हर मामले में फालतू याचिकाओं की बाढ़ पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। तुच्छ व फालतू याचिकाओं से परेशान सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सामूहिक रूप से हम सभी न्यायिक प्रणाली का मजाक बना रहे हैं।
इस तरह की याचिका की वजह से हमें उन मामलों के निपटारे में दिक्कत हो रही है, जिनका निपटान जरूरी है और लोग लंबे से न्याय का इंतजार कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा हर मामले में अपील दायर करने की के चलन को हतोत्साहित करना होगा।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, एक आम इंसान को हमारी बारीकियों या बड़े कानूनी सिद्धांतों में कोई दिलचस्पी नहीं है, जिसके बारे में हम लगाता बात करते रहते हैं। एक वादी यह जानने में उत्सुक रहता है कि उसके मुकदमे में दम है या नहीं और यह जानने के लिए वह अनिश्चित काल तक इंतजार नहीं करना चाहता कि वह सही था या नहीं। अगर फैसला आने में 10 या 20 साल लग जाए, तो वह उस फैसले का क्या करेगा। जस्टिस कौल ने कहा, सुप्रीम कोर्ट में हमने पाया है कि दीवानी मुकदमा 45 वर्षों से लंबित थे। हम इस तरह के पुराने मामलों का भी निपटारा कर रहे हैं। व्यक्तिगत रूप से मैं पुराने मामलों को बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हूं।
पीठ ने यह भी कहा कि हमें हर मामले में अपील दायर करने की प्रथा को भी हतोत्साहित करना होगा। हम तथ्यों को लेकर तीसरे या चौथे स्तर की जांच नहीं कर सकते। पीठ ने कहा, अगर सुप्रीम कोर्ट के ऊपर कोई कोर्ट होता तो शायद हर मामले में हमारे आदेशों के खिलाफ भी अपील दायर की जाती। कहीं न कहीं तो हमें रुकना होगा।
जस्टिस कौल ने कहा, हम पर अग्रिम जमानत, जमानत, अंतरिम राहत आदि विविध याचिकाओं की ‘बमबारी’ होती रहती है। यही वजह है कि हमें पुराने मामलों को तय करने के लिए समय ही नहीं मिलता है। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में एक दशक से अधिक पुरानी दीवानी और फौजदारी अपीलें लंबित हैं। हमें यह कहते हुए खेद है, लेकिन कानूनी बिरादरी भी केवल इन अंतरिम राहत के मामलों में रुचि रखती है। कोई भी अंतिम मामलों पर बहस नहीं करना चाहता।
दरअसल, मंगलवार को पीठ के समक्ष मुआवजे से संबंधित कई मामले सूचीबद्ध थे। पीठ ने पाया कि इन मामलों में अंतरिम राहत के लिए एक के बाद एक आवेदन दाखिल किए जा रहे हैं। लिहाजा पीठ ने इसे लेकर सख्त नाराजगी जताई।