“ये भी शिक्षक हैं। इनके पढ़ाए स्टूडेंट्स ने भी बेमिसाल कामयाबी हासिल की हैं। इनके परिवार का गुजारा भी उसी वेतन से होता हैं। जिसे एक बैठक में अपर मुख्य सचिव के मौखिक आदेश पर साल भर पहले से रोक दिया गया हैं।
प्रदर्शन के साथ हम याचना कर रहे हैं। विरोधी दलों के नेताओं को ससम्मान मंच पर जगह न देकर वापस किया हैं। 2 दशक से सेवाओं के बदले वेतन पाने वाले शिक्षकों का अचानक से कैसे वेतन रोक सकते हैं? इस पर सोचना चाहिए? बावजूद इसके हम प्रदर्शन के साथ पढ़ाई भी करा रहे हैं। यह कहना हैं माध्यमिक शिक्षा निदेशालय पर लगातार 39 दिन से धरना दे रहे तदर्थ शिक्षकों के संयोजक राजमणि सिंह का।”
वो कहते हैं कि 26 जून को एक ऐसे ही शिक्षक की कैंसर से मौत हो गई। बहराइच के महेंद्र कुमार मिश्रा के इलाज का खर्च परिवार उठाने में अक्षम था। साल भर से उनका वेतन रोक दिया गया था। उनकी मौत के बाद बेटी पल्लवी मिश्रा पिता के हक के लिए आवाज बुलन्द कर रही हैं।
तदर्थ शिक्षकों के आंदोलन के संयोजक राजमणि सिंह सिंह ने बताया कि 1471 तदर्थ शिक्षक साल 2003 से विभाग में सेवाएं दे रहे हैं। मई 2022 ने एक मौखिक आदेश के तहत करीब 1400 शिक्षकों का वेतन रोक दिया गया। कई शिक्षक विधायक भी धरना और प्रदर्शन स्थल तक पहुंचे। मगर अब नैतिकता के खिलाफ शिक्षकों पर कार्रवाई की जा रही है।
राजमणि सिंह ने कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने वेतन रोकने का आदेश नही दिया। आदेश आने के 15 महीने बाद तक सरकार ने हमे वेतन दिया। पर अचानक से ऐसा क्या हुआ कि मौखिक रूप से 1400 शिक्षकों का वेतन रोक दिया गया। इसके लिए कोई लिखित आदेश जारी करना भी उचित नही समझा। कोर्ट ने अपने जजमेंट में तदर्थवाद को समाप्त करने का की बात कही है।
हर साल माध्यमिक शिक्षा विभाग में जुलाई महीने में 3 से साढ़े 3 हजार शिक्षक रिटायर होते हैं। इन शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए तदर्थ शिक्षक दिन रात अपना पूरा योगदान देते हैं। मैं खुद विभाग में 25 साल से अपनी सेवाएं दे रहा हूं। इतने सालों में सरकार ने चयन बोर्ड के माध्यम से शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को स्ट्रीमलाइन किया होता तो आज ये दिन क्यों देखने पड़ता हैं।
राजमणि सिंह ने बताया कि अफसरों से बातचीत हो रही है। सरकार हमें पहले जैसा वेतन देने पर राजी नही हैं। हमारा वेतन 20 हजार किया जा रहा हैं। जो विभाग के चपरासी के वेतन से आधे से भी कम हैं। अभी तक हमें सामान रूप से वेतन मिलता रहा हैं और हम सेवाए भी उसी प्रकार दे रहे थे। इस प्रकार से डिस्क्रिमिनेशन करने पर शिक्षकों का मनोबल टूट जाएगा तो हम बच्चों का भविष्य कैसे बना पाएंगे?
राजमणि सिंह कहते हैं कि पिछली कई सरकार के कार्यकाल में अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में मैथ्स,साइंस, इंग्लिश,सामान्य विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषयों के शिक्षक रिटायर्ड हो जाते थे तो उस समय विद्यालय में तालाबंदी की नौबत आ जाती थी। ऐसी परिस्थितियों में तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति होती थी। उन विद्यालयों में अध्यापन कर इन शिक्षकों ने उनके अस्तित्व को बचाने का काम किया। 20 साल से इन शिक्षकों को राजकोष से वेतन प्राप्त होता रहा है।
उन्होंने दावा किया कि आज एकाएक अगर सरकार तदर्थ शिक्षकों को सेवा से बाहर कर देगी तो पूरे प्रदेश में 300 से 400 विद्यालय में तालाबंदी हो जाएगी। फिलहाल चयन आयोग का गठन नहीं हुआ हैं। 3500 शिक्षक इस समय रिटायर्ड है। सरकार के पास कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है उनके स्थान पर कोई चयन आयोग से अभ्यर्थी भेजा जाए।
गुरुवार को तदर्थ शिक्षकों की दूसरे दौर की वार्ता हुई पर कोई ठोस नतीजा नही निकला। इस दौरान अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार ने आंदोलन कर रहे शिक्षकों से उनकी मांगों के बारे में पूछा और ऊपर तक उसे पहुंचाने की बात कही। इस दौरान कोर्ट के डिसिशन पर भी बात हुई। हालांकि बातचीत के बाद शिक्षकों ने आंदोलन जारी रखने की बात कही।
इस बीच गुरुवार को प्रदेश के प्रबंधक संघ सभा के अध्यक्ष महंत देवेंद्र दास की अगुवाई में करीब 30 से 40 सदस्यों ने निदेशक से भेंट की। इस दौरान प्रबंधकों ने तदर्थ शिक्षकों के पक्ष में बात रखने के साथ ज्ञापन भी सौंपा। प्रबंधक संघ प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों से धरना स्थल पर भी मिला। अध्यक्ष महंत देवेंद्र दास ने कहां कि तदर्थ शिक्षकों के साथ न इंसाफी नही होने दी जाएगी।
ज्यादातर तदर्थ शिक्षक रिटायरमेंट के करीब हैं। अब इन्हें बाहर करने से न केवल इनका भविष्य पूरे परिवार के भविष्य पर असर पड़ेगा।
कोर्ट के तदर्थ वाद को समाप्त करने के निर्देश दिए पर सरकार तदर्थ शिक्षकों को समाप्त कर रही हैं। ऐसा शिक्षक विरोधी रवैया बंद करने की मांग