ऐसे संभालें अपना संवेदनशील बच्चा

खेलना-कूदना, शरारत करना आदि बच्चों के लिए सामान्य-सी बात है, लेकिन इससे इतर कुछ बच्चे अपनी गुमसुम दुनिया में व्यस्त रहना ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसे बच्चों की परवरिश में थोड़ी सतर्कता की जरूरत होती है, बता रही हैं स्वाति शर्मा

समझें अपने बच्चे को

शीतल की आठ साल की बच्ची उसकी समझ से परे है। शीतल को जितना ज्यादा लोगों से मिलना-जुलना पसंद है, उसकी बच्ची उतना ही लोगों से दूर भागती है। बिटिया के कारण उसने भी लोगों से मिलना कम कर दिया है। वो अपनी बेटी को कुछ कह भर दे कि उसका आंसू बहना शुरू हो जाता है। उसे न तो दूसरी बच्चियों के साथ खेलना पसंद है और न ही वह अपना सामान किसी को हाथ लगाने देती है। शीतल समझा कर थक चुकी है, पर उसकी बेटी पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

इस बच्ची के जैसे और भी कई बच्चे होते हैं, जो दुनिया से कटे-कटे रहते हैं और कहीं न कहीं इन सभी की मांएं अपने बच्चों को शीतल की ही तरह दुनिया की भीड़ में शामिल करने में जुटी रहती हैं। लेकिन ऐसी स्थिति में बच्चों को समझाने से ज्यादा खुद माताओं को यह समझना जरूरी है कि यहां कोई भी जोर-जबरदस्ती काम नहीं आने वाली। वो इसलिए, क्योंकि ऐसे बच्चे बहुत ज्यादा संवेदनशील होते हैं और इनसे बर्ताव का तरीका सामान्य बच्चों से अलग होता है। अगर बच्चा संवेदनशील है तो माताओं को अपने व्यवहार में तब्दीली लाने और कुछ बातों को समझने की जरूरत है।

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