राजकोट में पति-पत्नी की बलि के पीछे अंधविश्वास या गरीबी, पढ़िए रिपोर्ट

राजकोट के विंछिया गांव के रहने वाले 37 साल के हेमूभाई मकवाना के वॉट्सऐप स्टेटस पर अचानक 10 तस्वीरें अपलोड हुईं। इन तस्वीरों में हेमूभाई मकवाना बिना कपड़ों के थे। उनकी छाती पर बड़ा कट लगा था। इसमें से खून निकल रहा था। तस्वीरों में वो दर्द में या परेशान नजर नहीं आ रहे थे, इससे मालूम चल रहा था कि ये उन्होंने खुद ही किया है।

वॉट्सऐप स्टेटस की अगली तस्वीर में वे पत्नी हंसाबेन के साथ थे। दोनों के माथे पर खून का तिलक लगा था। तीसरी तस्वीर में एक नोट था, जिसमें लिखा था कि उन्होंने ऐसा क्यों किया है। इस वॉट्सऐप स्टेटस के 6 घंटे बाद हेमूभाई मकवाना और उनकी पत्नी हंसाबेन का शव उन्हीं के खेत के आखिरी छोर पर बने एक टेंट से मिला।

इस टेंट में एक हवन कुंड भी था। हेमूभाई की बेटी वहां पहुंची तो हवन कुंड में हंसाबेन का सिर जल रहा था। हेमूभाई का सिर बाहर पड़ा था और उसके चारों ओर की मिट्टी पर खून बिखरा था। हंसाबेन और हेमूभाई के धड़ बाहरी हिस्से में एक साथ सीधे पड़े थे।

उन्हें देखकर लग रहा था, जैसे वे सो रहे हैं। दोनों की मौत हवन कुंड के पास लगे गिलोटिन (वो मशीन जिससे सिर काटकर मौत की सजा दी जाती थी) से हुई थी। तकरीबन 200 किलो की इस मशीन को खुद हेमूभाई ने बनाया था।पुलिस ने वॉट्सऐप स्टेटस से एक नोट भी बरामद किया है। यह 50 रुपए के स्टाम्प पेपर पर लिखा गया था। इसमें लिखा है कि दोनों ने अपनी मर्जी से जान दी है, उनकी मौत के लिए किसी को परेशान न किया जाए। शुरुआती जांच में ये घटना तांत्रिक विद्या और अंधश्रद्धा से जुड़ी नजर आ रही है। पुलिस मर्डर के एंगल से भी जांच कर रही है। दोनों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।

मौके पर मौजूद हवन कुंड, पूजा सामग्री और दूसरी चीजें देखकर कहा जा रहा है कि दोनों ने मरने से कुछ देर पहले ही ‘कमल पूजा’ की थी। इसके बाद अपना सिर हवन कुंड की अग्नि में अर्पित कर दिया। दिल्ली से तकरीबन 1180 किलोमीटर दूर राजकोट के विंछिया गांव पहुंचने पर हमें इस घटना की कई चौंकाने वाली डीटेल्स मिलीं।
’जय भगवान, जय भोलेनाथ, हम दोनों अपने हाथों से अपनी जान दे रहे हैं। मेरे घर में हंसाबेन की तबीयत खराब रहती है। हमारे भाइयों, हमारे मां-बाप और हमारी बहनों में से किसी ने कुछ नहीं कहा है। इसलिए उनसे कोई पूछताछ न की जाए। हमारे सास-ससुर ने भी कभी कुछ नहीं कहा। उनसे भी पूछताछ की जरूरत नहीं है। तुम तीनों भाई साथ में रहना और मां-बाप का ध्यान रखा। मेरे बेटे और बेटी का भी ध्यान रखना। उनकी शादी करवा देना। तुम तीनों भाई घर का ध्यान रखना। मुझे मेरे भाइयों पर भरोसा है।’
हेमूभाई और हंसाबेन अपने पीछे 12 साल का बेटा और 15 साल की बेटी छोड़ गए हैं। कुछ धार्मिक संस्थाओं से जुड़े लोग उनकी मदद के लिए आगे आए हैं। बेटे से हमने घटना के बारे में पूछा तो उसने बताया- ‘मम्मी-पापा पिछले तीन साल से घर के पास खेत में शिवलिंग स्थापित कर पूजा कर रहे थे। मुझसे और मेरी बहन से भी कई बार पूजा करवाई थी। दिन में दो बार सुबह 9 बजे और शाम को 5 बजे पूजा करते थे।’हेमूभाई के बेटे ने बताया- ‘जिस दिन मम्मी-पापा ने अपनी बलि दी, उससे एक दिन पहले उन्होंने मुझसे पूछा था कि क्या तुम अपने मामा के घर जाना चाहते हो? मेरे हां कहने पर मुझे, बहन के साथ मामा के घर छोड़ दिया था। वहां हमने साथ में डिनर किया, फिर वह रात 11 बजे घर लौटने की बात कहकर निकल गए थे। वो बोलकर गए थे कि कल हमें लेने आएंगे।’

