लोकसभा में कांग्रेस के सात सदस्यों का निलंबन समाप्त

लोकसभा ने कांग्रेस के सात सदस्यों का निलंबन तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के कक्ष में आज हुई सर्वदलीय बैठक के बाद कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने सदन के सुचारू संचालन में सहयोग का आश्वासन दिया तथा पांच मार्च को निलंबित सात सदस्यों का निलंबन तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की माँग की।

संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सदन की कार्य संचालन नियमावली के नियम 374(2) के तहत कांग्रेस के गौरव गोगोई, टी.एन. प्रतापन, डीन कुरियाकोस, बेनी बेहनान, मणिकम टैगोर, गुरजीत सिंह औजला और राजमोहन उन्निथन का निलंबन वापस लेने का प्रस्ताव किया जिसे सदन ने ध्वनिमत से पारित कर दिया।

श्री बिरला पांच मार्च की उस घटना के बाद पहली बार आज सदन में आये थे। उन्होंने कहा कि उस घटना से उन्हें व्यक्तिगत पीड़ा और दु:ख पहुँचा था तथा सभी सदस्यों से अपील की कि वे इस बात का ध्यान रखें की सदन की मर्यादा कम न हो अन्यथा लोगों का भरोसा लोकतंत्र से उठ जायेगा। विपक्ष को उन्होंने आश्वासन दिया कि वे जिस भी विषय पर चर्चा या संवाद चाहते हैं वह उनकी यह माँग पूरी कराने की कोशिश करेंगे।

श्री बिरला ने कहा कि सहमति-असहमति लोकतंत्र का मर्म है। सहमति-असहमति के साथ सदन में कटाक्ष और व्यंग्य भी होने चाहिये, लेकिन यह सब कुछ मर्यादा में होना चाहिये। उन्होंने उल्लेख किया कि सर्वदलीय बैठक में इस बात पर सहमति बनी है कि कोई भी सदस्य दूसरे पक्ष की तरफ नहीं जायेगा, किसी सदस्य को चिह्नित कर आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगाये जायेंगे, कोई भी सदस्य सदन के बीचों-बीच नहीं आयेगा तथा प्लेकार्ड लेकर सदस्य सदन में नहीं आयेंगे। उन्होंने कहा, ” मैं चाहूँगा कि भविष्य में इस आसन से किसी भी सदस्य को निलंबित या निष्कासित न किया जाये।”

अध्यक्ष ने कहा कि सदन में पर्चे फेंकना, मार्शल से कागज छीनना, प्लेकार्ड लाना उचित नहीं है। पिछले सप्ताह हुई घटना के बाद उनसे यह भी कहा गया कि यह पहले भी होता रहा है। उन्होंने सवाल किया कि क्या पिछली घटनाक्रमों को हम उचित मानते हैं, क्या उसकी पुनरावृत्ति होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि लोकसभा के 17 कार्यकाल के दौरान कई उतार-चढ़ाव आये हैं, देश में कई सामाजिक बदलाव हुये हैं। इन सबके बीच सदन में चर्चा, संवाद, वाद-विवाद होता रहा है। सभी दलों ने मिलकर सदन की मइससे पहले संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि सरकार किसी भी सदस्य को बाहर रखकर सदन की कार्यवाही नहीं चलाना चाहती। उन्होंने उम्मीद जताई कि सर्वदलीय बैठक में तय आचार संहिता के शब्दों तथा उसकी भावनाओं का सभी सदस्य पालन करेंगे।

पिछले सप्ताह 05 मार्च को हुई घटना से क्षुब्ध श्री बिरला के दो दिन बाद सदन आने पर सत्ता पक्ष तथा विपक्ष के सभी सदस्यों ने खुशी का इजहार किया। कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष की मर्यादा ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स के अध्यक्ष के समान है। उन्होंने कहा कि विपक्ष के सदस्य भी सदन में चर्चा करने आते हैं और उनका मकसद कभी अध्यक्ष को तकलीफ देना या कार्यवाही में गतिरोध पैदा करना नहीं होता।

कांग्रेस नेता ने कहा, “हो सकता है कि उनसे (05 मार्च को निलंबित सदस्यों से) कुछ गलती हुई हो, लेकिन उसकी तफ्तीश के बाद ही उन सदस्यों पर कार्रवाई की जानी चाहिये थी।”

द्रविड़ मुनेत्र कषगम् के टी.आर. बालू ने कहा कि कांग्रेस के निलंबित सदस्यों का अपराध इतना बड़ा नहीं था कि उन्हें पूरे सत्र के लिए निलंबित किया जाये। उन्होंने कहा कि सरकार ने नियम 373 के तहत सातों सदस्यों पर कार्रवाई नहीं की जिसके के तहत एक दिन के निलंबन का प्रावधान है। इसकी बजाय उसने नियम 374 के तहत कार्रवाई कर सदस्यों को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया। उन्होंने अध्यक्ष से निलंबन तुरंत वापस लेने की माँग की।

तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने कहा कि श्री बिरला की अनुपस्थिति में सदन अनाथ जैसा महसूस कर रहा था। उन्होंने कहा कि 05 मार्च को जो कुछ भी हुआ वह वांछनीय नहीं था। सदन की गरिमा बनाये रखना सबकी जिम्मेदारी है। उन्होंने उम्मीद जताई कि भविष्य में हर सदस्य सदन में इस तरह की हरकत से बाज आयेगा। श्री रॉय ने कहा कि वह कांग्रेस सदस्यों के व्यवहार का बचाव नहीं कर रहे, लेकिन उनका निलंबन जारी रखने का मतलब उनके लोकसभा क्षेत्र के लोगों को सदन में प्रतिनिधित्व से वंचित करना होगा।