किसान आंदोलन को दस महीने पूर हो गए, इस मौके पर आज संयुक्त किसान मोर्चा ने भारत बंद का ऐलान किया है। किसान आंदोलन को दुनिया का सबसे लंबी अवधि तक चलने वाला आंदोलन कहा जा रहा है। आइए जानिए कि पिछले दस महीनों के दौरान ऐसी कौन-कौन सी घटनाएं अथवा पड़ाव आए, जिससे किसान आंदोलन इतना लंबा खिचता चला गया।
- दिल्ली सीमा छोड़ने पर ही बातचीत का प्रस्ताव खारिज
25 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर बैठे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के किसानों को 28 नवंबर को गृहमंत्री अमित शाह ने प्रस्ताव रखा कि जैसे ही किसान दिल्ली सीमाएं छोड़कर बुराड़ी के प्रदर्शन स्थल पर जाएंगे, उनसे वार्ता की जाएगी। पर किसानों ने अविश्वास जताकर यह प्रस्ताव ठुकराते हुए मांग की कि उन्हें दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध धरना करने दिया जाए। इस तरह 25 नवंबर के बाद से लगातार किसान दिल्ली सीमाओं पर ही बने रहे। - कानून में संशोधन पर भी नहीं बनी बात
सरकार ने पहली बार तीन दिसंबर को किसानों से बात की लेकिन कोई हल नहीं निकला। फिर 9 व 11 दिसंबर को बात की गई। इस बार सरकार ने प्रस्ताव रखा कि वे नए कृषि कानूनों में कुछ संशोधन कर सकते हैं पर संयुक्त किसान मोर्चा ने यह प्रस्ताव ठुकराकर नए कानून को पूरी तरह वापस लेने की मांग दोहरायी। बाद में सरकार से 18 महीने तक कानून को स्थगित रखने का प्रस्ताव संगठनों को दिया, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया। - कानून लागू करने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों की याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र को नए कृषि कानून लागू न करने का आदेश दिया। साथ ही चार सदस्यों की समिति बनायी जो दोनों पक्षों को सुनकर कानून पर अपनी सलाह देगी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसानों को कानून के खिलाफ प्रदर्शन का अधिकार है। दूसरी ओर, सरकार ने बिजली से जुड़े कानून में बदलाव न करने की किसानों की मांग मान ली पर नए कृषि कानूनों पर अड़ी रही। - एमएसपी की मांग से बढ़ा विवाद
दिल्ली की सीमा पर जब किसानों को एक महीना होने जा रहा था, सरकार की ओर से भी वार्ता के प्रस्ताव आ रहे थे। तब यह मामला एमएसपी को लेकर खिंच गया। 23 दिसंबर को कृषि मंत्रालय की ओर से भेजे गए पत्र में किसानों से कहा गया कि सरकार वार्ता को राजी है मगर आपसे अनुरोध है कि वार्ता के लिए एमएसपी जैसे मुद्दों को हटा दिया जाए क्योंकि इसका नए कृषि कानून से कोई संबंध नहीं है। इस पर संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा था कि एमएसपी पर कानूनी गांरटी की मांग नए कृषि कानूनों के निरस्तीकरण से जुड़ा मुद्दा है जिसे अलग नहीं किया जा सकता। इस मसले के बाद विवाद बढ़ता चला गया। - लाल किला हिंसा और टिकैत के आंसू