इसके बाद मेरी मुलाकात हेमूभाई की बेटी से हुई। उसने बताया- ‘पापा हमें मामा के घर छोड़ने आए थे, तो सब नॉर्मल था। उन्हें देखने से नहीं लग रहा था कि वो ऐसा कुछ करने वाले हैं। मुझे यहां छोड़कर जा रहे थे, तो जाते हुए 100 रुपए भी दिए थे। मुझे नहीं पता था कि मैं उन्हें आखिरी बार देख रही हूं।’ बताते हुए वो जोर-जोर से रोने लगती है।
हेमूभाई की बेटी अभी सदमे में है, बार-बार रोने लगती है। डर से कांपने लगती है। वो आगे बताती है- ‘मम्मी-पापा सुबह आकर ले जाने के लिए कहकर गए थे। वो 10 बजे तक नहीं आए तो मैं मोबाइल लेने के लिए अकेले घर आ गई। घर में कोई नहीं था, मुझे लगा पूजा कर रहे होंगे।’

‘मैं उन्हें ढूंढते हुए हवन कुंड के पास चली गई। मैंने देखा कि हवन कुंड में आग जल रही थी और उसमें मम्मी का कटा सिर था। हवन कुंड के पास ही पापा का भी सिर पड़ा था। थोड़ी दूर पर उनकी लाशें थीं। मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैं दौड़ते हुए चाचा के पास गई और उन्हें सब बताया। सुनते ही चाचा और दादाजी सबसे पहले वहां आए थे।’
बच्चों से बात करने के बाद हम उस नमकीन फैक्ट्री में भी गए, जहां हेमूभाई पिछले 5 साल से काम कर रहे थे। ये उनके घर से सिर्फ डेढ़ किलोमीटर दूर है। स्नैक्स फैक्ट्री के मालिक खोदीदास जखानिया ने बताया- ‘शुरू में हेमूभाई यहां मजदूरी करते थे। उनका काम कच्चे स्नैक्स की पैकिंग करना था।’

जखानिया हेमूभाई से जुड़ा किस्सा सुनाते हैं- ‘एक बार मशीन से तलकर बाहर निकल रहे स्नैक्स कच्चे रह रहे थे। कस्टमर्स ने शिकायत की तो हमने मशीन रिपेयर करने के लिए अहमदाबाद से इंजीनियर बुलाया। वह भी उसे ठीक नहीं कर सका। हेमूभाई ने कहा कि वो मशीन ठीक कर देंगे और 7 दिन में उन्होंने इसे वाकई ठीक कर दिया। उनकी टेक्निकल समझ काफी अच्छी थी। फैक्ट्री का छोटा-मोटा टेक्निकल काम वही करते थे। मैंने उन्हें मजदूर से सुपरवाइजर बना दिया था। उन्हें 18 हजार रुपए महीने सैलरी मिलती थी।’

