सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की उस याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार कर दिया जिसमें उन्होंने मनी लांड्रिंग के मामले में वैधानिक जमानत की मांग की थी। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस पी. नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि इस मामले में उचित राहत इलाहाबाद हाई कोर्ट से मिल सकती है। इससे पहले आय से अधिक संपत्ति मामले से जुड़े मनी लांड्रिंग के आरोपों में लखनऊ की विशेष अदालत ने प्रजापति को वैधानिक जमानत प्रदान करने से इन्कार कर दिया था और उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत में भी भेज दिया था।
हाल ही में लखनऊ की विशेष सांसद-विधायक अदालत ने प्रजापति और दो अन्य को 2017 के चित्रकूट सामूहिक दुष्कर्म मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। साथ ही प्रत्येक दोषी पर दो-दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। चित्रकूट की एक महिला ने 2017 में आरोप लगाया था कि प्रजापति जब उत्तर प्रदेश में मंत्री थे तो उन्होंने और उनके छह सहयोगियों ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था और उसकी नाबालिग बेटी का शीलभंग करने की कोशिश की थी।
मालूम हो कि 18 फरवरी, 2017 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गायत्री प्रसाद प्रजापति एवं अन्य के खिलाफ थाना गौतम पल्ली में सामूहिक दुष्कर्म, जानमाल की धमकी एवं पाक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था। अदालत ने जिन लोगों को सजा सुनाई थी उनमें गायत्री प्रजापति के अलावा आशीष शुक्ला और अशोक तिवारी शामिल हैं। न्यायाधीश ने तीनों को दोषी ठहराते हुए मामले के चार अन्य आरोपियों विकास वर्मा, रूपेश्वर, अमरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू और चंद्रपाल को सबूतों की कमी के कारण बरी कर दिया था। अभियोजन पक्ष ने दुष्कर्म मामले में 17 गवाह पेश किए थे।
मामले में पीड़िता ने दावा किया था कि दुष्कर्म की घटना पहली बार अक्टूबर 2014 में हुई थी। आरोपी की ओर से जुलाई 2016 तक उत्पीड़न जारी रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब आरोपी ने उसकी नाबालिग बेटी से छेड़छाड़ करने की कोशिश की तब उसने शिकायत दर्ज करने का फैसला किया था। प्राथमिकी दर्ज कराए जाने के बाद प्रजापति को मार्च में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह जेल में हैं।