दो महीने से चल रहा आंदोलन 26 जनवरी को हिंसक हो गया, जिसमें टैक्टर सवाल एक किसान की मौत हो गई। लाल किला परिसर में घुसी युवाओं की भ़ीड़ ने हिंसा की, जिससे प्रदर्शन के समर्थन भी विरोध में आ गए। इस घटना के बाद कुछ संगठनों ने प्रदर्शन वापस ले लिया। कानूनी कार्रवाई के डर से कई तंबू उखड़ गए। इसके तीसरे दिन राकेश टिकैत का एक भावुक वीडियो वायरल हो गया, जिसमें उन्होंने किसी भी कीमत पर धरना स्थल न छोड़ने की बात कही। किसानों के बीच टिकैत के इस बयान ने बड़ा असर किया और देखते ही देखते सैंकड़ों किसान गाजीपुर बॉर्डर पर वापस लौट आए, जिसने धरने में जान फूंकी। - बैरीकेडिंग से बढ़ा गुस्सा, टूलकिट से तूल मिली
लाल किला हिंसा के बाद दिल्ली सीमा पर तगड़ी बैरिकेडिंग कर दी गई, सड़कों पर कीलें तक गाड़ दी गईं। ऐसी तस्वीरों ने सोशल मीडिया पर खूब जगह बनायी और इसे युद्ध सीमा से जोड़कर आलोचना की गई। इससे किसानों के समर्थन में माहौल बनता चला गया। दूसरी ओर, इसी दौरान केंद्र सरकार ने दावा किया कि लाल किला हिंसा के लिए बाकायदा एक टूल किट बनायी गई थी। इस मामले में पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को गिरफ्तार किया गया। थनवर्ग व अन्य अंतरराष्ट्रीय हस्तियों ने ट्वीट किए, जिससे मामला तूल पकड़ता चला गया। - दूसरी लहर में धीमे पड़े आंदोलन को चौटाला का समर्थन
दूसरी लहर और रोपाई के समय के कारण अप्रैल के पहले सप्ताह के दौरान कुछ ट्रैक्टर भरकर किसान वापस पंजाब लौटे। 15 अप्रैल को हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर किसानों के साथ वार्ता शुरू करने की अपील की। सरकार के सहयोगी दल से मिले इस समर्थन को हरियाणा के किसानों ने अपनी जीत माना। मई में आंदोलन के छह माह पूरे होने पर टिकैत बोले, अगर सरकार नहीं मानी तो आंदोलन 2024 तक चलेगा। - किसान संसद ने दिया नया मुकाम
किसानों ने क्रांतिकारी भगत सिंह के जन्मदिवस के बाद से लगातार छोटे-छोटे प्रदर्शन शुरू कर दिए। 26 जून को सात माह पूरे होने पर दिल्ली जाकर मार्च करने की योजना बनायी, जिसमें बड़ी संख्या में अलग-अलग राज्यों के किसानों को गिरफ्तार करने का दावा हुआ। फिर किसान संगठन ने संसद सत्र की शुरूआत पर समानांतर किसान संसद चलायी। जिसमें हर दिन 200 किसान जंतर-मंतर पर यह संसद लगाते थे। इस गतिविधि को विपक्ष और मीडिया का खूब साथ मिला। - महापंचायत करके वोट की चोट की चुनौती
हाल के दिनों में किसान आंदोलन का सबसे बड़ा आयोजन पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत के रूप में हुआ। यहां किसान संगठनों ने किसानों के सामने घोषणा की कि आगामी चुनाव में वे सरकार के खिलाफ प्रचार करेंगे। राकेश टिकैत ने बयान दिया कि अब सरकार को वोट की चोट दी जाएगी। विपक्ष ने महापंचायत का समर्थन किया हालांकि किसी विपक्षी दल के नेता को मंच नहीं साझा करने दिया गया। - करनाल हिंसा के खिलाफ सफल धरना
महापंचायत के तुरंत बाद 7 सितंबर से किसानों ने करनाल में धरना शुरू कर दिया और स्थानीय प्रशासन पर कार्रवाई की मांग उठाई। दरअसल, 28 अगस्त को करनाल में कथित रूप से एक पुलिस अफसर के आदेश पर किसानों पर लाठी चार्ज का मामला सामने आया। इस घटना में एक किसान की मौत का दावा किया गया था। किसानों के पांच दिन के धरने के बाद सरकार झुकी और अफसर को निलंबित करके न्यायिक जांच बैठाई गई। इस जीत ने सरकार को टक्कर दे रहे किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा दिया है।