हेमूभाई के साथ काम करने वाले लोगों के मुताबिक, उन्हें मशीनों की अच्छी जानकारी थी। परिवार को शक है कि उन्होंने धीरे-धीरे सामान जुटाया और पूजा वाले टेंट में गिलोटिन की तरह उपकरण बना लिया।
फैक्ट्री मालिक के बाद हमारी मुलाकात हेमूभाई के पिता भोजाभाई मकवाना से हुई। वे बताते हैं- ‘सुबह के साढ़े 10 बजे होंगे, मेरी पोती रोते-चिल्लाते हुए मेरे पास आई। वो कुछ बोलना चाह रही थी, लेकिन बोल नहीं पा रही थी, सिर्फ रोते जा रही थी। उसे देखकर शक हो गया था कि कुछ गलत हुआ है। मैंने डांटकर उससे पूछा तो उसने हवन कुंड की तरफ उंगली दिखाते हुए कहा कि ‘मेरी बा और पापा…’।
‘इतना सुनते ही मैं हवन कुंड की तरफ दौड़ गया। वहां जो मैंने देखा वो आपको बता भी नहीं सकता। मैं वहीं गिर पड़ा और बेटे का सिर हाथ में लेकर रोने लगा।’ ये कहते हुए भोजाभाई खुद को संभाल नहीं पाते और जोर-जोर से रोने लगते हैं।
भोजाभाई आगे बताते हैं, ‘तीन-चार दिन पहले मैं हवन कुंड के पास गया था, मुझे वहां कोई ऐसी चीज नजर नहीं आई, जिससे गला काटकर जान दी जा सकती थी, लेकिन वो दोनों बदले-बदले से जरूर थे। वे हर दिन मेरे पास आते थे और पैर छूते थे। हर दिन पैर छूना गलत नहीं था, थोड़ा अजीब था, लेकिन शक नहीं हुआ।’हेमूभाई के फैक्ट्री मालिक खोदीदास जखानिया के मुताबिक, ‘पिछले कुछ साल के दौरान ईश्वर में उनकी भक्ति बढ़ गई थी। जब कभी हम फुर्सत में बैठे होते तो वे हमसे ईश्वर और भक्ति की बात करते थे। वे इस संसार में ईश्वर को खोजने की चर्चा किया करते थे। नाइट शिफ्ट में होते थे, तो भी रोज सुबह 5 बजे मुझे जगाते और पुलिस लाइन के पास वाले शिवमंदिर दर्शन के लिए चले जाते थे। आधे घंटे की पूजा के बाद वे दिन की शुरुआत करते थे।’

खोदीदास बताते हैं, ‘घटना वाले दिन से 4 दिन पहले हेमूभाई अचानक मेरे पास आए और पितरों की पूजा की बात कहकर छुट्टी मांगी। मैंने बिना कुछ सोचे उन्हें छुट्टी दे दी। छुट्टी लेने के दो दिन बाद वे कुछ देर के लिए फैक्ट्री आए थे, वे यहां लगी मशीनों को चेक कर रहे थे। सब सामान्य ही था, पता नहीं इतना बड़ा कदम कैसे उठा लिया।’
इसके बाद हम विंछिया गांव पहुंचे। वहां चूना पत्थर से बने घर के बरामदे में महिलाएं बैठी थीं, रिश्तेदार और आस-पास वाले आए हुए थे। इसके ठीक सामने नीम के पेड़ के नीचे हेमूभाई के छोटे भाई अशोकभाई मकवाना से मुलाकात हुई।
भक्त बनने के सवाल पर अशोकभाई ने बताया, ‘उनकी भक्ति का सिलसिला 25 साल पहले शुरू हुआ था। वे राजस्थान के एक लोक देवता बाबा रामदेव उर्फ रामसा पीर उर्फ रामदेव पीर का नाटक किया करते थे। इसके बाद उन्होंने घर में ही उनका एक मंदिर बना लिया। वे पहले भी हवन, यज्ञ और पूजा करते थे।’

अशोकभाई आगे बताते हैं, ‘25 साल पहले भाई की शादी नहीं हुई थी, तो उन्होंने नवरात्रि में देवी की आराधना के लिए हवन-पूजन किया था। उन्होंने पूरा नवरात्र सिर्फ नीम के पत्ते खाकर बिताया था।

