर देती है, फिर अपने बॉस के समझाने पर वह इस पर काम करने के लिए तैयार हो जाती है. वहीं, इस केस मे पहले से काम करे एक ऑफिसर हार्दिक उर्फ हार्डी पटेल (ऐश टंडन) इस मामले में दलजीत के पार्टनर सलीम के बेटे साकिब को गिरफ्तार कर लेता है, लेकिन जसप्रीत को इस बात से बिलकुल भी संतुष्ट नजर नहीं आती.
जसप्रीत को ऐसा लगता है कि यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई है. उसे ऐसा लगता है कि इस हत्या कांड के पीछे कोई और है. फिर जसप्रीत अपने इस केस में अपने अनुसार जांच में जुट जाती है. अब आगे क्या होता है यह जानने के लिए आपको सिनेमाघर जाकर पूरी फिल्म देखनी होगी. वैसे एक्टिंग की बात करें तो न सिर्फ करीना बल्कि कीथ एलन, ऐश टंडन, प्रभलीन और रणवीर बरार भी अपने-अपने किरदार के साथ इंसाफ किया है. वहीं, फिल्म देखकर ऐसा भी लगता है कि एक्टर्स के साथ-साथ फिल्म के निर्देशक हंसल मेहता ने भी इस फिल्म के लिए काफी मेहनत की है.
हंसल मेहता के निर्देशन में बनी इस फिल्म को जब देखने बैठेंगे तो कुर्सी से तब तक नहीं उटने का मन करेगा, जब तक कि क्लाइमैक्स में पूरा राज न खुल जाएगा. हंसल एक दिग्गज फिल्म निर्देशक हैं, इसलिए वह अच्छे से जानते हैं कि दर्शकों क्या चाहिए और क्या नहीं. इसके अलावा फिल्म थोड़ी कमियां भी नजर आती है, जैसे फिल्म की कहानी बहुत तेजी से आगे बढ़ती नजर आती है. ऐसा लगता है कि यह फिल्म थोड़ी और लंबी हो सकती थी, लेकिन इसे छोटा करने के चक्कर में कुछ चीजें अधूरी लगती है. वैसेकुल मिलाकर देखा जाए तो आप इस फिल्म को जरूर एंजॉय करेंगे. अगर आप सस्पेंस फिल्मों के शौकीन हैं, तो फिर यह फिल्म आपको पसंद आने वाली है. मेरे ओर से फिल्म को 4 स्टार.