‘कुछ महीने पहले उन्होंने एक ब्राह्मण को बुलाकर घर पर शांति पूजा कराई थी। इसके बाद 500 मीटर दूर खेत के आखिरी छोर पर शिवलिंग और माताजी का फोटो स्थापित की और टेंट लगाकर पूजा शुरू कर दी। हर पूजा में भाई और भाभी साथ बैठते थे। कभी-कभी मैं वहां जाता था, मैंने उन्हें ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए सुना था।’
हेमू के भाई राजू और अशोक मकवाना। अशोक (दाएं) हेमू की मौत के पीछे किसी तांत्रिक का हाथ होने से इनकार करते हैं। उनके मुताबिक, पिछले एक साल से घर या वाड़ी के अंदर कोई अजनबी या तांत्रिक नहीं आया।
हेमू के भाई राजू और अशोक मकवाना। अशोक (दाएं) हेमू की मौत के पीछे किसी तांत्रिक का हाथ होने से इनकार करते हैं। उनके मुताबिक, पिछले एक साल से घर या वाड़ी के अंदर कोई अजनबी या तांत्रिक नहीं आया।
सुसाइड नोट में मर्जी से जान देने की बात लिखी
हवनकुंड में मिले सुसाइड नोट के बारे में पूछने पर अशोकभाई मकवाना ने कहा कि सुसाइड नोट की राइटिंग उनके भाई की ही है। मेरी भाभी को लिखना नहीं आता था, इसलिए भइया ने पहले नोट पर सिग्नेचर किया और फिर उसे काटकर दोनों ने अंगूठा लगाया था।

दोनों बच्चों को छोटे भाई ने अपनाया, कहा-भाई की आखिरी इच्छा यही थी
हेमूभाई और हंसाबेन के दोनों बच्चों की परवरिश कौन करेगा? यह पूछने पर अशोकभाई कहते हैं कि मेरी शादी को काफी समय हो गया है और हमारी कोई संतान नहीं है। यह घटना भगवान का इशारा है और अब हम बच्चों को पालेंगे और उन्हें पढ़ा-लिखाकर उनकी शादी करेंगे। भैया की आखिरी इच्छा भी यही थी।अशोकभाई मकवाना से हमने गिलोटिन के बारे में सवाल किया तो उन्होंने कहा, ‘एक दिन पहले रात तक तो ऐसा कुछ यहां नहीं था। कोई सेटअप भी कभी नजर नहीं आया था। बस कुछ दिन पहले एक रिश्तेदार से 20 टन लकड़ी मंगवाई थी। फिर भी हर दिन बाइक पर बोरी में लकड़ी लेकर यहां आते थे। जब भी लकड़ी लेकर आते, सीधे खेत में जाते और फिर घर आते थे। हो सकता है उन्हीं बोरी में लोहा भी हो।’
विंछिया थाने के पीएसआई बी. जडेजा इस मामले की जांच कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘खेत में बनी झोपड़ी में 30 फीट की ऊंचाई पर लोहे की धारदार ब्लेड का एक हिस्सा लगाया गया था। नीचे की ओर दूसरा हिस्सा लगाया गया।
‘गिलोटिन’ से सजा देते वक्त दोषी को नीचे की ओर लिटाया जाता है, दूसरा व्यक्ति रस्सी को काटता है, लेकिन इस मामले में रस्सी को काटने के लिए पति-पत्नी ने दीपक का इस्तेमाल किया था। उसकी लौ से रस्सी जली और धारदार हिस्सा उनकी गर्दन पर गिरा। पुलिस जांच में भी अब तक घटना में किसी और के शामिल होने की बात सामने नहीं आई है।
जांच अधिकारी जडेजा कहते हैं, ‘हवन कुंड के किनारे एक रस्सी बंधी थी, रस्सी के नीचे एक दीया रखा था। दीपक ने रस्सी को धीरे-धीरे जलाया। दोनों चटाई पर सोए थे और उनकी गर्दन हवन कुंड की मुंडेर पर रखी थी। जैसे ही रस्सी टूटी, ब्लेड उनकी दोनों गर्दनों पर गिरी और उनके सिर अलग हो गए।
जडेजा के मुताबिक, जांच से पता चला है कि कोई पारिवारिक विवाद नहीं था। भाइयों के बीच भी संबंध अच्छे थे। पति-पत्नी के बीच कोई मनमुटाव नहीं था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। पुलिस तंत्र-मंत्र और जादू-टोने के एंगल को खंगालते हुए जांच आगे बढ़ा रही है।
इस बारे में राजकोट (ग्रामीण) DSP प्रतिपाल सिंह झाला का कहना है, ‘हमने हेमूभाई की कॉल डिटेल निकलवाई है, ताकि पता लगाया जा सके कि वह किसी तांत्रिक के संपर्क में तो नहीं था। सुसाइड नोट की राइटिंग का भी मिलान कर लिया गया है।’